🌹 *षष्ठ - भाग* 🌹
*५- नामकरण संस्कार*
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मानव जीवन का महत्त्वपूर्ण *संस्कार* माना जाता है *नामकरण संस्कार* बालक के जीवन पर उसके नाम का बहुत बड़ा पड़ता है ! कहा गया है :--
*यथा नामे तथा गुणे*
*नामकरण संस्कार* के समय शिशु के अन्दर मौलिक कल्याणकारी प्रवृत्तियों, आकांक्षाओं के स्थापन, जागरण के सूत्रों पर विचार करते हुए उनके अनुरूप वातावरण बनाना चाहिए | शिशु कन्या है या पुत्र, इसके भेदभाव को स्थान नहीं देना चाहिए ! भारतीय संस्कृति में कहीं भी इस प्रकार का भेद नहीं है ! शीलवती कन्या को दस पुत्रों के बराबर कहा गया है:--
*'दश पुत्र-समा कन्या यस्य शीलवती सुता*
यह *संस्कार* कराते समय शिशु के अभिभावकों और उपस्थित व्यक्तियों के मन में शिशु को जन्म देने के अतिरिक्त उन्हें श्रेष्ठ व्यक्तित्व सम्पन्न बनाने के महत्त्व का बोध होता है | यह *संस्कार* जन्म के दसवें दिन किया जाता है। उस दिन जन्म सूतिका का निवारण - शुद्धिकरण भी किया जाता है यह प्रसूति कार्य घर में ही हुआ हो, तो उस कक्ष को लीप-पोतकर, धोकर स्वच्छ करना चाहिए। शिशु तथा माता को भी स्नान कराके नये स्वच्छ वस्त्र पहनाये जाते हैं ! उसी के साथ यज्ञ एवं संस्कार का क्रम वातावरण में दिव्यता घोलकर अभिष्ट उद्देश्य की पूर्ति करता है ! यदि दसवें दिन किसी कारण नामकरण संस्कार न किया जा सके तो अन्य किसी दिन, बाद में भी उसे सम्पन्न करा लेना चाहिए ! घर पर, प्रज्ञा संस्थानों अथवा यज्ञ स्थलों पर भी यह *संस्कार* कराया जाना उचित है |
यदि दसवें दिन *नामकरण* घर में ही कराया जा रहा है, तो वहाँ सयम पर स्वच्छता का कार्य पूरा कर लिया जाए तथा शिशु एवं माता को समय पर *संस्कार* के लिए तैयार कराया जाए !
*व्यवस्था:-*
अभिषेक के लिए कलश-पल्लव युक्त हो तथा कलश के कण्ठ में कलावा बाँध हो, रोली से ॐ, स्वस्तिक आदि शुभ चिह्न बने हों !
शिशु की कमर में बाँधने के लिए मेखला (करधनी) सूती या रेशमी धागे की बनी होती है न हो, तो कलावा के सूत्र की बना लेनी चाहिए !
मधु प्राशन के लिए शहद तथा चटाने के लिए चाँदी की चम्मच , वह न हो, तो चाँदी की सलाई या अँगूठी अथवा स्टील की चम्मच आदि का प्रयोग किया जा सकता है |
*संस्कार* के समय जहाँ माता शिशु को लेकर बैठे, वहीं वेदी के पास थोड़ा सा स्थान स्वच्छ करके, उस पर स्वस्तिक चिह्न बना दिया जाए ! इसी स्थान पर बालक को भूमि स्पर्श कराया जाय !
*नाम घोषणा* के लिए थाली, सुन्दर तख्ती आदि हो ! उस पर निर्धारित *नाम* पहले से सुन्दर ढंग से लिखा रहे !चन्दन रोली से लिखकर, उस पर चावल तथा फूल की पंखुड़ियाँ चिपकाकर, साबूदाने हलके पकाकर, उनमें रंग मिलाकर, उन्हें अक्षरों के आकार में चिपकाकर, स्लेट या तख्ती पर रंग-बिरंगी खड़िया के रंगों से नाम लिखे जा सकते हैं ! थाली, ट्रे या तख्ती को फूलों से सजाकर उस पर एक स्वच्छ वस्त्र ढककर रखा जाए !
*नाम घोषणा* के समय उसका अनावरण किया जाए !
विशेष आहुति के लिए खीर, मिष्टान्न या मेवा जिसे हवन सामग्री में मिलाकर आहुतियाँ दी जा सकें !
