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कवि , उसकी कविता और तुम !

29 मई 2016

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कवि , उसकी कविता  और तुम !

 

हाँ उन कविताओं को भी रचा था उसने उसी वेदना के साथ

जिनपर तुमने तालियाँ नहीं बजायीं

औंर  कई कविताओं को रचकर वह देर तक हँसा था खुद पर

जिन्हें सुनकर तुम झूम उठे थे

जानते हो लिखना और सुनाना दो  अलग अलग विधाएं हैं

और उन सब  पर हावी है रोज़ी रोटी की विधा !

कैसे सुनाता वह समूचे जोश और उत्साह से अपनी कविता

जबकि तुम्हारे  हज़ार फूलों वाले चटख रोशन मंच की  

धवल रेशमी चादर पर तने  चुनौती देते उस माइक के सामने

मंच पर खड़े कवि का पूरा ध्यान था अपनी ज़ुराबों से झांकती उँगलियों पर

वह सोच रहा था जाने आज मिलने वाले पारितोषिक से

कितने दिन सरकेगी गृहस्थी की गाडी !!

वह जिसे सभी कहते लो यह कवि बन गया पत्रकार बन गया

जैसे बन ही नहीं सकता था वह कुछ और साहब या चपरासी या गुंडा मवाली ही

जिसका विवाह पत्र देख वधू पक्ष के रिश्तेदार ने कहा था

आप लोगों को क्या यही मिला कवि लेखक और पत्रकार

वह अक्सर सोचता है  क्यों पढ़ी थीं उसने वह सब किताबें

बोल्शेविक क्रांति  डॉ ज़िवागो  गोर्की  टालस्टाय

और मार्क्स में क्या मिला था उसे

क्या सृजन का वह सूत्र मात्र जो आज बाज़ार में बनकर रह गया है एक उत्पाद भर

महत्वपूर्ण हो गयी है जहां दूकान की साज सज्जा विपणन और पैकेजिंग 

और उसकी फितरत मिज़ाज या नियति कि वह नहीं बन सका 

कविता का कुशल कारोबारी     !!!

 

                                                          - अभिनव अरुण

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ग़ज़ल - प्रेमिका के हाथ की तुरपाइयाँ

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ग़ज़ल :-एक पर्वत और दस दस खाइयां |हैं सतह पर सैकड़ों सच्चाइयां ।हादसे द्योतक हैं बढ़ते ह्रास के ,सभ्यता पर जम गयी हैं काइयाँ  ।भाषणों में नेक नीयत के निबन्ध ,आचरण में आड़ी तिरछी पाइयाँ  ।मंदिरों के द्वार पर भिक्षुक कई ,सच के चेहरे की उजागर झाइयाँ  ।आते ही खिचड़ी के याद आये बहुत ,माँ तेरे हाथों के लड

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कविता - अथ से इति तक

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