बचपन में मास्टर जी के डण्डे के साथ-साथ मधुमक्खी के डंक ने भी प्रेरणा दी कि अगर कोई आपके मुँह का निवाला छीन निज मुँह मिठास हेतु मुँह मारे तो आप की सूझ-बूझ से उसका मुँह इतना जरूर सूज जाना चाहिए कि भविष्य में वास्तविकता में मुँह मारना तो दूरस्थ, कल्पनामात्र से ही उसका मुँह सूजन से उभरा हो , न कि लार से लपालप भरा हो।