अचंभा क्या है? ताजमहल का
बस तरासे चूना पत्थर ?
शायद नहीं !
किया अजूबा इसे विश्व में ,
भाव छिपा क्या इसके अंदर ?
देखा जब दूर से उस मीनार को ,
चूमते हुए गगन ,
हो रहा था मानो अवनि अंबर के चमन का मिलन ,
पड़ा दिखाई गोल गुंबद,
लिए विलक्षण रूप धरा का ,
फिर क्या ?
ताजमहल था सजग सामने,
जैसे उड़ता बादल धवल ,
दिखता जिसमें दु:ख- सुख का जग ,
भाव जानने का मन था विकल,
ध्यान आया वोह!
क्षितिज मीनार धरा सा गुंबद ,
लिए सुंदरता ताज जगत का ,
टिका हुआ जिस अदृश्य नीव पर,
वह कितना मजबूत मनोहर ,
अगम अगोचर नीव है ईश्वर ,
शान बना है प्यार जगत का ,
यही अचंभा बना ताज का ,
ना तरासे चूना पत्थर ||