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विसंगतियां ख़ामोश रहने नहीं देतीं | सो कहने और लिखने को ध्येय बनाया | अभिनव अरुण नाम से सक्रिय सकारात्मक बदलाव हेतु लेखन | मंचों , पत्र - पत्रिकाओं , आकाशवाणी - दूरदर्शन और नेट पर ब्लॉग रूप में रचनाएँ प्रशंसित | आरंभिक शिक्षा लौह नगरी जमशेदपुर में | मूल निवास गाजीपुर \ बनारस (उत्तर प्रदेश , भारत) | बचपन से ही लेखन की विविध विधाओं में सक्रियता | साहित्य कला संगीत संस्कृति और पत्रकारिता से लगाव आकाशवाणी तक ले आया | अन्य अख़बारों और पत्रिकाओं में छिटपुट सेवा और दैनिक "आज " जमशेदपुर में १९८९ से १९९६ तक उप-संपादक पद पर कार्य के उपरान्त सम्प्रति करीब दो दशक से इसी रेडियो में रोज़ी | आकाशवाणी के जमशेदपुर , ओबरा और विविध भारती मुंबई केन्द्रों पर सेवा के पश्चात अभी आकाशवाणी वाराणसी में वरिष्ठ उदघोषक |बनारस की विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ाव | " कथ्य - शिल्प "और " परिवर्तन " के सक्रिय रचनाकार | प्रगतिवादी ग़ज़ल लेखन के लिए २००९ में " परिवर्तन के प्रतीक " सम्मान से विभूषित | आगमन साहित्य सम्मान २०१४ |ग़ज़ल लेखन हेतु दुष्यंत कुमार स्मृति सम्मान २०१५ (‘संभाव्य’संस्था एवं त्रैमासिक पत्रिका भागलपुर की और से )| अखिल भारतीय नागरिक कल्याण परिषद् द्वारा भी साहित्यिक पत्रकारिता के लिए सम्मानित , विश्विद्यालय अनुदान आयोग के सहयोग से श्री बलदेव पी .जी. कालेज , वाराणसी और विद्याश्री न्यास के संयुक्त तत्वावधान में १४ से १६ जनवरी २०१२ तक वाराणसी में आयोजित भारतीय लेखक शिविर एवं " इतिहास परंपरा और आधुनिकता " पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के अंतर्गत आयोजित काव्य प्रतियोगिता में कविताओं की प्रस्तुति को प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ | विश्व फोटोग्राफी दिवस १९ अगस्त २०१३ के अवसर पर दैनिक ''अमर उजाला''समूह नॉएडा द्वारा आयोजित फोटोग्राफी प्रतियोगिता के प्रथम उप - विजेता का पुरस्कार दिनांक २३अक्टूबर २०१३ को समारोह

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कविता - अथ से इति तक

29 मई 2016
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जब तक अथ से इति तकना हो सब कुछ ठीक ठाक ,सुख की पीड़ा से अच्छा हैपीड़ा का सुख उठाना.जब तक सुनी ना जाएँ आवाज़ेसिलने वाले हो हज़ार सूइयों वालेऔर होंठों पर पहरे पड़े हों ,चुप्प रहने से अच्छा है,शब्दों की अलगनी पर खुद टंग जाना .जब तक जले न पचास तीलियों वाली माचिसया ख़ाक न हो जाएँ सडांध लिए मुद्देहल वाले हांथो

लघुकथा - बकाया !

29 मई 2016
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लघुकथा -  बकाया !डॉ धीरज आज सुबह कुछ देर से अस्पताल में पहुंचे थे | सीधे आई सी यू में भर्ती मरीजो की और बढे | सिस्टर अर्चना कुछ बेचैन दिखी उन्हें |"क्या हुआ ? " पूछा उन्होंने | " सर वो चार दिन पहले भर्ती बच्चे की पल्स .. हार्ट रेट ..ब्लड  प्रेशर कुछ भी नहीं .." " हूँ ... " डाक्टर धीरज बेड की ओर बढे

कविता : - मांद से बाहर !

29 मई 2016
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कविता : -  मांद से बाहर ! चुप  मत रह तू खौफ से  कुछ बोल बजा वह ढोल जिसे सुन खौल उठें सब   ये चुप्पी मौतमरें क्यों हममरे सब हैं जिनके हाँथ रंगे सेछिपे दस्तानों भीतर जो करते वारकुटिल सौ बार टीलों के पीछे छिपकरतू उनको मार सदा कर वार निकलकर मांद से बाहर कलम को मांज हो पैनी धारसरासर वार सरासर वारपड़ेंगे

कवि , उसकी कविता और तुम !

29 मई 2016
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कवि , उसकी कविता  और तुम ! हाँ उन कविताओं को भी रचा था उसने उसी वेदना के साथजिनपर तुमने तालियाँ नहीं बजायींऔंर  कई कविताओं को रचकर वह देर तक हँसा था खुद परजिन्हें सुनकर तुम झूम उठे थेजानते हो लिखना और सुनाना दो  अलग अलग विधाएं हैंऔर उन सब  पर हावी है रोज़ी रोटी की विधा !कैसे सुनाता वह समूचे जोश और उ

ग़ज़ल - प्रेमिका के हाथ की तुरपाइयाँ

29 मई 2016
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ग़ज़ल :-एक पर्वत और दस दस खाइयां |हैं सतह पर सैकड़ों सच्चाइयां ।हादसे द्योतक हैं बढ़ते ह्रास के ,सभ्यता पर जम गयी हैं काइयाँ  ।भाषणों में नेक नीयत के निबन्ध ,आचरण में आड़ी तिरछी पाइयाँ  ।मंदिरों के द्वार पर भिक्षुक कई ,सच के चेहरे की उजागर झाइयाँ  ।आते ही खिचड़ी के याद आये बहुत ,माँ तेरे हाथों के लड

ग़ज़ल - अक्षरों में खुदा दिखाई दे

29 मई 2016
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ग़ज़ल –२१२२ १२१२ २२अक्षरों में खुदा दिखाई देअब मुझे ऐसी रोशनाई दे | हाथ खोलूं तो बस दुआ मांगूँ,सिर्फ इतनी मुझे कमाई दे | रोशनी हर चिराग में भर दूं ,कोई ऐसी दियासलाई दे | माँ के हाथों का स्वाद हो जिसमें,ले ले सबकुछ वही मिठाई दे | धूप तो शहर वाली दे दी है,गाँव वाली बरफ मलाई दे | बेटियों को दे खूब आज़ादी

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