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अजनबी

1 अगस्त 2022

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ट्रैन में बहुत देर तक सोने के बाद जब नींद खुली, मै  अनजान से स्टेशन पर था  पहले तो समझ हीनहीं आया मैं  कहा पहुंच गया था | पिछले दो दिन से बस यूँ   सफर किये जा रहा था बिना किसी मकसद  बिना किसी कारण ,, वास्तिविकता में कारण तो  था | 

 अपनी उलझी हुई जिंदगी को कभीकभी सुझाने के लिए ,, और दिमाग की गाड़ी को वापस पटरी परलाने  के लिए मै अक्सर भाग जाता , कुछ दिन इधर उधर बिना मकसद टहलने के बाद जब काम पर वापसी करता तो मेरी ऊर्जा फिर चमकीली और सकारात्मक हो जाती | कॉर्पोरेट की दुनिया है ही ऐसी , ज  आपको अपना समय का हिसाब दुसरो को देना   होता है |

और देना पड़ेगा भाईसाहब क्यूंकि उन्होंने आपको और आपके समय को ख़रीदा हुआ है बहराल मैंने अपना समय बेचा था लेकिन जब भी  मुझे छुट्टी मिलती मै  घर जाने के बजाय ,किसी भी ट्रैनमें  यूँ ही चढ़ जाता जाता , और कुछ देर सोने के बाद जो भी पहला स्टेशन आता वहां उतर जाता जो मन करता वो करता | ये सब करके मुझे स्वतंत्र होने का एहसास होता जो मुझे बहुत सुख देता |हालांकि इस बात से मेरे माता पिता बहुत नाखुश रहते और  हमेशा मै उनकी आलोचनाओं केघेरे में रहता |

इस बार  परिस्तिथि अलग थी | मुझे नौकरी से निष्कासित कर दिया गया था | और इस बारमै  अपने गम को कम करने अपने ट्रैन रूपी हिमालय पर चढ़ गया था | ये यात्रा दूसरी यात्राओं के जैसी नहीं थी इस बार वापसी की कोई जल्दीं नहीं  थी रात  भर अच्छी तरह सोने के बाद मै जागा   तो बिखरे बालों के साथ और बढ़ी हुई दाढ़ी  के साथ मेरी बेरोजगारी को सरलता                                                                                                                                                     ,से पहचाना जा सकता था| मैंने जगा तो बगल में बैठे एक बुजुर्ग ने मुझे देख मुस्कराहट मेरी तरफ उड़ेल दी|       मैंने भी शिष्टाचार के नाते उन्हें वापस मुस्कुरा कर देखा | उन्होंने पुछा कहाँ से है आप?   जिस पर मैंने उन्हें जवाब न देते हुए दूसरी  तरफ मुँह घुमा लिया | वह क्या समझे ये तो मै  नहीं कह सकता | लेकिन उन्होंने मेरे अनसुना करने के बाद सामने की सीट पर बैठी महिला जो 50 वर्षीया रही होंगी उन्हें एक कहानी सुनाई जो मेरे लिए गुरु मंत्र का काम कर गई |

वह बोले , ,बहन जी आप जानती है जब मई 23  वर्ष का था तो मैंने बैंक के  दाखिले के लिए परीक्षा दी मै बचपन से छात्रवृत्ति प्राप्त छात्र था इसलिए बैंक की परीक्षा में अब्बल आया लेकिन उस वक़्त  छात्रवृत्ति की नोटों की गद्दी की कमी के कारन वह नौकरी किसी अन्य छात्र जो योग्य भी नहीं था उसे दे दी गई |

मैं  बहुत)     हताश हुआ  और कुछ समय अपने मामाजी के घर चला गया जो रेलवे में सरकारी मुलाजिम थे | वह रैवै की  कैंटीन का ठेका सँभालते थे | मै  बेरोजगार और खिन्न  था इसलिए मन को बदलने के लिए मामाजी की रेल कैंटीन में मदद करने लगा | कुछ ही समय मेंमुझे आभास हुआ की बाकि रेलकैंटीन    के मुक़ाबलेमामाजी की कैंटीन में खाने कीअधिक मांग थी  और लोग मुँह जवानी मामाजी का नाम जाननेलगे थे वह सब तभी आर्डर देते जब मामा सूंदरजी  लाल के नाम की पुष्टि न कर लेते |

मैंने  उत्सुकता में एक दिन मामाजी से पुछ ही लिया

मामाजी आपकी कैंटीन में तो सांस लेने की फुर्सत नहींमिलती  बाकि रेलकैंटीन में तो खाना भी फिक जाता हैलेकिन आपकी कैंटीन में काम पद जाता है | मामाजी ने जो उत्तरदियाउसने मेरी कम् के प्रति विचारधारा ही बदल दी और आज मै सरकारी बैंक का रिटायर्ड ब्रांच मैनेजर हूँ |इस बार वह बुजुर्ग मेरी तरफ घूम करबैठ गए और उनके अनुभवी हाथों को मेरे हाथ पर रखते हुए बोले

काम करने के लिए नौकरी करो जो भी करो पूरे मन से करो अपनी जान लगा दो अपने काम में ,,  फिर देखो ये काम तुम्हे कहां  से   कहाँ ले जाता है  |   लेकिन अगर तुम सिर्फवेतन के गुलाम बनकर रहोगे तो हमेशा तुम्हे काम के पीछे भागना पड़ेगा अन्यथा काम सदा तुम्हारा पीछा करेगा|

मै  नहीं जानता की उन्हें मेरेपरिस्थिति के बारे में कैसे पता चला पर उनकी अनुभवीसलाह मेरे बहुत काम आई       कभी     काम के साथ गद्दारी नहीं की और काम ने मेरे साथ हमेशाईमानदारी निभाई                                                                ,

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