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मर्यादा

15 फरवरी 2022

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रचनाएँ
मधुरिमा
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यह पुस्तक इस आशा और विश्वास के साथ लिखी गयी है कि काव्य संग्रह में निहित समस्त कविताएं हृदय की उन गहराइयों को स्पर्श करेगी जो मानव जीवन में मानवता का एहसास कराती है और लौकिक जीवन को पारलौकिक जीवन से जोड़ती है| यह सच है कि आज बदलते परिवेश में कविता की पहुंच बहुत कम होती जा रही है या पाठकों तक पहुंच ही नहीं पा रही हैं और यदि पहुंच भी रही है तो उनमें कितनी कविताएं पाठकों के दिल-दिमाक तक पहुंच रही हैं। यह बात सोंचनीय है। इस बात का ध्यान रखते हुए इस पुस्तक "मधुरिमा"में संकलित कविताएं वर्तमान समय के समाज से दूर होते सामाजिक संस्कार, प्रेम,सुसंगित व्यवहार,चाल-चलन यहां तक कि संस्कृति, सभ्यता आदि का विशेष ध्यान देते हुए कविताएं संग्रहीत किया गया है। कविता दिल का एक एहसास होती है। यह ह्रदय की वेदना,मन की कल्पना, मस्तिष्क के विचारों की उपज होती है। इस पुस्तक की समस्त कविताएं पाठक को पढ़ने के लिए किंचित भी दूर नहीं होने देगीं। साहित्य समाज का आइना होती है और संकलित कविताएं समाज के बहुआयामी प्रतिभाओं को निखारने का प्रयास करेगीं। प्रस्तुत काव्य संग्रह इस आशा और विश्वास के साथ प्रेषित किया जा रहा है कि यह प्रत्येक व्यक्ति में सामाजिक चेतना का संचार करेगी और पाठकों में कविता पढ़ने की इच्छा को प्रेरित करेगी और मेरे पाठकों को पुस्तक में निहित समस्त कविताएं पसन्द आयेंगी।
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समर्पण

16 फरवरी 2022
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◆【समर्पण】◆ प्रकृति का वह शक्तिशाली अस्तित्व जो दूसरे जीव मात्र को अस्तित्व प्रदान कर साकार रूप देता है और न केवल साकार रूप प्रदान करता है बल्कि अविकसित कली को विकसित कर उसमें सुगन्ध भरने व वातावरण को

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आभार

16 फरवरी 2022
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हर काम की तरह इस पुस्तक में निहित विचारों को लोगों तक पहुंचाने में कई लोगों का मेहनत शामिल है खास तौर पर मैं अपने भाइयों एवं बच्चों का शुक्रिया अदा करता हूं| इस काम को पूरा करने में इनके धैर्य और मदद

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कविता-बन्धन

15 फरवरी 2022
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सहसा एक दिन नजर पड़ा  छत के एक घोंसले पर लगा सोचने बड़े देर तक विधि की है कैसी माया  प्यार कहूं कि स्वार्थ कहूं? देख मां बच्चे पर छाया चिड़िया चुग चुग कर जो देती  स्नेह प्यार का एक-एक दाना 

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मैं प्रेम में पागल था

15 फरवरी 2022
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मैं प्रेम में पागल था नादान था लाचार था इस जीवन में क्या होगा कौन जानता है ? इस रहस्य से अनजान था ; हुआ तो सूरज की लाली पक्षियों का कलरव ; आ

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बढ़ते कदम

15 फरवरी 2022
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मुसाफ़िर ! तान ले यदि तीर अपना मंजिल की ओर सोंचकर उम्मीदों पर खरे उतर रहे हम , &n

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अजूबा ताजमहल

15 फरवरी 2022
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अचंभा क्या है? ताजमहल का  बस तरासे  चूना पत्थर ? शायद नहीं ! किया अजूबा इसे विश्व में , भाव छिपा क्या इसके अंदर ? देखा जब दूर से उस मीनार को , चूमते हुए गगन , हो रहा था मानो अवनि अंबर के चमन का

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हार की जीत

15 फरवरी 2022
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स्वतंत्र चिड़िया ही बनाती है घोंसला बंद पिंजरे में तो बंद हो जाती है हौसला हारी कटी पतंग समझते हैं जिसको असल में स्वतंत्र उड़ चली मनचली है कहां पर गिरेगी कहां पर रुकेगी कहां है ठिकान

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दु,:ख की बदली

15 फरवरी 2022
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          रात भयानक थी काली           न निशाकर की कर की जाली            सांय सांय सन्नाटा की ध्वनि            फैली तरु की डाली डाली            निशीथ सघन काले धन की            मन पर छाई दु:ख की बद

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नन्हा पौधा

15 फरवरी 2022
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बोया था मिट्टी में बीज  यह सोचकर पेड़ बनेगा , छाया देगा जीव जंतु को  फल भी सारा ढेर लगेगा |         रोज देखता कब निकलेगा          नन्हा मुन्ना अंग सलोना ,         हाथ पांव सा पत्ता कोमल        

