काव्य रो रहा है***साहित्य में रस छंद अलंकारो का कलात्मक सौंदर्य अब खो रहा है।काव्य गोष्ठीयो में कविताओं की जगह जुमलो का पाठ हो रहा है ।हास्य के साथ व्यंग की परिभाषा अब इस कदर बदल गयी है ।हंस रहे है कवी स्रोता सभी नये सृजन के अभाव में काव्य रो रहा है ।।***डी के निवात