18 जुलाई 2022
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मनभावन सावन की फुहार,रिमझिम रिमझिम बरसे बूंदे।पपीहा भी गाए राग मल्हार,छाए बादल आह्लादित बूंदे।।मनभावन सावन की फुहार,मंद मंद चले पवन की बयार।रिमझिम रिमझिम बरसे मेघा,घुमड़ घुमड़ कर छाए बादर।।मनभावन
प्राचीन भारत की कलाकृति,मंदिरों, महलों में नजर आती।कुछ तो खंडहर में तब्दील हुए,अब अवशेषों में नजर आती।।दुनिया राजा महाराजाओं की,प्राचीन भारत के नज़राने थे।अस्त्र शस्त्र और शास्त्रों में गुरु,गुरुकुल म
खुले आसमान में सूरज ने,आभा अपनी बिखराई आज।पेड़ों के झुरमुट से प्रस्फुटित,किरणों ने जमीं छुई आज।।खुले आसमान में पंछियों ने,नभ में अपने पंख पसारे।।उड़ते हुए ये एहसास करते,आजादी का जश्न मना रे।।खुले आसमा
मनमौजी या मन का मौजी,चले वह अपनी ही डगर।मंजिल का पता न राह का,राह चले वह अनजानी डगर।।मनमौजी या मन का मौजी,न दिन का ठौर न रात का।मस्तमौला सा फिरता रहता,राह का पता न मंजिल का।।मनमौजी या मन का मौजी,न भूख
सूरज ने बोला चंदा से,मैं दूल्हा तुम दुल्हन हो।शाम ढले आया सूरज,चंदा से तारे हैं बाराती हो।।शाम से कहते तारे सारे,आओ इस जश्न में शामिल हो।तारे भी बोले सारे मिलकर,तैयारी में हम सब शामिल हो।।हम तारे है ब
नादान परिंदे होते हैं,उड़ने की कोशिश करते। रहते हैं अपने बसेरे में,उड़ने की ख्वाहिश रखते।।नादान परिंदे होते हैं,आकाश छूने का दंभ भरते। कोशिशें नाकाम हो जाती,फिर भी कोशिश करते रहते।।नादान परि
सुबह सुनहरी धूप खिली,आंगन में चारपाई बिछी।आ गई दादी चारपाई पे,आंगन में चारपाई बिछी।।हुए एकत्रित बच्चे सारे,करते सब दादी दादी जी।दादी जी ने गले लगाया,आओ मेरे प्यारे बच्चों जी।।चाय नाश्ता है तैयार सब,मा
आज हमारी ईश्वर में आस्था,है कितनी यह देखो जरा।कोई तो करता पूजा साधना,कोई करे ऐसे खिलवाड़ जरा।।कोई उड़ाए मजाक आस्था का,कोई आस्था को अपना संसाधन।कोई करे ईश्वर की अर्चना याचना,कोई समझे पब्लिसिटी का साधन।
सुख और उम्र का तालमेल,आपस में कब बनता है।कैसे उम्र ये कटती रहती,सुख दुःख जीवन में रहता है।।सुख और समृद्धि जीवन में,शांति जीवन में लाती है।आशा और निराशा के बीच,भंवर में डोलती रहती है।।सुख कब मिलता जीवन
दिल एक तमन्नाएं अनेक,कैसे पूरी होगी संसार में।तमन्नाओं से संसार बंधा,बसी हुई इस संसार में।।जिंदगी के आंचल में,ओढ़ रखी चुनरी ऐसे।तमन्नाएं जज्बातों से जुड़ी,पूरी हो जाए ये कैसे।।तमन्ना तो सिर्फ तमन्ना ह
इंसा की घिसी हुई चप्पल,संघर्ष जीवन में बयां करती।भागदौड़ और मशक्कत ऐसी,छुपे हुए दर्द को बयां करती।।कठिन रहगुजर जिंदगी में,दर्शाती है घिसी हुई चप्पल।जीवन की कठिनता का सामना,काम आती घिसी हुई चप्पल।।जूझत
खोया खोया चांद आज,गुम हो गई चांदनी इसकी।आज अंधेरी रात आ गई,कहां गई है चांदनी उसकी।।खोया खोया चांद आज,कहां गए सितारे उसके।जो टिमटिमाते थे प्रतिपल,रौशन करते थे जो प्रतिपल।।खोया खोया चांद आज,सोचता रहता ह
देख कर माथे की लकीरें,चिंता का विषय कुछ लगती।सोच विचार चिंतन गहन,अकारण ही कुछ उपजती।।देख कर पत्थर पर लकीरें,न मिटने का अंदेशा देती।कभी न खत्म निशान हो,ऐसा लकीरें ये संदेशा देती।।देख कर कागज़ के पन्नों
आंखे तो सबकी एक जैसी,देखने का अंदाज अलग होता।बातें सबकी होती अलग अलग,कहने का अंदाज अलग होता।।दिलों के एहसास की बातें,धड़कन का अंदाज अलग होता।बातें जुबां पे आती रहती,कहने का अंदाज अलग होता।।इज्ज़त शौक
आदर्शों की मिसाल बना के,सदा ज्ञान का प्रकाश जगाता।बाल पन महकता शिक्षक,भाग्य हमारा शिक्षक बनाता।।गुरु ज्ञान का दीप जलाकर,जीवन हमारा महकता शिक्षक।विद्या का धन देकर ऐसे,मन आलोकित करता शिक्षक।।धैर्य का हम
मैं हूं तुम्हारी हिंदी भाषा,इसको तुम पहचान लो।अस्तित्व हूं तुम्हारा मैं,मुझको तुम पहचान लो।।कर्म हूं और कृति भी मैं,अस्तित्व है यूं मुझसे जुड़ा।मर्म हूं और व्यथा भी मैं,अस्तित्व तुम्हारा मुझसे जुड़ा।।
सपनों को साकार करने में,व्यस्त तुम इतने हो जाओ।समय ही न मिले कभी भी,कुछ और में गुम हो जाओ।।उदासी ना हो जिंदगी की,सपनों को पंख मिल जाए।उदासी के लिए वक़्त नहीं,अरमानों को पंख मिल जाए।।सपनों को जीवन देना
वक़्त हर पल गुजरता हुआ,एक लम्हा है जिंदगी में।थाम सको गर वक़्त को,जिंदगी जीने की कोशिश में।।वक़्त रेत का दरिया है,जो मुट्ठी में नहीं समाता।अगर चाहो मुट्ठी में बांधना,रेत जैसे मुट्ठी से फिसलता।।जिंदगी
बरसो मेघा रे घनन घनन,आज छाए है बादर कारे।बोले दादुर, मोर, पपीहा,पीहु पीहु कारे मेघा रे।।नाचे मन मोर पपीहा,आया सावन झूम रे।धरती ने ओढ़ी चूनर,कैसी धानी धानी रे।।चहुंओर है छाई हरियाली,कैसे बदला रूप सावन
बम बम भोले बाबा बोले,आया सावन का महीना।श्रृद्धा और सबूरी भक्तों,सावन का पावन महीना।।भक्तों के मन में बसे,कैसे पूजन अर्चन करूं।बेल पत्र और धतूरे से,जल तुझ पर अर्पण करूं।।बम बम भोले बाबा बोले,अंतर्मन वि
मन रे तू उदास न हो,इस कश्ती पे सवार तू।पार लग ही जाएगी,नैया अपने किनारे की ओर।।उस रब पे भरोसा रख,रब से तू सवाल न कर।कश्ती न तेरी डूबने देगा,नैया अपने किनारे की ओर।।सब कुछ उसी पे निर्भर है,बंदे तू क्यो
शब्दों की उड़ान असीमित,पंख पसार पंछी बन नभ में।उड़ते बादल छाए जमीं पर,मौसम बदले जैसे पल भर में।।शब्दों की उड़ान फुलवारी बन,महके गुलशन गुलशन में।खुशबू बन कर महकाए,पवन बयार चले उपवन में।।शब्दों की उड़ान
हे त्रिपुरारी नीलकंठ महादेव,जग हितकारी अविकारी प्रभु।नागपाश गले में साजे तुम्हरे,सिर पे गंगे और चंद्र प्रभु।।संग गौरा गणेश कार्तिकेय,पर्वत कैलाश विराजै प्रभु।आयो श्रावण मास पावन,पुष्प चरणों में अर्पित
है जीवन की रीत सदा,हंसने रोने की क्या बात।खुश हंस पड़े पल भर में,दुख में रोने की क्या बात।।है जीवन की रीत सदा,हंसो हंसा लो दो पल।जीवन मंत्र का सार यही,वक़्त को बांध लो दो पल।।है जीवन की रीत सदा,कभी न
न कल की फिक्र होती,न आज का चिंतन करते।मस्ती में झूमते बच्चे प्यारे,कागज़ की कश्ती बनाते।।बारिश का मौसम सुहाना,वर्षा ऋतु का आगमन।हमारी कागज़ की कश्ती,बारिश में लहराती कश्ती।।बच्चे भी मचलते रहते,कागज़ क
मन दर्पण मंथन अभिव्यक्ति,विचारों का सुन्दर आलेखन।शब्द अनवरत मन मंथन,शब्दों का सुन्दर आलेखन।।स्वर सृजन लहरी मन मोह,होते आलोकित मन दर्पण में।मन व्यथा से दुखित आत्मन,अंतर्मन व्यथित मन दर्पण में।।मन आह्ला
पथ के राही अग्रसर,सरल, सुगम पथ पर।पथिक राह सुगम्य,मंजिल पे हो अग्रसर।।पथ के राही अग्रसर,राह पथरीली कष्टमयी।लक्ष्य अब आसान नहीं,पथिक थकन मर्ममयी।।पथ के राही अग्रसर,चिंतन मनन लक्ष्य निर्धारित।राह पथरीली
नव निर्माण उठ चेतन,भोर भई जाग मुसाफिर।नव चेतना उत्थान लिए,संकल्प जागृत जाग मुसाफिर।।नभ प्रकाशवान दीप प्रज्वलित,उठ जाग मुसाफिर भोर भई।नव आभामंडल रश्मि लिए,नव चेतना नव संकल्प भई।।अंतः ऊर्जा संचित कर,नव