अंतर्मन का नाद शब्दों में ढलकर नित-नित आकार लेता रहता है। मन से निकले भाव अगर अनन्य मन को स्पर्श करते हैं तभी लेखनी सार्थक हो पाती है। आशा है कि आप सभी को मेरी रचनाएं पसंद आएगी।
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मैं और मेरा स्वप्न वह स्वप्न सुरमई सा अधखुली पलकों का दूर कहीं अंबर के उस पार मुस्काया था एक चाँद जैसे घुँघरू बंध गए हों दिशाओं के लाज खींच गई थीपूरब की कनपटियो
4 समर रण सा सफर बना जीवन समर बना उम्मीद भी थमी रहीमौत से ठनी रही। रहे बुलंद हौसले भले थे कितने फासले सम्मुख अवरोध भी&