अगले दिन नीलिमा ने चम्पा से ,धीरेन्द्र की नाराज़गी का कारण पूछा किन्तु वो बता न सकी।किन्तु कुछ न कुछ तो बताना ही था ,तब वह बोली -वो तो साहब से, थोड़े पैसे उधार मांग रही थी।
नीलिमा बड़े प्यार से बोली -यदि तुम्हें पैसों की आवश्यकता है तो मैं देती हूँ ,न.... तुम मुझसे मांगती ,मैं दे देती।
नहीं रहने दीजिये ,दीदी !कहकर उसकी नजरों के सामने से हट गयी। वो तो अपने को, जैसे इस घर की सदस्या समझने लगी थी। नीलिमा अब पूर्णतः स्वस्थ थी ,अब वो अपना कार्य बख़ूबी संभाल रही थी। धीरेन्द्र का ध्यान अब चम्पा पर कम ही रहता ,पैसे मांगने पर भी वो उसे झिड़क देता। कभी -कभी नीलिमा का बहाना बनाता।
कभी अपना दिल करता तो उसे पास बुला लेता।अकेले में तब उसे समझाता -मैं ये सब जानबूझकर करता हूँ ,ताकि नीलिमा को किसी भी तरह का शक़ न हो ,कहकर उसके अंगों से खेलते हुए अपनी वासना पूर्ति कर लेता। किन्तु उसके इतना सब समझाने पर भी अब चम्पा ,उस पर विश्वास नहीं कर पा रही थी। चम्पा की इच्छाएं बढ़ने के साथ ,अब मान -अपमान और अपना इस्तेमाल होना सब सहन तो कर रही थी किन्तु अब उसके अंदर एक नई आग धधकने लगी थी। अपमान की आग , जिस सम्मान की अपेक्षा वो कर रही थी ,उसे वो मिल नहीं रहा था। वो जो भी कार्य करती बेमन से करती।अब तो उसे नीलिमा अपनी दुश्मन नजर आती , उसके इस व्यवहार को देखकर एक दिन धीरेन्द्र ने पूछ ही लिया -आखिर तुम क्या चाहती हो ?
कहना तो ,बहुत कुछ चाहती थी किन्तु उस समय उसके पास कोई जबाब नहीं था ,उसे स्वयं ही नहीं मालूम वो क्या चाहती है ?किन्तु जैसा व्यवहार धीरेन्द्र ने नीलिमा के न रहने पर उससे किया ,उसे प्रेम दिया उसे सराहा ,वैसे प्यार की अपेक्षा उससे कर रही थी। किन्तु नीलिमा के रहते अब ये सम्भव नहीं था। अब वो अक्सर नीलिमा से रात्रि में वहीं रुकने के लिए कहती तो नीलिमा इंकार कर देती। नीलिमा सोचती -शायद इसे ,पैसों की आवश्यकता है ,इसीलिए रात्रि में रहने के लिए कहती है ,क्योंकि जितने दिनों तक भी वो रात्रि में रही ,उसे ज्यादा पैसे मिले। नीलिमा ये नहीं जानती थी कि यहाँ तो कुछ और ही ''खिचड़ी पक रही है।''
समय भी न, कितनी जल्दी ,निकल जाता है ?नीलिमा को अथर्व का इलाज़ कराते ,लगभग एक वर्ष हो गया किन्तु उसने अभी तक धीरेन्द्र को नहीं बताया। कभी -कभी उससे पैसे मांगती वो झल्लाता किन्तु इंकार नहीं करता। कभी पूछ भी लेता ,किन्तु नीलिमा घर के काम गिना देती।
धीरेन्द्र भी अपनी परेशानियों में घिरा था ,उसने भी ध्यान नहीं दिया। एक दिन धीरेन्द्र की छुट्टी थी ,वो शांत मन से ,अपनी छुट्टी व्यतीत करना चाहता था। उसने देखा ,अथर्व इतना बड़ा हो गया किन्तु जिस तरह से बेटियों में चंचलता आई वे शीघ्र ही चलने और बोलने लगीं ,इस तरह से इसका विकास नही हो रहा।नीलिमा..... नीलिमा यहाँ आओ !
जी...... कहिये !
ये अपना मुन्ना ठीक नहीं लग रहा ,जैसे ये दोनो चंचल थीं ,चलने भी लगीं थीं और बोलने भी किन्तु ये क्यों नहीं कर रहा ?मैं इसके समीप इतनी देर से बैठा हूँ ,न ही मुझे पहचानता है और एक तरफ को ही देखे जा रहा है, न ही खेल रहा है।
उसकी बातें सुनकर नीलिमा थोड़ा गंभीर हो गयी और वो सोच ही रही थी कि धीरेन्द्र को इसकी बिमारी के विषय में बताऊं या नहीं ,तभी उसकी बेटी खेलते हुए आई और बोली -मम्मा !हम बाहर घूमने कब जायेंगे ?
अभी तक तो धीरेन्द्र शांत था किन्तु आज अपने बेटे के व्यवहार को देख चिंतित था। इस तरह बेटी के आ जाने पर उसे क्रोध आया ,वो बेटियों को वैसे भी पसंद नहीं करता था ,उसे देखकर बोला -चलो भागो यहाँ से...... जब देखो ! खेलना और घूमना ,जाओ ! बैठकर पढ़ाई करो। कल्पना अपने पिता की डांट से ,खिसियाकर रो उठी। नीलिमा उसे शांत कराने लगी और उसे उठाकर ,उस कमरे से बाहर आ गयी। मन ही मन सोच रही थी -अच्छा ही हुआ ,कम से कम उसे सोचने का मौका तो मिल जायेगा कि उसे धीरेन्द्र से क्या कहना है ?
