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माफ़ीनामा

17 जून 2016
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तलाश-ए-तस्लीम में तेरे तख़्त पर आया हूँ ।दे सज़ा अब और कि दिल सख्त कर आया हूँ ।मेरे आंसुओं से बेदाग़, मेरे गुनाह कर दे,रुला मुझे रज-रज के, गर वक़्त पर आया हूँ ।देर ज़्यादा कर दी, यह क़बूल कर आया हूँ ।माफ़ीनामा अपना, नामंज़ूर कर आया हूँ ।ऐ ख़ुदा अब या तो पास ही बुला ले,या लिख मुक़द्दर फिर से, फ़रियाद ये लाया हू

दुआ

16 जून 2016
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जो उठे नज़र, तो हो दीदार तेरा,यूँ बंद पलकों में भी सुकूं कई है ।सुनूँ कुछ तो अंकित, तेरी लबों से,यूँ सन्नाटों में शोर की कहाँ कमी है ।उठाऊँ क़लम, तो लिख दूँ तुझे,अब ग़ैर शब्दों की स्याही नहीं है ।हो महसूस तो मेरा इश्क़ तेरी ख़ातिर,हैं एहसास और, पर जुनूं यही है ।हो क़रीबी किसी से, तो तुझसे ही हो,यूँ बेवज़ह

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