समुद्र
कल
समुद्र दर्शन का सुअवसर समुद्र
पहली बार प्राप्त हुआ,
विस्मित हुई नजरें
और ढूंढने लगी नजरें
ओर-छोर कि
चुलबली लहर ने उछलकर
भीगो दिया तन बदन को,
पल
दो पल में
नीर तो छिटक गया तन से
पर भर गया रोमांच मन में,
रोमांच जो
प्रकृति के स्नेहिल स्पर्श से उपजा,
रोमांच जो
प्रकृति की अलौकिकता,
अद्भुतता,
विराटता व
विलक्षणता से हुए साक्षात्कार से
तन-मन में तरंगित हुआ ।
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माणक चन्द सुथार, बीकानेर (राज)