कल रात
आंधी बहुत जोर से चली,
वृक्ष वो सभी उखड़ गये
जो तन कर खड़े रहे
अभिमान से भरे रहे,
भोर की उजली किरणों के संग
हरि घास
आज भी
लहलहा रही थी,
आज भी
मुस्करा रही थी,
कल की तरह
कि
विनम्रता भी
उसके स्वभाव का हिस्सा थी
स्वाभिमान के साथ ।
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-माणक चन्द सुथार, बीकानेर ।
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