"तुम ! यहाँ भी।""हाँ, बिल्कुल ! जहाँ तुम, वहाँ मैं।""अच्छा, ऐसा है क्या ?"" बिल्कुल, तुम्हारा हमसाया जो हूँ।""चुप पागल !"और ऐसा कहते ही वह खिल उठी। सूरजमुखी नहीं थी वह और न था वह सूरज...
उसने उसके भिगोए हुएदो बादाम खा लिए, ये अब उसकी नियमित दिनचर्या का हिस्सा बन चुका था। वो हमेशाअस्वस्थ रहती थी, वो भी सिर्फ 23 साल की उम्र में जब उसका यौवन और सौंदर्य किसी कोभी प्रभावित कर सकता था लेकिन चांद में दाग की तरह कमजोरी के निशान उसके चेहरे परभी दिखाई देने लगे।उसके
अपने स्टील के डब्बेमें रखे कुछ गुलाब जामुन में से एक को निकालकर प्रीति ने अनिमेष के हाथ मेंजबर्दस्ती थमा दिया। उसके बाद अपने दो साल के बच्चें को खिलाने के बाद अपने पति केजबरन मुंह में ठूंस दिया। ऐसी मिठाई खाकर भी ख़ुश नहीं महसूस कर रहा था अ
शशांक ने कहा “हैलो स्मिता मैं बैंगलुरु पहुंच गयाहूं। यहां की एक फ़ार्मा कपंनी में मैनेज़र के तौर पर मेरा प्रमोशन हो गया है,30 साल का हो गया हूं। कोई अच्छी सी लड़की बताओं ना बिल्कुल तुम्हारीतरह”। “मैं क्या को
सरहदपार वालाप्यारगुलज़ारसाहब ने क्या ख़ूब लिखा है... आँखों कोवीसा नहीं लगता,सपनो की सरहद नहीं होती...मेरी यहकहानी भी कुछ ऐसी ही है, इन पंक्तियों के जैसी, जिसे किसी वीसा या पासपोर्ट कीज़रूरत नहीं है आपके दिल तक पहुंचने के लिए. बस यूँ ही ख़्व