वह दर्द भरा है सभी के दिलो में ना जाने कब वह बाहर निकले।
कब तक यूं ही सहते रहोगे सनातन पर कहर की पीड़ा,अब तो खड़क उठाओ।
कमज़ोर हमें समझ बैठा है,अब तो रण भूमि में आओ।
और कितने का बलिदान देखोगे और कितने का घर जलते देखोगे।
बहुत हुआ अहिंसा वादी बनना,अब तो हिंसा से ही रास्ता निकल पाए।
जुर्म तब तक ही सहों जबतक वह सहने लायक हो,जब घर सहित सबपे आए खड़क उठाओ रणभूमि में जाओ।
जो जुर्म करता है तुम्हारे विरुद्ध , उसको वैसा ही दण्ड दो।
लोहे को काटने हेतू और सख्त लोहा ही चाहिए,अब तो तुम सख्त बन जाओ।
भले २-४ हो जाए शाहिद, लेकिन बचा पाओगे अपने परिवार सहित खुद का मान सम्मान।