जाड़ों का मौसम
भोर का धुंधलका
अभी छाया हुआ है,
सूर्योदय में
अभी देर है,
और मैं चल पड़ा हूं
पेड़ों से लिपटे
कोहरे से बतियाने,
शाखाओं पर ठहरी
ओस को छुने,
कलियों पर ठहरे
रजत कणों से खेलने,
मैं लौटूंगा
शीतल सूर्यदेव के
सौन्दर्य को निहारते हुवे
गुनगुनी
गुलाबी धूप से सजी
पगडंडी पर चलते हुवे कि
आ गया है
जाड़ों का मौसम,
मेरा प्रिय
मेरा मनभावन
जाड़ों का मौसम ।
.......
माणक चन्द सुथार, बीकानेर।