🌼 *हमारे संस्कार* 🌼
🌹 *चतुर्थ - भाग* 🌹
३-- सीमन्तोन्नयन संस्कार*
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*सोलह संस्कारों* की श्रृंखला में *तीसरा संस्कार ‘सीमन्तोन्नयन’ है !* गर्भिणी स्त्री के मन को सन्तुष्ट और अरोग रखने तथा गर्भ की स्थिति को स्थायी एवं उत्तरोत्तर उत्कृष्ट बनते जाने की शुभाकांक्षा-सहित यह संस्कार किया जाता है |
*पुंसवन वत् प्रथमगर्भे षष्ठेऽष्टमेवा मासे*
*अर्थात्:-* प्रथम गर्भ स्थिति से *६ठे या आठवें महीने* यह *संस्कार* किया जाता है | *सीमन्तोन्नयन* शब्द का अर्थ है *स्त्रियों के सिर की मांग* | यह एक साधारण प्रथा है कि सौभाग्यवती स्त्रियां ही मांग भरती है , यह उनकी प्रसन्नता, संतुष्टि आदि का सूचक है , यहां पति अपने हाथ से पत्नी के बाल संवार कर मांग में सिंदूर दान करता है |
*सा यद्यदिच्छेत्ततदस्य दद्यादन्यत्र गर्भापघातकरेभ्यो भावेभ्यः*
*अर्थात् :-* गर्भवती स्त्री, गर्भविनष्ट करने वाली वस्तुओं को छोड़कर जो भी कुछ मांगे वह देना चाहिए !
‘गर्भ एक नवसृजन है अत: सृजनात्मकता की आधार स्त्री को प्रसन्न रखना पुरुष का कर्तव्य है ! यथा :-
*सौमनस्यं गर्भधारकारणम् !’’ लब्धदौहृदा तु वीर्यवन्तं चिरायुषं च पुत्रं प्रसूते !*
*अर्थात्:-* गर्भवती स्त्री को प्रसन्न रखना चाहिए ! उसकी इच्छा पूरी होने से सन्तान वीर्यवती और दीर्घायु होती है |
*सीमन्तोन्नयन संस्कार* में शुभ नक्षत्रों मृगशिरा , मूल , पुष्य , श्रवण , पुनर्वसु , हस्त तथा गुरुवार , रविवार और मंगलवार को ही ग्रहण करना चाहिए ! *विशेष ध्यान देना चाहिए कि* इस संस्कार में ४'९'१४'३०'१२'६'८वीं तिथि को नहीं लेना चाहिए ! *संस्कार* इन मास के स्वामी के बलवान होने पर करने से विशेष शुभकारी होता है ! जिस समय शुभ ग्रह गोचर में केन्द्र व त्रिकोण में हो वह लग्न समय इस *संस्कार* कार्य के लिए अनुकूल होता है ! इस समय ६ , ८ , तथां १२वाँ घर रिक्त हो तो और भी शुभ रहता है |
जिस दिन *सीमन्तोन्नयन संस्कार* करना हो यजमान पत्नीसहित मंगल द्रव्ययुत जल से स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर शुभासन पर बैठकर आचमन प्राणायाम कर निम्नलिखित संकल्प पढ़ेः-
*देश-काल का कीर्तन कर बोलें :--*
*अस्याः मम भार्यायाः गर्भा- तदा चास्य चेतना प्रव्यक्ता भवति ! ततष्च प्रभृति स्पन्दते, अभिलाषं पंचेन्द्रियार्थेषु करोति ! मातजं चास्य हृदयं तद्रसहारिणीभिः धमनीभिः मातृहृदयेनाभिसम्बद्धं भवति ! तस्मात्तयोस्ताभिः श्रद्धा सम्पद्यते ! तथा च दौहृद्यां ‘नारी दोहृदिनी’ त्याचक्षते ! सा प्राप्तदौहृदा पुत्रं जनयेत् गुणान्वितम् ! अलब्धादौहृदा गर्भं लभेतात्मनि वा भयम् ! अष्टमेऽस्थिरी भवति ओजः ! तत्र जातष्चेन्न जीवेन्निरोजस्त्वात् ! नैर्ऋतभागत्वाच्च वयवेभ्यस्तेजोवृद्धयर्थं क्षेत्रगर्भयोः संस्कारार्थं गर्भसमद्भवैनो निबर्हणपुरस्सरं श्रीपरमेष्वरप्रीत्यर्थं सीमन्तोन्नयनाख्यं संस्कारकर्म करिष्ये ! तत्र निर्विघ्नार्थं गणपतिपूजनं, स्वस्तिपुष्याहवाचनं मातृकानवग्रहादिपूजनं यथाशक्ति सांकल्पिकं नान्दीश्राद्धं होमं च करिष्ये !*
संकल्प लेकर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. यह पूजा गर्भस्थ शिशु की रक्षा हेतु की जाती है ! इसमें भगवान विष्णु की शंख, चक्र, गदा, पदम धारण किए हुए मूर्ति बनवा कर षोडशोपचार से इसका पूजन करके परिधान और दक्षिणा सहित योग्य ब्राह्मण को भेंट करनी चाहिए ! ऐसा करना गर्भ में पल रहे शिशु एवं माता दोनों के लिए ही बहुत शुभदायक होता है | इस *संस्कार* का एक महत्व यह भी माना जाता है कि इससे शिशु का भी मानसिक विकास होता है , क्योंकि आठवें माह में वह माता को सुनने व समझने लगता है इसलिये मां का मानसिक स्वास्थ्य यदि बेहतर होगा तो शिशु का भी बेहतर बना रहता है !
