मैं जानता हूँ कि अब तू ग़ैर है मुझे जीना भी तेरे बग़ैर है फिर भी मोहब्बत है तुझसे मेरे दिल को मुझसे ही बैर है बसा रखा है तुझे इन आँखों में मेरा मन ही बना मेरा दैर है रोज़ रुलाती हैं मुझे यादें तेरी जीने नहीं देती ऐसी ये मैर है तेरे दीदार को आज भी ये दिल करता तेरी गलियों की सैर है ✍️ आलोक कौशिक
गोली नहीं चली है यारों फिर एक बार दिमाग चला है किसी का घूम रहे पत्थर लेकर वो लगता है पेड़ फला है किसी का इरादे नापाक़ हैं उसके और पढ़ रहा वो कुरान की आयतें कोई बताओ उसे नहीं इस तरह से हादसा टला है किसी का टूटेगा ना हौसला दुश्मनों के किसी भी वार से कभी भी हमारा तेज़ाब के असर से क्या कभी जीने का जज़्बा ग
जब शाहीन बाग़ में गुज़ारी हमने रात थी एक अजीब एहसास से हुई मुलाक़ात थी मत पूछ क्या क्या देखा हमारी नज़रों ने बस यूं समझ कि बिन बादल बरसात थी बड़ा ही सुकून मिला जब मिला दिल उनसे दरम्यां हमारे कोई शह न कोई मात थी जीती थी हमने हारी हुई सारी बाज़ी भी तब जब मोहब्बत ही इकलौती मेरी ज़ात थी अब तो कहता है बाग़बा