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अंतिम फ़ैसला (लघु कथा) ************ "अरे आरती! तुम अब तक तैयार नहीं हुई, तुम्हें याद है न कि आज सोनोग्राफ़ी के लिए डॉक्टर के पास जाना है।" अपनी रौबदार आवाज़ में रमेश बोला। "ये सब ज़रूरी है क्या?" आरती धीर
ग़ुलाब ****** ग़ुलाब तो है बगिया की शोभा, डाली में खिलकर मुस्काए... सुंदर चटकीला रंग इसका, सबके मन को भाए... प्रेम का प्रतीक है गुलाब, डाली से टूट कर मुरझा जाए... मत तोड़ो इसे, टूटकर भला कैसे जी पाए? एक
आधी आबादी (कविता) बहुत डरते हो तुम तो, इस आधी आबादी से! हाँ, तुम्हें डर है कि कहीं इनकी मेहनत, लगन और.. आसमाँ से भी ऊँचे इरादों के आगे छोटा न पड़ जाए, तुम्हारे पुरुषत्व के अहंकार का दर्प! तभी तो... कभी