वक़्त हर पल गुजरता हुआ,
एक लम्हा है जिंदगी में।
थाम सको गर वक़्त को,
जिंदगी जीने की कोशिश में।।
वक़्त रेत का दरिया है,
जो मुट्ठी में नहीं समाता।
अगर चाहो मुट्ठी में बांधना,
रेत जैसे मुट्ठी से फिसलता।।
जिंदगी है दो पल की यारों,
खबर कितनी होती किसको।
वक़्त का पहिया घूमता रहता,
रेत की तरह फिसलने को।।
वक़्त की अदालत में तलब,
करने को खुदा बैठा रहता।
थाम सको तो थामो वक़्त को,
एक दरिया जो बहता रहता।।
वक़्त के फेर में पड़ते लोग,
एक वक़्त जो ठहरता नहीं।
सोचते हैं बांध के रखना,
मुठ्ठी में बंद होता ही नहीं।।
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