"ग़ज़ल" जानकर अंजान को तुम जो खिलौना दे गए तोड़कर अरमान इसका कर भगौना दे गए दिल कहे कि पूछ लो हाथ कितने साथ थे ले के आए आप अरमा औ बिछौना दे गए॥खेलना है नियति जिसकी झूमकर जो खेलतेटूटकर बिखरे हैं वे उनको बिनौना दे गए॥आह में भी चाह देखों भूख जिनका खेलना हाथ कोमल को कठिन तुम घिनौना दे गए॥काँपते हैं डर के