मैं प्रेम में पागल था
नादान था लाचार था
इस जीवन में क्या होगा
कौन जानता है ?
इस रहस्य से अनजान था ;
हुआ तो सूरज की लाली
पक्षियों का कलरव ;
आसमान में धवल बादल था
मैं प्रेम में पागल था।
गोधूल समय में देखा उसको
देखकर मन में आया छू लूं
कौन जानता था ?इसका क्या अंजाम था ;
इस बात से अनजान था
मन में उमड़ता सागर था
मैं प्रेम में पागल था।
मन की मनमानी थी बुलंद हौसलों का
सुख दु:ख में जो साथ दिया
एक लग्न की निशानी थी
जीवन ऐसे कट जाए तो क्या हुआ
थका तो नहीं!
बड़ों का आशीर्वाद मां का दामन था
मैं प्रेम में पागल था |
आंखों का पानी गिरा बूंद बन कर
थमा वक्षस्थल पर;
लगा सुख-दु:ख का समागम था
मैं प्रेम में पागल था।