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मैं और मेरा स्वप्न

16 जनवरी 2022

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मैं और मेरा स्वप्न 

वह स्वप्न 
सुरमई सा 
अधखुली पलकों का 
दूर कहीं अंबर के उस पार 
मुस्काया था एक चाँद 
जैसे घुँघरू बंध गए हों 
दिशाओं के 
लाज खींच गई थी
पूरब की कनपटियों तक 
उस सिंदूरी अंबर में 
दौड़ता मेरा स्वप्न 
तारों की झुरमुट से 
करता सरगोशियाँ 
कभी निहारिकाओं के संग 
खिलखिलाता 
खींचता चाँदनी को 
अपनी अंजुरी में 
कभी सांसों में भर 
रजनीगंधा की भीनी सी महक 
टोहता भोर की किरण को 
फिर रश्मियों के संग 
खुलता मेरे अन्तर में 
रेशमी गाँठ की तरह
साँझ के ढलते ही 
खींच कर लाता 
चांँद को बालकनी के बीच 
और फिर वहीं 
टिका देता अधर में स्थिर! 
तब निहारता मन मुग्ध नयन  
सम्मुख मेरे 
मैं और मेरा स्वप्न…..! 

डॉ उषा किरण

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अंतर्मन का नाद शब्दों में ढलकर नित-नित आकार लेता रहता है। मन से निकले भाव अगर अनन्य मन को स्पर्श करते हैं तभी लेखनी सार्थक हो पाती है। आशा है कि आप सभी को मेरी रचनाएं पसंद आएगी।

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