वियोग श्रृंगार की मार्मिक प्रेमकथा....
"आप, आप तो पिछली बार भी आये थे।""जी मैंम।""हां,तभी तो। कुछ याद जैसा आ रहा है।"थोड़ी देर चुप्पी...
जब मैं छोटा बच्चा था तो रात को मां से चांद दिखाने की जिद किया करता था। माँ मना करती तो मैं रोने लगता था। मजबूर होकर माँ को चांद दिखाने मुझे छत पर ले जाना पड़ता था...
"तुम ! यहाँ भी।""हाँ, बिल्कुल ! जहाँ तुम, वहाँ मैं।""अच्छा, ऐसा है क्या ?"" बिल्कुल, तुम्हारा हमसाया जो हूँ।""चुप पागल !"और ऐसा कहते ही वह खिल उठी। सूरजमुखी नहीं थी वह और न था वह सूरज...
प्रेम अपनी प्रेमिका वर्षा से बहुत प्यार करता था। प्रेम वर्षा के बिना