*२- पुंसवन् संस्कार*
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संस्कारों की कड़ी में *द्वितीय ,पुंसवन संस्कार* कहा गया है ! *पुंसवन संस्कार* क्या है ? यह बताते हुए *स्मृति संग्रह* में लिखा गया है :---
*गर्भाद् भवेच्च पुंसूते पुंस्त्वस्य प्रतिपादनम्*
*अर्थात्:-* इस गर्भ से पुत्र उत्पन्न हो , ऐसी कामना के साथ यह संस्कार किया जाता है !
गर्भ सुनिश्चित हो जाने पर तीन माह पूरे हो जाने तक *पुंसवन संस्कार* कर देना चाहिए क्योंकि तीसरे माह से गर्भ में आकार और संस्कार दोनों अपना स्वरूप पकड़ने लगते हैं ! अस्तु, उनके लिए आध्यात्मिक उपचार समय पर ही कर दिया जाना चाहिए |
*पुंसवन संस्कार विधि*
प्राचीनकाल के नियमों के अनुसार वट वृक्ष की जटाओं के मुलायम सिरों का छोटा टुकड़ा , गिलोय , पीपल की कोपल-मुलायम पत्ते लाकर रखे जाएँ ! सबका थोड़ा-थोड़ा अंश पानी के साथ सिल पर पीसकर एक कटोरी में उसका घोल तैयार रखा जाए ! साबूदाने या चावल की खीर तैयार रखी जाए ! जहाँ तक सम्भव हो सके इसके लिए गाय का दूध प्रयोग करें खीर गाढ़ी तैयार हो जाने पर निर्धारित क्रम में मंगलाचरण, षट्कर्म, संकल्प, यज्ञोपवीत परिवर्तन, कलावा-तिलक एवं रक्षाविधान तक का यज्ञीय क्रम पूरा करके नीचे लिखे क्रम से पुंसवन संस्कार के विशेष कर्मकाण्ड कराना चाहिए ! औषधि की कटोरी *(जिसमें वट , गिलोय , पीपल आदि का घोल है)* गर्भिणी हाथ में पकड़े |
ब्राह्मण मन्त्र बोलें :-
*ॐ अद्भ्यः सम्भृतः पृथिव्यै रसाच्च, विश्वकर्मणः समर्वत्तताग्रे !*
*तस्य त्वष्टा विदधद्रूपमेति, तन्मर्त्यस्य देवत्वमाजानमग्रे !!*
इसके बाद गर्भिणी नासिका के पास औषधि को ले जाकर धीरे-धीरे श्वास के साथ उसकी गन्ध धारण करे ! भावना की जाए कि औषधियों के श्रेष्ठ गुण और संस्कार खींजे जा रहे हैं ! वेद मन्त्रों तथा दिव्य वातावरण द्वारा इस उद्देश्य की पूर्ति में सहयोग मिल रहा है।
*यह संस्कार करना क्यों आवश्यक है ?*
*गर्भ कौतुक नहीं, एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है* उसे समझकर उस जिम्मेदारी को उठाने की तैयारी मानसिक तथा व्यावहारिक क्षेत्र में की जाती थी गर्भ के माध्यम से जो जीव प्रकट होना चाहता है, उसे ईश्वर का प्रतिनिधि मानकर उसके लिए समुचित व्यवस्था बनाकर, उसके स्वागत की तैयारी की जाती है ! *गर्भ पूज्य है* कोई पूज्य व्यक्ति सामने हो, तो अपने स्वभाव तथा परस्पर के द्वेष-वैर को भुलाकर भी शालीनता का वातावरण बनाया जाता है ! *गर्भ का पूजन केवल एक सामयिकता औपचारिकता नहीं बल्कि संस्कारित करने के लिए पूजा उपासना का सतत प्रयोग चला करता था ! घर में आस्तिकता का वातावरण होना चाहिए गर्भिणी स्वयं भी नियमित उपासना करे उसे आहार और विश्राम जितना ही महत्त्वपूर्ण मानकर चलाया जाए अधिक न बने, तो गायत्री चालीसा पाठ एवं पंचाक्षरी मन्त्र 'ॐ र्भूभुवः स्वः' का जप ही कर लिया करे !*