पूजन के समय ही *गूलर की एक टहनी* भगवान विष्णु के पास स्थापित करनी चाहिए ! पूजन के बाद हवन कार्य सम्पन्न करें ! कुछ विधानों में खिचड़ी से हवन करना बताया गया है ! शेष बची खिचड़ी को प्रसाद रूप में रख दे ! हवनोपरान्त पहले से स्थापित *गूलर की टहनी* हाथ में लेकर उसी से पति पत्नी की मांग निकाले व साथ में :-
*ॐ भूर्विनयामि, ॐ भूर्विनयामि, ॐ भूर्विनयामि*
का जाप करें
पत्नी की माँग निकालकर पति उसी *गूलर की टहनी* से भाग भरे उसके पश्चात पति इस मंत्र का उच्चारण करे--
*येनादिते: सीमानं नयाति प्रजापतिर्महते सौभगाय !*
*तेनाहमस्यौ सीमानं नयामि प्रजामस्यै जरदष्टिं कृणोमि !!*
*अर्थात्:-* देवताओं की माता अदिति का *सीमंतोन्नयन* जिस प्रकार उनके पति प्रजापति ने किया था उसी प्रकार अपनी संतान के जरावस्था के पश्चात तक दीर्घजीवी होने की कामना करते हुए अपनी गर्भिणी पत्नी का *सीमंतोन्नयन* संस्कार करता हूं | इस विधि को पूरा करने के पश्चात गर्भिणी स्त्री को किसी वृद्धा ब्राह्मणी या फिर परिवार या आस-पड़ोस में किसी बुजूर्ग महिला का आशीर्वाद लेना चाहिये | आशीर्वाद के पश्चात गर्भवती महिला को *खिचड़ी में अच्छे से घी मिलाकर खिलाये जाने का विधान भी है !*
इस विषय में हमारे शास्त्र कहते हैं:-
*किं पश्यास्सीत्युक्तवा प्रजामिति वाचयेत् तं सा स्वयं !*
*भुज्जीत वीरसूर्जीवपत्नीति ब्राह्मण्यों मंगलाभिर्वाग्भि पासीरन् !!*
*अर्थात्:-* खिचड़ी खिलाते समय स्त्री से प्रश्न किया गया कि तुम क्या देखती हो तो वह जवाब देते हुए कहती है कि संतान को देखती हूं इसके पश्चात वह खिचड़ी का सेवन करती है | *संस्कार* में उपस्थित स्त्रियां भी फिर आशीर्वाद देती हैं कि तुम्हारा कल्याण हो, तुम्हें सुंदर स्वस्थ संतान की प्राप्ति हो व तुम सौभाग्यवती बनी रहो |
*इस प्रकार परिवार के बुजुर्गों एवं ब्राह्मणों के आशीर्वाद के साथ ही यह संस्कार सम्पन्न होता है ! यह सारे संस्कार किसी योग्य व शिक्षित ब्राह्मण के माध्यम से ही कराना चाहिए*
*चिंता:--*
*आज गर्भधारण के बाद स्त्रियाँ न तो धार्मिक पुस्तकें पढ़ती हैं और न ही कोई संस्कार किया जाता है यही कारण है कि आज जन्म लेने वाला शिशु जन्म से ही विकृत मानसिकता वाला होता है ! माँ जो करती है उसका प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है ! यह आज की महिलायें एवं पुरुष दोनों ही भूल चुके हैं इसीलिए समाज में असंस्कारी लोग बढ़ गये हैं*