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उड़ते बादल

15 फरवरी 2022
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खींच खींच ले मन को जाते मीत मनोहर वे बन जाते , उमड़- घुमड़ कर आगे पीछे उड़ते बादल कहां को जाते | कुछ नाचते खुशी मनाते कुछ के आंसू झर झर जाते , सुख दु:ख का यह संगम कैसा ? नई नवेली दुल्हन ज

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जीने का सहारा हूं मैं

15 फरवरी 2022
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न महलों बीच उजाला हूं मैं न ज्वालामुखी का ज्वाला हूं मैं न आसमान का तारा हूं मैं न मेघ बीच चंचल चपला, न अग्नि बीच अंगारा हूं मैं       मन उदास जीवन निराश       हर दिन जिनका होता उपहास       बच्

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परछाइयां

15 फरवरी 2022
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न शौक, न श्रृंगार ,न इच्छा न चाह हो, न दु:ख हो न दर्द हो,कठिन भले ही राह हो, तेरे बिना रहना कैसा?भाये भला तनहाइयां? बनकर सदा चलता रहूं ,अमिट तेरी परछाइयां |                     कहता कौन? होता जुद

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मैं समय हूं

15 फरवरी 2022
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कल से कल तक ले आज खड़ा हूं हर युग हर पल कण-कण में पड़ा हूं राग रागिनी निडर निर्भय हूं घात अघात घातक प्रलय हूं             क्योंकि मैं समय हूं | है कौन रहा ऐसा जग में, जिस संग सदा मैं रहा नहीं हू

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भारत भाग्य विधाता

15 फरवरी 2022
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भटक रही थी बूढ़ी महिला तम तमाती धूप में | अधमरी सी झुकी खड़ी थी,  कंकाल के रूप में  || उपल ,कण्डा उठा उठा कर , भर रही थी टोकरी. | चाह जीने की प्रबल थी,  मार रही थी भुखमरी, | कोई खाए जूठा पत्तल

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पुराने नीम की छांव में

15 फरवरी 2022
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    गिल्ली डंडा बाघा बीता     छुक छुक इंजन वाला खेल,     दिन भर आना जाना रहता     सबसे होता रहता मेल,     सुख-दु:ख की सब बात समझते,     अपनापन के फूल थे झड़ते ,     तैरते प्यार की नाव में     प

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मुस्कान

15 फरवरी 2022
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मानव मुस्कान भरो मन में जीवन नीरस न बनने दो, किसलय कुसुम सा खिलने दो, भार बनो न धरती का, जज्बा रखो कुछ करने का, भौंरे गुनगुनाने दो कानन में मानव मुस्कान भरो मन में            उगता सूरज हो या ढल

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वाह रे ! ईश्वर तेरे बंदे

15 फरवरी 2022
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गजब बनाया है जग को तु गजब है भगवान तेरे लोग शाम सुबह खूब पूजा अर्चन खूब लगाए छप्पन भोग  एक सज्जन से मिला सवेरे   सीधे साधे भोले भाले   मुझे देखकर हुए अचंभित   ठहर गए फिर मुझसे बोले  नाम तेरा क

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कैकेई संताप

15 फरवरी 2022
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रोके रुके न नीर नयन से ,  राम चले जब छोड़ भवन से जड़ चेतन हो शून्य चले थे, क्या कहे कौन हो मूक बने थे दु:ख को सहे जब दे विधाता, यहां तो मैं ही थी दु:ख दाता मेरे राम ! सुमाता मैं हूं, जग कह रहा

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मर्यादा

15 फरवरी 2022
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नर नारी में भेद रहा है           कि नर से भारी नारी  मर्यादा में कौन बड़ा है?           यह प्रश्न बड़ा है न्यारी दोष अहिल्या किया कौन?          पत्थर सी वह बेजान बनी, पुरुष पौरूष प्रधान क्यों?

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ये मेरा हक है

15 फरवरी 2022
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बड़े प्यार से, मां के गोद में, बैठे बैठे पूछा गीले बिस्तर पर क्यों सोती मुझे सुलाती सूखा तीखा तीखा लात मरता तुझको लगता मीठा खाना खाती मेरे खातिर,सो न जाऊं भूखा               सिर सहलाती माता बोली,

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गुरु गरिमा

15 फरवरी 2022
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आंख मूंद झांकू अन्तर्मन, पाऊं पावन पग अवलंबन, परम पूज्य ईष्ट गुरु जन कर जोड़ करू अभिनंदन                 चित चरित्र चेतना सृजनकर्ता                 भाषा भाव भावना प्रवर्ता                 मात-पि

