🌼 *हमारे संस्कार* 🌼
🌹 *प्रथम - भाग* 🌹
मानव जीवन में *संस्कारों का बहुत महत्त्व है* बिना संस्कार के मनुष्य पशु के ही समान होता है ! इसी को ध्यान में रखते हुए आदिकाल से सनातन धर्म में *संस्कारों की आधारशिला* रखी गयी थी ! *संस्कार के ही माध्यम से व्यक्ति में गुणों का आरोपण किया जा सकता है !* हमारे शास्त्रों का मानना है कि बिना *संस्कार* के जीवन में न तो कुछ प्राप्त किया जा सकता है और न ही मनुष्य का बोद्धिक , आध्यात्मिक एवं भौतिक विकास ही हो सकता है ! *संस्कार क्या है ?* इसका वर्णन हमें *ब्रह्मसूत्र भाष्य* में देखने को मिलता है ! जहाँ स्पष्ट लिखा है :---
*"संस्कारो हि नाम संस्कार्यस्य गुणाधानेन् वा स्याद्योषाय नयनेन् वा"*
*अर्थात्:-* व्यक्ति में गुणों का आरोपण करने के लिए जो कर्म किया जाता है *उसे संस्कार कहते हैं !*
*संस्कारों के महत्त्व* को समझाते हुए कहा गया है कि :--
*जन्मना जाते शूद्र: संस्काराद्दिवज उच्यते*
*अर्थात्:-* जन्म से सभी शूद्र होते हैं और *संस्कारों* के माध्यम से ही व्यक्ति को द्विज बनाया जाता है !
आज भले ही *संस्कारों का लोप* होता दिख रहा हो परंतु यही *संस्कार* हमें उच्चता प्रदान करते रहे हैं ! *संस्कारों के लोप* होने का कारण आज लोगों का अज्ञान भी है ! *संस्कारों के महत्त्व* को हम भूल न जायं इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए *१६ संस्कारों* पर आधारित यह श्रृंखला लिखने का सूक्ष्म प्रयास मैं कर रहा हूँ ! आशा है कि आप सभी का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होगा |
प्राचीन लोखों से यह ज्ञात होता है कि प्राचीन काल में *संस्कारों की संख्या भी लगभग चालीस थी* जैसे-जैसे समय बदलता गया तथा व्यस्तता बढती गई तो कुछ *संस्कार* स्वत: विलुप्त हो गये। *गौतम स्मृति* में *चालीस प्रकार के संस्कारों* का उल्लेख है | *महर्षि अंगिरा* ने इनका अंतर्भाव *पच्चीस संस्कारों* में किया | *व्यास स्मृति* में *सोलह संस्कारों* का वर्णन हुआ है | इनमें *पहला गर्भाधान संस्कार* और मृत्यु के उपरांत *अंत्येष्टि अंतिम संस्कार है |*
विभिन्न धर्मग्रंथों में *संस्कारों* के क्रम में थोडा-बहुत अन्तर है , लेकिन प्रचलित संस्कारों के क्रम में *गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, विद्यारंभ, कर्णवेध, यज्ञोपवीत, वेदारम्भ, केशान्त, समावर्तन, विवाह तथा अन्त्येष्टि ही मान्य है |*
*गर्भाधान से विद्यारंभ* तक के संस्कारों को *गर्भ संस्कार* भी कहते हैं | इनमें पहले तीन *(गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन)* को *अन्तर्गर्भ संस्कार* तथा इसके बाद के छह *संस्कारों को बहिर्गर्भ संस्कार* कहते हैं | *गर्भ संस्कार* को दोष मार्जन अथवा *शोधक संस्कार* भी कहा जाता है | *दोष मार्जन संस्कार* का तात्पर्य यह है कि शिशु के पूर्व जन्मों से आये धर्म एवं कर्म से सम्बन्धित दोषों तथा गर्भ में आई विकृतियों के मार्जन के लिये संस्कार किये जाते हैं | बाद वाले *छह संस्कारों को गुणाधान संस्कार कहा जाता है |*
*इस प्रकार सनातन धर्म के संस्कार बहुत ही दिव्य एवं महत्त्वपूरण हैं ! प्रत्येक व्यक्ति को अपने संस्कारों के विषय में जानना चाहिए !*