श्रेष्ठ विद्वान के द्वारा निर्धारित क्रम से मंगलाचरण, षट्कर्म, संकल्प, यज्ञोपवीत परिवर्तन, कलावा, तिलक एवं रक्षा-विधान तक का क्रम पूरा करके विशेष कर्मकाण्ड प्रारम्भ किया जाए |
सर्वप्रथम मन्त्र के साथ बालक का संस्कार कराने वालों तथा उपकरणों पर सिंचन किया जाए ! भावना करें कि जो जीवात्मा शिशु के रूप में ईश्वर प्रदत्त सुअवसर का लाभ लेने अवतरित हुई है, उसका अभिनन्दन किया जा रहा है |
ब्राह्मण मन्त्रपाठ करें:--
*ॐ आपो हिष्ठा मयोभुवः ता नऽऊर्जे दधातन, महे रणाय चक्षसे !*
*ॐ यो वः शिवतमो रसः, तस्य भाजयतेह नः। उशतीरिव मातरः !*
*ॐ तस्माऽअरंगमामवो, यस्य क्षयाय जिन्वथ। आपो जन यथा च नः!!*
अगले क्रम में *संस्कार* के लिए तैयार मेखला शिशु की कमर में बाँधी जाय ! इसे कहीं-कहीं कौंधनी, करधनी, छूटा आदि भी कहा जाता है | मन्त्र के साथ शिशु के पिता उसकी कमर में मेखला बाँधें ! भावना करें कि इस संस्कारित सूत्र के साथ बालक में तत्परता, जागरूकता, संयमशीलता जैसी सत्प्रवृत्तियों की स्थापना की जा रही है !
ब्राह्मण मन्त्रपाठ करें:--
*ॐ इयं दुरुक्तं परिबाधमाना, वर्णं पवित्रं पुनतीमऽआगात् ! प्राणापानाभ्यां बलमादधाना, स्वसादेवी सुभगा मेखलेयम् !*
इसके शहद चटाने की क्रिया की जाय ! शहद चटाने में मधुर भाषण की शिक्षा का समावेश है। सज्जनता की पहचान किसी व्यक्ति की वाणी से ही होती है !
थोड़ा-सा शहद निर्धारित उपकरण से बालक को चटाया जाए घर के किसी बुजुर्ग या उपस्थित समुदाय में से किन्हीं चरित्र निष्ठ संभ्रान्त व्यक्ति द्वारा भी यह कार्य कराया जा सकता है | भावना की जाए कि सभी उपस्थित परिजनों के भाव संयोग से बालक की जिह्वा में शुभ, प्रिय, हितकरी, कल्याणप्रद वाणी के संस्कार स्थापित किये जा रहे हैं |
ब्राह्मण मन्त्रपाठ करें:--
*ॐ प्रते ददामि मधुनो घृतस्य, वेदं सवित्रा प्रसूतं मघोनाम् ! आयुष्मान् गुप्तो देवताभिः, शतं जीव शरदो लोके अस्मिन् !*
इसके बाद बालक को सूर्य का दर्शन कराया जाया है ! सूर्य गतिशीलता, तेजस्विता प्रकाश एवं ऊष्णता का प्रतीक है। उसकी किरणें इस संसार में जीवन संचार करती है ! बालक में भी इन गुणों का विकास होना चाहिए ! इसी भावना से यह क्रिया की जाती है ! यदि सूर्य को देखने की स्थिति हो, तो माता शिशु को बाहर ले जाकर सूर्य दर्शन कराए ! सूर्य देव को नमस्कार करें ! किसी कारण संस्कार के समय सूर्य दृश्यमान न हो, तो उनका ध्यान करके नमस्कार करें !
ब्राह्मण मन्त्रपाठ करें:--
*ॐ तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत् ! पश्येम शरदः शतं, जीवेम शरदः शत, शृणुयाम शरदः शतं, प्र ब्रवाम शरदः शतमदीनाः, स्याम शरदः शतं, भूयश्च शरदः शतात् !*
सूर्यदर्शन के बाद भूमि पूजन करके पहले से भूमि पर बने चौक के बीच में बालक को लिटाये ! बालक को सूतक के दिनों में जमीन पर नहीं बिठाते। नामकरण के बाद उसे भूमि पर बिठाते हैं ! शिशु के माता-पिता हाथ में रोली, अक्षत, पुष्प आदि लेकर मन्त्र के साथ भूमि का पूजन करें ! भावना की जाए कि धरती माता से इस क्षेत्र में बालक के हित के लिए श्रेष्ठ संस्कारों को घनीभूत करने की प्रार्थना की जा रही है ! अपने आवाहन-पूजन से उस पुण्य-प्रक्रिया को गति दी जा रही है !
