एक सुबह जब सूरज आकाश को नीला करने के लिए पूरी उन्मुक्तता के साथ अपनी रोशनी फैला रहा था, उसी समय गंगा नदी में स्नान के बाद ऋषि गौतम सूर्य को अर्घ दे रहे थे, कमर के नीचे धोती पहने हुये, उनके बायें कंधे से जनेऊ नीचे दाहिनी कमर तक लटका हुआ था, उनका सुव्यवस्थित शरीर सूर्य के प्रकाश को प्रतिबिंबित कर रहा था.
स्नान बाद वे जैसे ही नदी से बाहर आते हैं और अपने वस्त्र उठाने के लिये झुकते हैं, एक आवाज उनका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है…
... " यह तो किसी नवजात शिशु के रोने की आवाज़ है "
अपने वस्त्रों को हाथ मे लेकर वे उस आवाज़ की ओर चलना प्रारंभ करते हैं.
उस शिशु रूधन को सुनते हुये महर्षि गौतम एक बरगद के पेड़ के नीचे निकट पहुँचते हैं.
" ये आवाज़ तो उस पेड़ के पास से आ रही है ", जैसे ही वे उस पेड़ के पास पहुंचते हैं. उस शिशु का रोना बन्द हो जाता है.
ऋषि गौतम देखते हैं कि भगवा वस्त्र में लिपटा एक सुंदर नवजात बालक अपने चेहरे के तेज से उस वातावरण को आनंदित कर रहा है
... " यह कोई देव पुत्र लगता है ", ऋषि गौतम अपने चारों ओर देखते हैं…." यहाँ कोई है... यह बच्चा किसका है " - उन्होंने दो-तीन बार आवाज दी लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
वे चारों ओर दृष्टि घुमाते हैं लेकिन दूर-दूर तक कोई नहीं दिखाई देता, चारों ओर एक शांति है...
ऋषि गौतम पुनः उस बालक की ओर देखते हैं. उस बालक का तेज रोमांचित कर देने वाला था.
गौतम अपने वस्त्रों को वहीं किनारे रख कर उस बालक को गोद में में उठा लेते हैं.
" तुम अवश्य ही कोई देव पुत्र हो या तुम किसी उच्च कुल की संतान हो "... इतना कहते ही ऋषि गौतम की दृष्टि उस वस्तु में पड़ती है जिसमे उस बालक को लेटाया गया था.
वस्त्र में लिपटी वह वस्तु कोई ग्रंथ जैसी प्रतीत हो रहा.
ऋषि ने उस वस्तु को उठाया और उत्सुकता के साथ उस बालक को लेकर अपने आश्रम की ओर प्रस्थान किया.
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ऋषि गौतम के आश्रम में सभी शिष्यगण अपने प्रातःकालीन कामों में लगे थे, जैसे ही ऋषि गौतम अपने आश्रम के पास पहुंचे, उनके एक शिष्य ने उन्हें देखा और एक अन्य शिष्य से पूछा - "देखो, क्या गुरु देव के हाथ में एक बच्चा है?"
"हाँ मुझे भी ऐसा ही लगता है... चलो चलके देखते हैं ", दूसरे शिष्य ने उत्तर दिया
वे दोनों ऋषि गौतम के पास पहुंचते हैं और उनका अभिवादन करके ऋषि गौतम के पीछे-पीछे वापस आश्रम की ओर चलने लगते हैं।
ऋषि गौतम बहुत तेज कदमों से आगे बढ़ रहे थे, उनके मन मे उत्सुकता थी, उनके शिष्यों को यह बात साफ समझ मे आ रही थी.
"यह कौन है गुरु देव", एक शिष्य ने पूछा...
"मैं अभी नहीं जानता पुत्र... मैंने इसे नदी के किनारे एक पेड़ की छाया के नीचे लेटा हुआ पाया", गौतम ने उत्तर दिया।
उन्होंने चलते-चलते ही एक शिष्य को वस्त्र में लिपटी उस वस्तु को दिया. और तेज़ी से आश्रम में प्रवेश किया.
