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समर
रण सा सफर बना
जीवन समर बना
उम्मीद भी थमी रही
मौत से ठनी रही।
रहे बुलंद हौसले
भले थे कितने फासले
सम्मुख अवरोध भी
अनंत था विरोध भी।
बढ़े कदम रुके नहीं
हौसले झुके नहीं
चलते रहे पहर-पहर
मुस्कुराते ठहर-ठहर।
हुई जैसे बंदगी
कतरा-कतरा जिंदगी
रहा कभी गिला नहीं
प्रण भी डिगा नहीं।