shabd-logo

लघुकथा - बकाया !

29 मई 2016

190 बार देखा गया 190

लघुकथा -  बकाया !

article-image

डॉ धीरज आज सुबह कुछ देर से अस्पताल में पहुंचे थे | सीधे आई सी यू में भर्ती मरीजो की और बढे | सिस्टर अर्चना कुछ बेचैन दिखी उन्हें |

"क्या हुआ ? " पूछा उन्होंने | 

" सर वो चार दिन पहले भर्ती बच्चे की पल्स .. हार्ट रेट ..ब्लड  प्रेशर कुछ भी नहीं .."

 " हूँ ... " डाक्टर धीरज बेड की ओर बढे |

"इसके माँ बाप ? अटेंडेंट ??"

" सर वो गाँव से आये थे , बाहर होंगे उन्हें अभी नहीं बताया गया है "

डॉ धीरज ने वहीँ से बिल काउंटर से इंटरकाम पर पूछा " बेड नंबर १० के मरीज की पेमेंट पोजीशन ?"

"सर बीस हज़ार पांच सौ के करीब बकाया है आज देने को कहा है |"

"ओ के ! उन्हें जल्दी पैसे जमा करने को कहो |"

सिस्टर अर्चना ने पूछा " सर बॉडी  बाहर मर्चरी में  कर दें ? "

" नहीं | गार्जियन को कह दो जल्दी पैसे की व्यवस्था करें | उन्हें बताना बड़े डॉक्टर  दिन में देखेंगे | "

बाहर राधा और मोहन परेशान थे |

राधा ने थके घबराए लहजे में पूछा  " क्या हुआ पैसे की व्यवस्था हुई "

" हाँ पंद्रह हज़ार साहूकार ने दिए हैं अभी करीब दस हज़ार की और ज़रूरत होगी देखें डाक्टर साहब क्या कहते हैं | "

"देखिये बड़े डाक्टर आपके बच्चे को देखने आने वाले हैं आप आज ही सारे पैसे जमा कर दें | " काउंटर से मोहन को यही बताया गया |

" राधा लगता है खेत गिरवी रखने होंगे तब किसना का इलाज होगा मैं गाँव जाता हूँ तुम यहाँ ठहरो "

यह कह कर मोहन अपने आंसुओं को रोकता बस स्टेंड की ओर बढ़ गया | राधा देवी माता को मनौती मानने लगी | उधर डॉक्टर धीरज ने कथित बड़े डॉक्टर को फोन कर कहा -

"सर वो लड़का रात को ही ख़त्म हो गया | सर अब आपको आने की ज़रूरत नहीं | ऐज पर कांट्रेक्ट आपका फिफ्टी परसेंट आज ही पे कर देता हूँ | थैंक्स फॉर यौर को - आपरेशन सर ! "

दस  बज चुके थे अस्पताल में रोज़ की तरह चहल पहल बढ़ गयी थी |

उधर पास ही के गाँव में ज़मीन के कागज के साथ मोहन साहूकार की बैठकी में पहुँच चुका था |

 

                                                                                                                  --  अभिनव अरुण 

अभिनव अरुण की अन्य किताबें

1

ग़ज़ल - अक्षरों में खुदा दिखाई दे

29 मई 2016
0
3
3

ग़ज़ल –२१२२ १२१२ २२अक्षरों में खुदा दिखाई देअब मुझे ऐसी रोशनाई दे | हाथ खोलूं तो बस दुआ मांगूँ,सिर्फ इतनी मुझे कमाई दे | रोशनी हर चिराग में भर दूं ,कोई ऐसी दियासलाई दे | माँ के हाथों का स्वाद हो जिसमें,ले ले सबकुछ वही मिठाई दे | धूप तो शहर वाली दे दी है,गाँव वाली बरफ मलाई दे | बेटियों को दे खूब आज़ादी

2

ग़ज़ल - प्रेमिका के हाथ की तुरपाइयाँ

29 मई 2016
0
1
0

ग़ज़ल :-एक पर्वत और दस दस खाइयां |हैं सतह पर सैकड़ों सच्चाइयां ।हादसे द्योतक हैं बढ़ते ह्रास के ,सभ्यता पर जम गयी हैं काइयाँ  ।भाषणों में नेक नीयत के निबन्ध ,आचरण में आड़ी तिरछी पाइयाँ  ।मंदिरों के द्वार पर भिक्षुक कई ,सच के चेहरे की उजागर झाइयाँ  ।आते ही खिचड़ी के याद आये बहुत ,माँ तेरे हाथों के लड

3

कवि , उसकी कविता और तुम !

29 मई 2016
0
2
0

कवि , उसकी कविता  और तुम ! हाँ उन कविताओं को भी रचा था उसने उसी वेदना के साथजिनपर तुमने तालियाँ नहीं बजायींऔंर  कई कविताओं को रचकर वह देर तक हँसा था खुद परजिन्हें सुनकर तुम झूम उठे थेजानते हो लिखना और सुनाना दो  अलग अलग विधाएं हैंऔर उन सब  पर हावी है रोज़ी रोटी की विधा !कैसे सुनाता वह समूचे जोश और उ

4

कविता : - मांद से बाहर !

29 मई 2016
0
1
0

कविता : -  मांद से बाहर ! चुप  मत रह तू खौफ से  कुछ बोल बजा वह ढोल जिसे सुन खौल उठें सब   ये चुप्पी मौतमरें क्यों हममरे सब हैं जिनके हाँथ रंगे सेछिपे दस्तानों भीतर जो करते वारकुटिल सौ बार टीलों के पीछे छिपकरतू उनको मार सदा कर वार निकलकर मांद से बाहर कलम को मांज हो पैनी धारसरासर वार सरासर वारपड़ेंगे

5

लघुकथा - बकाया !

29 मई 2016
0
1
0

लघुकथा -  बकाया !डॉ धीरज आज सुबह कुछ देर से अस्पताल में पहुंचे थे | सीधे आई सी यू में भर्ती मरीजो की और बढे | सिस्टर अर्चना कुछ बेचैन दिखी उन्हें |"क्या हुआ ? " पूछा उन्होंने | " सर वो चार दिन पहले भर्ती बच्चे की पल्स .. हार्ट रेट ..ब्लड  प्रेशर कुछ भी नहीं .." " हूँ ... " डाक्टर धीरज बेड की ओर बढे

6

कविता - अथ से इति तक

29 मई 2016
0
3
0

जब तक अथ से इति तकना हो सब कुछ ठीक ठाक ,सुख की पीड़ा से अच्छा हैपीड़ा का सुख उठाना.जब तक सुनी ना जाएँ आवाज़ेसिलने वाले हो हज़ार सूइयों वालेऔर होंठों पर पहरे पड़े हों ,चुप्प रहने से अच्छा है,शब्दों की अलगनी पर खुद टंग जाना .जब तक जले न पचास तीलियों वाली माचिसया ख़ाक न हो जाएँ सडांध लिए मुद्देहल वाले हांथो

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए