जो उठे नज़र, तो हो दीदार तेरा,
यूँ बंद पलकों में भी सुकूं कई है ।
सुनूँ कुछ तो अंकित, तेरी लबों से,
यूँ सन्नाटों में शोर की कहाँ कमी है ।
उठाऊँ क़लम, तो लिख दूँ तुझे,
अब ग़ैर शब्दों की स्याही नहीं है ।
हो महसूस तो मेरा इश्क़ तेरी ख़ातिर,
हैं एहसास और, पर जुनूं यही है ।
हो क़रीबी किसी से, तो तुझसे ही हो,
यूँ बेवज़ह सी भीड़ की तलब नहीं है ।
कभी करूँ दुआ, तो तेरा साथ माँगूँ ,
ख़ैर, ख़ुदा से अपनी बनती नहीं है ।