कली
अभी एक नन्ही सी कली थी वो, बाबुल की गोद से उतर कर जमीं पर भी न चली थी वह।गुड़ियों के खेल के सिवा और कुछ आता कहाँ था,माँ की गोद के अलावा और कुछ भाता कहाँ था।खुश हरदम रहती थी आँगन में चिडया सी चहक,मंदिर की घंटियों सी पावन थी उसकी निश्छल हंसी की खनक।दुनिया के दस्तूर से अंजान बस सबको अपना मान।उसका जी