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गुलाब और कांटे

15 फरवरी 2022
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कांटों में पला बढ़ा जीवन संग पत्ते बीच हरे-भरे, कली से खिल कर फूल बना, एक चुभ जाता जो छूता मुझे, एक रंग भरा संग मेरे रंगों के, वे सरल कठोर भले दोनों, आज खुशबू तो मेरे बिखरे,| मैं हूं गुलाब,

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गुलाब

15 फरवरी 2022
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मैं गुलाब हूं फूलों में, रहता कृष्ण के झूलों में, या वीर जवानों के पथ पर या सुंदर बालों के जूड़ो में,                 मेरा जन्म हुआ है कांटों में,                 जीवन के विघ्न सा बाटो में,   

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जब मानव करने पर आता है

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जीवन जीने का यदि हो उमंग, दु:ख भी भर देता जीवन में रंग, है काम कौन कर सके न नर आलस्य त्याग चल पड़े डगर, सांसें भर कर हिम्मत कस कर, पथ पर चल कर आगे बढ़ कर, जब मानव करने पर आता है एक पैर पर्वत चढ

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काठ की नाव

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काठ की नाव तू बढ़ता चल, दो चार पथिक ले अपने संग, जिसका न अपना मंजिल पथ, फैला सागर का गहरा जल बने रुकावट लहरें हर पल | काठ की नाव तू बढ़ता चल | | 1            उठ ऊंचे-ऊंचे जलधि तरंग,     

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आओ मन का दीप जलाएं

15 फरवरी 2022
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बन जुगनू जगमग कर जाएं | आओ मन का दीप जलाएं||                      भेद भाव की छोड़ बुराई           भर मन में अपने अच्छाई           दिल में जो अंधकार भरा है           दीपक दिल में बुझा पड़ा है

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-मन की व्यथा

15 फरवरी 2022
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छुपाता रहूं कब तलक मन की पीड़ा    सुलगते सुलगते जलाता है तन को |                     समझा था जीवन की ज्योति सा बनकर,                     बनेगा सहारा बुढ़ापा तिमिर में  |                     कट ज

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विद्यार्थी की ब्यथा

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खेल खेल में शिक्षा हो पर शिक्षा को खेल समझ बैठे, अब राजनीति के मंचों पर तित्तिल सा खूब उलझ बैठे |       न इन्हें पड़ा तेरे रोजी का       न जीवन का न रोटी का,       न  दर्द दवाई खर्चे का,     

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जागो !अब जीवन लो तराश

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जागो अब जीवन लो तराश | नीली  धरती  से  गगन  बीच मंगल जीवन  रेखा  लो  खींच कलमयुग कलयुग का इतिहास | जागो !अब  जीवन  लो  तराश |                 धरती गगन समूचे जल को,                 नाप लिया जीव

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नव वर्ष का सवेरा

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नये साल का आया पावन सवेरा पावन पवित्र कर दे मन तेरा मेरा |        फूलों सा कलियों सा मन मुस्करायें        भौंरों  के  गीतों  सा हम  गुनगुनायें        धरती गगन गूंजें चिड़ियों का कलरव        आओ

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मेरी शान तिरंगा है

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 पिता कौन क्यों है लेटा ? ओढ़े कफ़न तिरंगा, कंधों पर ले चार खड़े हैं आंख से बहती गंगा, बेटा बुला रहा है उनको करुणा से रो- रो कर, गिरी धरा पर मां शिथिल सिंदूर अश्रु से धोकर, आसमान में देख र

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नैइहर का न्योता(अवधी भाषा में)

15 फरवरी 2022
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लुगाई कै खरचा, दवाई कै खरचा लड़िकन के पढ़ाई लिखाई कै खरचा ऊपर से मंहगाई गटई दबावै जुतावै  बुवावै कै चिंता सतावै मंहगाई कै मार,सहत जात हउवै खरचन पर खरचा जोड़त जात हउवैं खुद से ही बड़बड़ करत बात ह

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होली में हो लें हम एक-दूसरे के

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होली के रंगों में मन के उमंगों में लोगों के संगों में झूम झूम जाएं हम घूम घूम गाएं हम  होली में हो लें हम एक-दूसरे के ऋतु के वसंतों में मदमस्त अंगों में फूलों के रंगों में रंग रंग जाएं हम खि

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कंचनकाया

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सुंदर कहूं कि मायावी काया  यह बात समझ मैं ना पाया , सुंदरता तो मन में होती है  माया होती कंचन काया | क्या समझ ना पायी थी सीता  कंचन काया की वह माया , या गुण ही कंचन की है ऐसा  जिससे कोई बच ना प

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बेरोज़गारी के हाथ

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आदि अंत हो या अनन्त हो मिटी कहां है क्षुधा किसी की सायद  इसी  लिए  ही ईश्वर कर खाने के लिए हाथ दी इन हाथों से मेहनत करना सीखा मैंने इस आशा से सपनो को साकार करुंगा रोजगार के अभिलाषा से रो

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