महिला दिवस पर विशेष लेख -
घरेलू हिंसा
घरेलू हिंसा शब्द सुनते ही हमारे मस्तिष्क में यही विचार आता है कि पति अपनी पत्नी पर अत्याचार करता है अथवा फिर ससुराल वाले निरीहश बहू को किसी भी कारण से प्रताड़ित करते हैं। घरेलू हिंसा महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा का एक जटिल और घिनौना स्वरूप है। घरेलू हिंसा की यह समस्या सार्वभौमिक है। इससे निपटने के लिए विभिन्न देशों में कानून बने हुए हैं।
महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा एक बहु-आयामी मुद्दा है जिसके निजी, सामाजिक, सार्वजानिक और लैंगिक पहलू हैं। एक पहलू से निपटें, तो तुरन्त ही दूसरा पहलू नजर आने लगता है। घरेलू हिंसा की घटनाओं की व्यापकता तय कर पाना बहुत कठिन कार्य है। इस अपराध को अक्सर छुपाने का प्रयास किया जाता है, इसकी रिपोर्ट कम दर्ज की जाती है और कई बार तो इसे नकार ही दिया जाता है।
निजी रिश्तों में इस घरेलू हिंसा की घटना को स्वीकार करने को बहुधा रिश्तों के चरमराने से जोड़कर देखा जाता है। सामाजिक स्तर पर घरेलू हिंसा की सच्चाई को स्वीकार करने से यह माना जाता है कि विवाह और परिवार जैसे स्थापित सामाजिक ढाँचों में महिलाओं की स्थिति बहुत खराब है। इन सबके बावजूद घरेलू हिंसा के जितने केस दर्ज होते हैं, वे आँकड़े चौंकाने वाले हैं। भारत में हर पाँच मिनट पर घरेलू हिंसा की एक रिपोर्ट दर्ज कराई जाती है।
कानून के तहत घरेलू हिंसा के दायरे में अनेक प्रकार की हिंसा और दुर्व्यवहार आते हैं। किसी घरेलू सम्बन्ध या रिश्तेदारी में किसी प्रकार का व्यवहार, आचरण या बर्ताव जिससे स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन या किसी अंग को कोई क्षति पहुँचती है या फिर मानसिक या शारीरिक हानि होती है, वे सब घरेलू हिंसा के अन्तर्गत ही समाहित किए जाते है।
यह बात हुई महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा की और कानून की। सबसे बड़ी त्रासदी है, इसका दुरुपयोग होना। कुछ महिलाएँ ससुराल से सम्बन्ध न रखने या विवाहेत्तर सम्बन्धों के कारण झूठे केस भी दर्ज करवा देती हैं। ऐसा करना वाकई कानून जुर्म या अपराध की श्रेणी में आता है। इसलिए केस पुलिस स्टेशन में दर्ज होते ही, अब गिरफ्तारी का प्रावधान हटा दिया गया है। पहले इन्वेस्टिगेशन होती है, तब केस आगे चलता है।
अब हम चर्चा उस वर्ग पर हिंसा की चर्चा करेंगे, जिनके विषय में कोई कुछ नहीं बोलता। वह पीड़ित स्वयं भी इस विषय पर मौन रहता है। जी हाँ, मैं बात कर रही हूँ पुरुष वर्ग की। अनेक पुरुषों के साथ भी घरेलू हिंसा होती है यानी उनके साथ भी मारपीट की जाती है। वे पुरुष हैं इसलिए अपनी कमजोरी जग-जाहिर नहीं कर सकते। अतः उनके लिए कोई भी आवाज नहीं उठता।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वे किसी को भी अपने साथ हो रहे अत्याचार के विषय में नहीं बता सकते। वे यह नहीं बता सकते कि उनकी पत्नी उन पर हाथ उठाती है। अथवा उनकी पत्नी बच्चों के साथ मिलकर उनके साथ दुर्व्यवहार करती है। उन्हें लगता है कि उनकी बात को कोई सीरियसली नहीं लेगा। किसी को कहेंगे तो लोग उनका उपहास उड़ाएँगे, छींटाकशी करेंगे या ताने मारेंगे। इस डर से वे घुट-घुटकर जीते हैं, पर मुँह नहीं खोलते।
मुझे ठीक से याद नहीं, परन्तु शायद 'पत्नी पीड़ित' नाम से एक संस्था बनी हुई है, जो शायद इन लोगों के लिए कुछ कर पाती होगी। आज के पुरुष प्रधान समाज में कोई भी व्यक्ति यह परिकल्पना नहीं कर सकता कि इस पुरुष नामक प्राणी पर घरेलू हिंसा हो सकती है। यदि कोई कानून इन लोगों के लिए भी बन जाए, तो शायद कुछ लोग इन्साफ पाने के लिए शिकायत दर्ज कर पाएँगे।
घरेलू हिंसा चाहे महिला के साथ हो या पुरुष के साथ, असहनीय है। यह एक अपराध ही है। इसका पुरजोर विरोध होना चाहिए। केवल कानून बनाने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता। इस बुराई को दूर करने के लिए सामाजिक संस्थाओं को आगे आना चाहिए। इसका विरोध करने के लिए सामाजिक जागरूकता का होना बहुत ही आवश्यक है। महिलाओं तथा पुरुषों दोनों का एक-दूसरे का सम्मान करना आना चाहिए। तब शायद इसमें कुछ सुधार किया जा सकता है।
चन्द्र प्रभा सूद