तानसेन थे संगीत के सूरज,
तानपुरा(सितार) वो बजाते थे।
'बेहट' ग्वालियर में जन्म लिया,
पिता मुकुंद मिश्र 'तन्ना' कहकर बुलाते थे।।
स्वामी हरिदास से शिक्षा लेकर,
हज़रत गौस को गुरु बनाया था।
अकबर ने 'मियाँ' की उपाधि देकर,
अपने नौरत्नों में बैठाया था।।
अकबर ने जब ज़िद कर दी,
दीपक राग सुनाने की।
जल उठे हजारों दीपक थे,
आग की ज्वाला भड़की थी।।
तब फिर मेघ-मल्हार को गाकर,
मेघों को खूब बरसाया था।
संगीत का ऐसा चमत्कार फिर,
और किसी ने ना दिखलाया था।।
हिन्दुस्तानी संगीत में वो,
ध्रुपद शैली के अन्वेषक थे।
संगीतसार,रागमाला, श्रीगणेश स्त्रोत के रचनाकार,
मियांमल्हार,मियांसारंग राग के गायक थे।।
ग्वालियर संगीत की तीर्थस्थली कहलाता है,
समाधि पर लगी 'इमली की पत्ती' खाकर।
बेसुरा भी सुर में गाता है,
'तानसेन सम्मान' को पाकर हर गायक धन्य हो जाता है।।
ग्वालियर का उन्होंने देखो,
है पूरे जग में नाम किया।
मोहम्मद गौस की समाधि के निकट ही,
हजीरा में 'चिर-विश्राम' किया।।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर