लघुकथा - बकाया !
डॉ धीरज आज सुबह कुछ देर से अस्पताल में पहुंचे थे | सीधे आई सी यू में भर्ती मरीजो की और बढे | सिस्टर अर्चना कुछ बेचैन दिखी उन्हें |
"क्या हुआ ? " पूछा उन्होंने |
" सर वो चार दिन पहले भर्ती बच्चे की पल्स .. हार्ट रेट ..ब्लड प्रेशर कुछ भी नहीं .."
" हूँ ... " डाक्टर धीरज बेड की ओर बढे |
"इसके माँ बाप ? अटेंडेंट ??"
" सर वो गाँव से आये थे , बाहर होंगे उन्हें अभी नहीं बताया गया है "
डॉ धीरज ने वहीँ से बिल काउंटर से इंटरकाम पर पूछा " बेड नंबर १० के मरीज की पेमेंट पोजीशन ?"
"सर बीस हज़ार पांच सौ के करीब बकाया है आज देने को कहा है |"
"ओ के ! उन्हें जल्दी पैसे जमा करने को कहो |"
सिस्टर अर्चना ने पूछा " सर बॉडी बाहर मर्चरी में कर दें ? "
" नहीं | गार्जियन को कह दो जल्दी पैसे की व्यवस्था करें | उन्हें बताना बड़े डॉक्टर दिन में देखेंगे | "
बाहर राधा और मोहन परेशान थे |
राधा ने थके घबराए लहजे में पूछा " क्या हुआ पैसे की व्यवस्था हुई "
" हाँ पंद्रह हज़ार साहूकार ने दिए हैं अभी करीब दस हज़ार की और ज़रूरत होगी देखें डाक्टर साहब क्या कहते हैं | "
"देखिये बड़े डाक्टर आपके बच्चे को देखने आने वाले हैं आप आज ही सारे पैसे जमा कर दें | " काउंटर से मोहन को यही बताया गया |
" राधा लगता है खेत गिरवी रखने होंगे तब किसना का इलाज होगा मैं गाँव जाता हूँ तुम यहाँ ठहरो "
यह कह कर मोहन अपने आंसुओं को रोकता बस स्टेंड की ओर बढ़ गया | राधा देवी माता को मनौती मानने लगी | उधर डॉक्टर धीरज ने कथित बड़े डॉक्टर को फोन कर कहा -
"सर वो लड़का रात को ही ख़त्म हो गया | सर अब आपको आने की ज़रूरत नहीं | ऐज पर कांट्रेक्ट आपका फिफ्टी परसेंट आज ही पे कर देता हूँ | थैंक्स फॉर यौर को - आपरेशन सर ! "
दस बज चुके थे अस्पताल में रोज़ की तरह चहल पहल बढ़ गयी थी |
उधर पास ही के गाँव में ज़मीन के कागज के साथ मोहन साहूकार की बैठकी में पहुँच चुका था |
-- अभिनव अरुण