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समर

16 जनवरी 2022

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       समर  

रण सा सफर बना 

जीवन समर बना 

उम्मीद भी थमी रही

मौत से ठनी रही। 

 

रहे बुलंद हौसले 

भले थे कितने फासले 

सम्मुख अवरोध भी 

अनंत था विरोध भी। 


बढ़े कदम रुके नहीं 

हौसले झुके नहीं 

चलते रहे पहर-पहर 

मुस्कुराते ठहर-ठहर। 


हुई जैसे बंदगी 

कतरा-कतरा जिंदगी 

रहा कभी गिला नहीं 

प्रण भी डिगा नहीं। 

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अंतर्मन का नाद शब्दों में ढलकर नित-नित आकार लेता रहता है। मन से निकले भाव अगर अनन्य मन को स्पर्श करते हैं तभी लेखनी सार्थक हो पाती है। आशा है कि आप सभी को मेरी रचनाएं पसंद आएगी।

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