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कली

4 जून 2017

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अभी एक नन्ही सी कली थी वो, बाबुल की गोद से उतर कर जमीं पर भी न चली थी वह। गुड़ियों के खेल के सिवा और कुछ आता कहाँ था, माँ की गोद के अलावा और कुछ भाता कहाँ था। खुश हरदम रहती थी आँगन में चिडया सी चहक, मंदिर की घंटियों सी पावन थी उसकी निश्छल हंसी की खनक। दुनिया के दस्तूर से अंजान बस सबको अपना मान। उसका जीवन था हर पल बस खेल का मैदान। एक दिन कोई उसका अपना रौंद गया उसका हर सपना। लूट गया कलि की माली ही कोई अपना। था जिनपर विस्वास अपना ही था जो खास, तोड़ गया सब आस। अब बो सदमे में है गहन डरता है उसका बाल मन। परछाई भी उसे इतना डराती है। अब वस अकेले में बैठे आंसू बहाती गई। पूछती इस समाज से अपना कसूर। कईं जिनको रक्षक माना किया उन्होंने ही डरने को मजबूर। पूछती है अब भगवन से क्या गुनाह था उसका । क्या जी पायेगी कभी सामान्य जीवन अब ।

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माँ

14 मई 2017
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मेरी माँ जग से न्यारी जाती हमपर बलिहारी।कभी न तोके कभी न रोके काम करेंहम मन मर्ज़ी। करे कोई भी शैतानी हो कितना नुकसान माँ का आंचल सदा सहारा उसपर हमको मान।।कभी कमी होने न दी माँ ने सीमित संसाधन में ।सदा प्यार के फूल बिखेरे माँ ने घर के आंगन में।।माँ की याद सदा आती है लगता माँ लोरी गाती है।बेटी हूँ म

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कली

4 जून 2017
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अभी एक नन्ही सी कली थी वो, बाबुल की गोद से उतर कर जमीं पर भी न चली थी वह।गुड़ियों के खेल के सिवा और कुछ आता कहाँ था,माँ की गोद के अलावा और कुछ भाता कहाँ था।खुश हरदम रहती थी आँगन में चिडया सी चहक,मंदिर की घंटियों सी पावन थी उसकी निश्छल हंसी की खनक।दुनिया के दस्तूर से अंजान बस सबको अपना मान।उसका जी

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