बात आई गयी हो गयी ,धीरेन्द्र फिर से अपने कार्य में लग गया किन्तु इस बीच उसने नीलिमा को सुझाव दिया ,इसे किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाओ ! ये भी कह सकते हैं ,वो मन ही मन अपने बेटे के कारण विचलित हो रहा था,चिंतित था। वो दोनों बेटियों को पहले से ही पसंद नहीं करता था ,ये बात नीलिमा भी जानती थी ,शायद यही कारण था ,नीलिमा ने अब तक से उसके बेटे की बीमारी के विषय में नहीं बताया था। किन्तु जब से उसने अपने बेटे पर ध्यान दिया है वो अपनी बेटियों को देखते ही झिड़क देता। उसके व्यवहार का ये परिवर्तन नीलिमा ने महसूस किया किन्तु एक दिन तो अति ही हो गयी ,जब उसने छोटी शिवांगी पर हाथ उठा दिया।
उस दिन नीलिमा से रहा नहीं गया और उसने धीरेन्द्र के इस व्यवहार पर उसे सुना ही दिया। ये बेचारी बच्ची कहाँ जायेंगी ?जब देखो !इन्हें देखकर कुढ़ने लगते हो। इनके बाप भी तुम्ही हो ,इनमें भी तुम्हारा ही खून दौड़ता है, हमने ही इन्हें पैदा किया है ,ये कोई जबरदस्ती आसमान से नहीं गिरीं। इतने पढ़ -लिखने के बावजूद भी तुम्हारी सोच वही है। बेटे को महत्व देना ,तुम भी अन्य लोगों की तरह ही हो। मुझे पता है ,जब तुम्हारे ही सामने ,बेटे को वो चीजें दी जाती हैं जिसका उसके मन में कोई मूल्य नहीं और बेटी को तुच्छ समझकर ,उसके लिए कुछ भी.... मैंने अपने घर में ,वो दर्द सहा है किन्तु मैंने अपने आपसे वायदा किया है ,अपनी बेटियों को सम्मान के साथ जीना सिखाऊंगी। आज तो मेरे सामने तुमने इस पर बिना बात ही हाथ उठा दिया किन्तु ये बस आख़िरी ही समझो ! लोग तो औलाद के लिए मंदिर ,मस्जिद ,दरगाहों में भटकते हैं और तुम घर की कन्याओं का अपमान कर रहे हो। तभी भगवान ने हमें इतना बड़ा दंड़ दिया जो हमें ज़िंदगीभर झेलना होगा। तुम्हारे बेटे को जीवनभर की बिमारी मिली है ,अब ये ऐसे ही रहने वाला है ,दुःख और क्रोध में वो सब कह गयी ,जिसको इतने दिनों से अपने मन की गहराई में समेटे बैठी थी।
ये तुम क्या कह रही हो ?
हाँ ,तुमने तो अभी ही उस पर ध्यान दिया किन्तु मैं ,डेढ़ साल से ये सब झेल रही हूँ ,तुम्हें नहीं बताया क्योंकि सुनकर तुम्हें दुःख होगा। मेरे लिए तो मेरे तीनों बच्चे ही मेरे हैं ,मेरी नजरों में समान हैं। सभी का दुःख मेरा अपना है ,अभी तक तो तुम्हें पता भी नहीं चला और तुम इतने परेशान हो उठे। बेटियों को भी डांटने -पीटने लगे। तब नीलिमा ने अपने मायके जाना और वापस आना और अथर्व को दिखाना सम्पूर्ण बातें धीरेन्द्र को बता दीं। नीलिमा की सारी बातें सुनकर धीरेन्द्र एकदम गंभीर हो गया और घर से बाहर आ गया।
कुछ समझ नहीं आ रहा ,वो कहाँ और किधर जाये ?उसकी आँखों से न चाहते हुए भी आंसू अपनी जगह बना नहीं पाए। क्या है ?'जिंदगी '!उसने अपने आप से ही प्रश्न किया। उसकी आँखों के आगे अपने जीवन के अनेक हिस्से घूमने लगे। जिनमें दर्द के सिवा कुछ नज़र नहीं आ रहा ,टीना का इस तरह जाना ,नीलिमा से उसको चिढ़ाने के लिए विवाह करना ताकि उसकी नजर मुझ पर रहे। उसे दिखाने के लिए ,नीलिमा को बाहर घुमाने ले जाना हालाँकि ये सब नीलिमा के साथ एक धोखा है किन्तु ये सब टीना का ध्यान अपनी और आकर्षित करने के लिए ही तो था। पिता भी बना तो दो बेटियों का ,एक बेटा भी कुदरत ने दिया तो वो भी ''अपाहिज़ '' उस बिमारी की जानकारी तो नहीं थी किन्तु उसकी नजर में जो बच्चा अपने पिता को न पहचान सके उसके साथ खेल न सके 'अपाहिज़ 'ही तो है। होगा , नीलिमा का दिल बड़ा किन्तु मेरा नहीं।
जबसे धीरेंद्र को अथर्व की बिमारी के विषय में पता चला है, वह तो दुःख के गहरे सागर में डूब गया है। आगे क्या होगा जानने के लिए पढ़ते रहिये -ऐसी भी ज़िंदगी