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#ambedkarnagar poetry

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 शीर्षक-मेरी शान तिरंगा है पिता कौन क्यों है लेटा ?ओढ़े कफ़न तिरंगा,कंधों पर ले चार खड़े हैंआंख से बहती गंगा,बेटा बुला रहा है उनकोकरुणा से रो रोकर,गिरी धरा पर मां शिथिलसिंदूर अश्रु से धोकर,आ

 शीर्षक-नव वर्ष का सवेरा

नये साल का आया पावन सवेरा
पावन

भटक रही थी बूढ़ी महिला
तम तमाती धूप में |
अधमरी सी झुकी खड़ी थी, 

नयी नवेली खिली गुलाब सी,
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सहसा एक दिन नजर पड़ा 
छत के एक घोंसले पर
लगा सोचने बड़े देर तक

शीर्षक-विद्यार्थी की ब्यथा

खेल खेल में शिक्षा हो पर
शिक्षा क

नर नारी में भेद रहा है
          कि नर से भारी नारी 

कविता-गुलाब और कांटे

कांटों में पला बढ़ा जीवन
संग पत्ते बीच

    गिल्ली डंडा बाघा बीता
    छुक छुक इंजन वाला खेल,
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शीर्षक-   बढ़ते कदम
 मुसाफिर!
       तान

शीर्षक-      दु,:ख की बदली
          रात भयान

शीर्षक- उड़ते बादल
             
खींच खी

शीर्षक-      दु,:ख की बदली
          रात भयान

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