जिस दिन *पुंसवन संस्कार* करना हो उस दिन *गर्भ पूजन* के लिए गर्भिणी के घर परिवार के सभी वयस्क परिजनों के हाथ में अक्षत, पुष्प आदि देकर मन्त्रोच्चारण करे :-
*ॐ सुपर्णोऽसि गरुत्माँस्त्रिवृत्ते शिरो, गायत्रं चक्षुबरृहद्रथन्तरे पक्षौ !* *स्तोमऽआत्मा छन्दा स्यंगानि यजूषि नाम*
*साम ते तनूर्वामदेव्यं, यज्ञायज्ञियं पुच्छं धिष्ण्याः शफाः!*
*सुपर्णोऽसि गरुत्मान् दिवं गच्छ स्वःपत !!*
मंत्र समाप्ति पर एक तश्तरी में सभी लोगों का अक्षत पुष्प एकत्रित करके गर्भिणी को दिया जाए ! वह उसे पेट से स्पर्श करके रख दे ! भावना की जाए, गर्भस्थ शिशु को सद्भाव और देव अनुग्रह का लाभ देने के लिए पूजन किया जा रहा है ! गर्भिणी उसे स्वीकार करके गर्भ को वह लाभ पहुँचाने में सहयोग कर रही है ! इसके बाद *गर्भिणी अपना दाहिना हाथ पेट पर रखे !* पति सहित परिवार के सभी परिजन अपना हाथ गर्भिणी की तरफ आश्वासन की मुद्रा में उठाएँ !
*मन्त्र पाठ हो:--*
*ॐ यत्ते ससीमे हृदये हितमन्तः प्रजापतौ !*
*मन्येऽहं मां तद्विद्वांसं, माहं पौत्रमघन्नियाम् !!*
उपस्थित सभी लोग कामना करें कि गर्भिणी गर्भस्थ शिशु तथा दैवी सत्ता को आश्वस्त कर रही है ! सभी परिजन उसके इस प्रयास में भरपूर सहयोग देने की शपथ ले रहे हैं ! इस शुभ संकल्प में दैवी शक्तियाँ सहयोग दे रही है ! इस श्रेष्ठ संकल्प-पूर्ति की क्षमता दे रही हैं | आश्वास्तना के बाद अग्नि स्थापन से लेकर गायत्री मन्त्र की आहुतियाँ पूरी करने का क्रम चलाएँ | उसके बाद विशेष आहुतियाँ प्रदान की जायँ
*ॐ धातादधातु दाशुषे, प्राचीं जीवातुमक्षिताम् ! वयं देवस्य धीमहि, सुमतिं वाजिनीवतः स्वाहा ! इदं धात्रे इदं न मम !!*
विशेष आहुतियों के बाद शेष बची खीर प्रसाद रूप में एक कटोरी में गर्भिणी को दी जाए , वह उसे लेकर मस्तक से लगाकर रख ले , सारा कृत्य पूरा होने पर पहले उसी का सेवन करे *भावना करे कि यह यज्ञ का प्रसाद दिव्य शक्ति सम्पन्न है इसके प्रभाव से राम-भरत जैसे नर पैदा होते हैं !* ऐसे संयोग की कामना की जा रही है !
ब्राह्मण मन्त्रोच्चारण करें:--
*ॐ पयः पृथिव्यां पयऽओषधिषु, पयो दिव्यन्तरिक्षे पयोधाः! पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम् !!*
सारा कृत्य पूरा हो जाने पर विसर्जन के पूर्व आशीर्वाद दिया जाए ! आचार्य गर्भिणी को शुभ मन्त्र बोलते हुए फल-फूल आदि दें , गर्भिणी साड़ी के आँचल में ले ! अन्य बुजुर्ग भी आशीर्वाद दे सकते हैं ! सभी लोग पुष्प वृष्टि करें। गर्भिणी एवं उसका पति बड़ों के चरण स्पर्श करें, सबको नमस्कार करें !
*चिन्ता:--*
*आज आधुनिक भारतीय समाज के अन्धाधुन्ध पाश्चात्य संस्कृति के अनुसरण के फलस्वरूप सन्तानोत्पत्ति को भी वैयक्तिक मनोरंजन का साधन मान लिया गया है ! पत्नी को अपनी कामेच्छा शान्त करने के साधन के रूप में देखा जाने लगा है ! अपने संस्कारों को भुला देने का परिणाम आज हम सबके समक्ष दिखाई देने लगा है !*
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