ब्राह्मण मन्त्रपाठ करें:--
*ॐ मही द्यौः पृथिवी च न ऽ, इमं यज्ञं मिमिक्षताम् ! पिपृतां नो भरीमभिः ! ॐ पृथिव्यै नमः।*
माता बालक को मन्त्रोच्चार के साथ उस पूजित भूमि पर लिटा दे ! सभी लोग हाथ जोड़कर भावना करें कि जैसे माँ अपनी गोद में बालक को अपने स्नेह-पुलकन के साथ जाने-अनजाने में श्रेष्ठ प्रवृत्ति और गहरा सन्तोष देती रहती है, वैसे ही माता वसुन्धरा इस बालक को अपना लाल मानकर गोद में लेकर धन्य बना रही है !
*ब्राह्मण मन्त्रपाठ करें:--
*ॐ स्योना पृथिवी नो, भवानृक्षरा निवेशनी ! यच्छा नः शर्म सप्रथाः। अप नः शोशुचदघम् !*
अब *नामकरण*मन्त्रोच्चार के साथ नाम से सज्जित थाली या तख्ती (जिस पर बालक का नाम लिखा गया हो) पर से वस्त्र हटाया जाए ! सबको दिखाया जाए ! *यह कार्य आचार्य या कोई सम्माननीय व्यक्ति करें !* भावना की जाए कि यह घोषित नाम ऐसे व्यक्तित्व का प्रतीक बनेगा, जो सबका गौरव बढ़ाने वाला होगा !
ब्राह्मण मन्त्रपाठ करते हुए नाम की पूजा करें:-
*ॐ मेधां ते देवः सविता, मेधां देवी सरस्वती ! मेधां ते अश्विनौ देवौ, आधत्तां पुष्करस्रजौ*
*नामकरण* के बाद माता बालक को पहले उसके पिता की गोद में दे ! पिता अन्य परिजनों को दे ! शिशु एक-दूसरे के हाथ में जाता स्नेह-दुलार पाता हुआ पुनः माँ के पास पहुँच जाए ! भावना की जाए कि बालक सबका स्नेह पात्र बन रहा है, सबके स्नेह-अनुदानों का अधिकार पा रहा है !
ब्राह्मण मन्त्रपाठ करें:--
*ॐ अथ सुमंगल नामानह्वयति, बहुकार श्रेयस्कर भूयस्करेति ! यऽएव वन्नामा भवति, कल्याण मेवैतन्मानुष्यै वाचो वदति !!*
तदन्तर कोई वयोवृद्ध व्यक्ति बच्चे को गोदी में लेकर घर से बाहर ले जाय और उसे बाहर का खुला संसार, खुला वातावरण दिखाये !
ब्राह्मण मन्त्रपाठ करें:--
*ॐ हिरण्यगर्भः समर्वत्तताग्रे, भूतस्य जातः परितेकऽआसीत् ! स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां, कस्मै देवाय हविषा विधेम !!*
*इसके बाद अग्नि स्थापन से लेकर गायत्री मन्त्र की आहुतियाँ पूरी करने का क्रम चलाया जाए, तब विशेष आहुतियाँ दी जाएँ !*
हवन पूर्णाहुति के बाद आचार्य बालक को गोद में लें ! उसके कान के पास मन्त्र बोलें:--
*ॐ शुद्धोऽसि बुद्धोऽसि निरंजनोऽसि, संसारमाया परिवर्जितोऽसि ! संसारमायां त्यज मोहनिद्रां, त्वां सद्गुरुः शिक्षयतीति सूत्रम् !!*
सभी लोग भावना करें कि भाव-भाषा को शिशु हृदयंगम कर रहा है और श्रेष्ठ सार्थक जीवन की दृष्टि प्राप्त कर रहा है !
विसर्जन के पूर्व आचार्य, शिशु एवं अभिभावकों को पुष्प, अक्षत, तिलक सहित आशीर्वाद दें, फिर सभी मंगल मन्त्रों के साथ अक्षत, पुष्प वृष्टि करके आशीर्वाद दें !
*हे बालक ! त्वमायुष्मान् वर्चस्वी, तेजस्वी श्रीमान् भूयाः !*
*इसके साथ ही नामकरण संस्कार के पूर्ण होने की घोषणा करें*
*चिंता:----*
*आज न तो नामकरण संस्कार ही हो रहे हैं और न ही बच्चों के नाम ही अपने महापुरुषों के नाम पर रखे जा रहे हैं ! जैसा कि बताया गया है कि नाम का प्रभाव जीवन पर पड़ता है तो आज जब नाम ही निरुद्देश्य रखे जा रहे हैं तो उनका प्रभाव भी वैसा ही देखने को मिल रहा है !*