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रात का दूसरा पहर
अपनी कुटिया में मशाल की टिमटिमाती रौशनी के बीच, घास की एक चटाई पर एक हाथ से सिरहाना बनाकर लेटे हुए ऋषि गौतम की आँखों से नींद बहुत दूर थी… वे आज की घटना के बारे में गहरे विचार में थे.
..." इस बच्चे के माता-पिता कौन हैं और उन्होंने उसे इस तरह क्यों छोड़ दिया? "....
..." और उसके साथ वस्त्र में लिपटी वह वस्तु क्या है… वह वस्तु… मैनें उसे तो देखा ही नहीं !…"
ऋषि गौतम का ध्यान टूटता है और वे उठ कर अपनी संदूक खोलते हैं जिसमे उन्होंने वस्त्र में लिपटी उस वस्तु को रखा है…
गौतम उस वस्त्र को खोलते हैं… यह कोई ग्रंथ जैसा लगता है… यह क्या! इसके साथ ये पाँच बाण कैसे?... यह कोन सा ग्रंथ है?...
भोज पत्रों में लिखा यह ग्रंथ… ऋषि गौतम उसका पहला प्रष्ट पलटते हैं…और कुछ देखकर उनकी आंखें आश्चर्य से फैल जाती हैं…
" धनुर्वेद " ! वे सहसा ही कह उठते हैं…
जैसे ही वे आगे के प्रष्ट पलटते हैं वे उत्साह से भर जाते हैं… " यह धनुर्वेद है "... उनकी आंखों में खुसी की चमक दिखने लगती है.
" यह तो सचमुच धनुर्वेद है जिसे भगवान परसुराम ने क्षत्रियों के संघार के बाद विलुप्त कर दिया था…"
" क्या यह वही क्षण है जब इस महान ग्रंथ का फिर से प्रादुर्भाव हुआ है… और ईस्वर ने स्वयं मुझे यह दायित्व सौंपा है…"
" हाँ ! यह धनुर्वेद ही है ऋषि गौतम "...
ऋषि गौतम चोंकते हुये पीछे पलटते हैं…
महर्षि गौतम की कुटिया में देवर्षि नारद का आगमन होता है. वे नारायण का संदेश लेकर वहाँ आये हैं
" देवर्षि नारद आप !... प्रणाम देवर्षि "... " प्रणाम महर्षि गौतम "...
दोनों एक दूसरे का अभिवादन करते हैं
" इस धनुर्वेद के संरक्षण के लिये ईस्वर ने आपका चुनाव किया है ऋषि गौतम… इस बालक को धनुर्वेद के ज्ञान के लिये योग्य बनाने का दायित्व आपका है ऋषिवर " -
" आपका बहुत-बहुत धन्यवाद देवर्षि जो आप यहाँ आये और मेरे मन चल रही इस गुत्थी को सुलझाया… किन्तु शस्त्र-विद्या के लिये तो मेरे से योग्य आचार्य हैं फिर इस कार्य के लिये मेरा चयन?... कुछ समझ नहीं आता"??? - ऋषि गौतम देवर्षि से पूछते हैं
देवर्षि उस बालक को देखते हुये कहते हैं
" यह बालक शरव्दान है महर्षि और स्वयं अपने आप मे धनुर्वेद है, इसे शस्त्र-विद्या अध्ययन की आवश्यकता नहीं… इसे योग, विज्ञान और तप का ज्ञान दीजिये जो इसके आने वाले जीवन मे इसके काम आयेगा..."
इतना कहकर देवर्षि नारद वहाँ से प्रस्थान करते हैं
ऋषि गौतम खुद को बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं. उनका पूरा शरीर रोमांचित हो उठा है… वे उस बालक के पास जाते हैं जो अभी गहरी नींद में है…
उस बालक के सिर पे प्यार से हाथ फिराते हैं… " धनुर्वेद का संवाहक मेरा पुत्र शरव्दान " .
अपने पुत्र को हाथ मे उठाकर महर्षि गौतम दूर आते हुये नए सबेरे को देखते हैं.
यह रात अब गुजरने वाली है और एक नया सबेरा आने वाला है...