जानकर अंजान को तुम जो खिलौना दे गए
तोड़कर अरमान इसका कर भगौना दे गए
दिल कहे कि पूछ लो हाथ कितने साथ थे
ले के आए आप अरमा औ बिछौना दे गए॥
खेल ना है नियति जिसकी झूमकर जो खेलते
टूटकर बिखरे हैं वे उनको बिनौना दे गए॥
आह में भी चाह देखों भूख जिनका खेलना
हाथ कोमल को कठिन तुम घिनौना दे गए॥
काँपते हैं डर के मारे जुड़ रहें कह भीख दो
हर डगर हर मोड़ को किल्लत करौना दे गए॥
हाय रे धन भूख की किस हाल में तुम पोषते
पौध को पतझड़ बना कैसा झरौना दे गए॥
क्यूँ करे फरियाद ‘गौतम’ बालपन किसका नहीं
हाल इस वर्तमान को भुतहा भरौना दे गए॥
महातम मिश्र 'गौतम' गोरखपुरी