आँसुओं की माप क्या है?
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रोक लेता चीखकर
तुमको, मगर अहसास ऐसा,
ज़िंदगी की वादियों में
शोक का अधिवास कैसा?
नासमझ, अहसास मेरे
क्रंदनों के गीत गाते,
लालची इन चक्षुओं को
चाँद से मनमीत भाते।
ढूँढ़ता हूँ जाग कर
गहरी निशा की ख़ाक में,
वंदनों से झाँकता
अभिनंदनों के ताक में।
उत्तरोत्तर आज भी
चरितार्थ कितनी? बोलकर,
चित्त में गहरे छिपे
मनभाव को झकझोर कर।
ओ मेरे भटके बटोही
आज बस इतना बता दे,
काव्य में लथपथ पड़े
इन आँसुओं की माप क्या है?
...“निश्छल”