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जबावदेही आखिर किसकी

30 अप्रैल 2015

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२२ अप्रैल को दिल्ली में आदरणीय अरविन्द केजरीवाल जी कि सभा में जो कुछ भी हुआ, उससे पूरा देश भले ही व्यथित हो लेकिन हमारे राजनेता इसमें भी राजनीति कर रहे हैं, जो अत्यंत ही शर्मनाक हैं I ये शायद हमको भी और हमारे राजनेता को भी पता हैं कि हम भारतियों कि याददाश्त बहुत कमजोर हैं, और हम इसे दो चार दिनों में भूल जायेंगें, ठीक उसी तरह जिस तरह निर्भया कांड ,बदायूं केस ,मुंबई तेजाब हमला,और भी कितने अनगिनत घटनाओं को भूल चुके हैं I अभी तो आरोप-प्रत्यारोप का दौड़ चल रहा हैं, फिर इसकी जाँच के आदेश होंगे और फिर वही होगा , जो पहले के केसों में होता रहा हैं I क्या आपको जरा भी अजीब नही लगता हैं, दिल्ली कि घटना पर I जिसके भलाई के लिए ये लोग रैली करने का दावा करते थे ,उनके सामने ही एक व्यक्ति मरने का प्रयास करता हैं और ये तथाकथित आम लोग युगपुरुष का भाषण सुनते रहते हैं और युगपुरुष भी शायद ऐसे ही मौके के तलाश में थे I हमसब कितने संवेदनाविहीन होते जा रहे हैं ,इस घटना से पता चलता हैं I अब मैं आपको थोड़ा पीछे ले जाना चाहता हूँ , थोड़ा याद कीजिये जब पटना में मोदी जी की रैली में विस्फोट होने से कुछ लोग मरे थे I उससे भी बहुत पहले लखनऊ में रैली से लौटते समय लखनऊ रेलवे स्टेशन पर कुछ लोग ट्रेन की चपेट में आकरअपनी जान गवां बैठे थे ,इसी लखनऊ में किसी राजनेता के जन्मदिन की सभा में साडी बाँटने के दौरान मची भगदड़ में कई महिलाएं की मौत हुई थी. अब सवाल ये नही हैं कि रैली में मौतें हो रही हैं , सवाल ये हैं कि इन मौतों का जिम्मेवार कौन हैं I रैली का आयोजक , प्रशासन या खुद वही, जिनकी मौतें होती हैं I हमारे लोकतंत्र में सबको रैली करने या शांतिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार हैं ,लेकिन अगर हमारा अधिकार अगर किसी कि जान ले रहा हैं तो क्या हमे उसपर विचार नही करनी चाहिए I हमलोग अपने दैनिक जीवन में छोटी से छोटी चीजों पर आजकल ज्यादा ध्यान देते हैं ,कोई सामान खरीदा अगर ख़राब हैं तो कम्पनी जिम्मेवार , ट्रेन में घटना हुई तो रेलवे जिम्मेवार ,शहर में कोई घटना हूई प्रशासन जिम्मेवार I हम जिस तरह अपनी जिम्मेवारी से बच निकलते हैं ,उसी तरह ये रैली के आयोजक I हम एक छोटी सी चीज के लिए किसी कम्पनी को कोर्ट में ले जाते हैं , क्या हम इन जानलेवा रैली के आयोजक को नही ले जा सकते I क्या एक आदमी कि जान एक साबुन कि टिकिया ,एक पेस्ट के ट्यूब या एक टी.वी से भी सस्ती हो गई हैं I सच तो ये हैं कि हम सब भी अपनी जिम्मेवारी सही से नही निभाते हैं I इस नयी व्यवस्था ने हमसब के बीच इतनी खाई पैदा कर दी की, हम उसे चाह कर भी पाट नही पा रहे हैं I इस भौतिकवादी संसार में हमसब अपनी ही दुनिया बचाने में लगे हैं I हम इतने संवेदनाहीन हो चुके हैं कि, अगर कोई मर रहा हैं तो हम उसे बचाने कि जगह उसका वीडियो बनाने में लगे रहते हैं I हम ऐसा काम करने लगे हैं कि आपस में वैमनस्यता पैदा हो रही हैं I क्या हम सही में इतने मतलबी हो चुके हैं या हम कुछ करना नही चाहते I आजकल हमारे देश कुछ अजीब अजीब तरह कि घटनाये होने लगी हैं, क्यों ? इसके लिए जिम्मेवार कौन हैं ,ये आधुनिक भारत ,हमारा प्रशासन या हम खुद I अभी दिल्ली में हुई घटना पर हम सब हैरान हैं ,लेकिन राजनेताओं के लिए यह मौका बन चूका हैं I सभी अपने अपने तर्को के सहारे उसे भुनाने में लग चुके हैं I कई महीनों बाद लौटे एक नेता अभी पूजा में व्यस्त हैं तो कुछ लोग किसी को उस मौत का जिम्मेवार ठहराने में I इन सब के बीच असली मुद्दा गायब हो चुका हैं I और जो मुद्दा गायब हुआ हैं वो हैं जवाबदेही की, भले ही आज केजरीवाल कह रहे हैं कि उस घटना के बाद उन्हें रैली रोक देनी चाहिए थी ,सिर्फ इतना कह देने से वे एक व्यक्ति के मौत कि जिम्मेवारी से बच नही सकते I उनकी ही क्यों हमारे सारे नेताओंं कि ये जिम्मेवारी बनती हैं कि अगर वे किसी को बुलाते हैं , तो उसे सकुशल घर पहुचाने कि जिम्मेवारी भी उन्ही की हैं I

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