" 'तिनका' हूँ तो 'क्या' हुआ 'वजूद' है 'मेरा' 'उड़ - उड़' के 'हवा' का 'रुख' तो 'बताता' हूँ "
23 जून 2016
" 'तिनका' हूँ तो 'क्या' हुआ 'वजूद' है 'मेरा' 'उड़ - उड़' के 'हवा' का 'रुख' तो 'बताता' हूँ "
स्मृति गीत * अपलक तुम्हें निहारूँ कैसे ? * नयन खुले तो लुक-छिप जाते नयन मुँदे तो झलक दिखाते ओ मेरे तुम! कहाँ खो गये? रोक न पाये हम पछताते जब तक सिर पर छाँव रही तव तब तक हमने धूप न जानी तुम बिन नाते हुए पराये तुम बिन यह दुनिया बेगानी बोलो तुम्हीं गुहारूँ कैसे अपलक तुम्हें निहारूँ कैसे ? * सुधियों से मन भर आता है तुम्हें याद कर तर जाता है तुम नर्मदा-अमरकंटक से- जननि-जनक पावन नाता है बूँद मात्र हम, सलिल-धार तुम जान सके अब, थे अपार तुम शिला सदृश जग निर्मम-निष्ठुर करो कृपा, सुन लो गुहार तुम तनिक कहो अवतारूँ कैसे? अपलक तुम्हें निहारूँ कैसे ? * कैंया मिली, मचलना सीखा अँगुली थामी, चलना सीखा गिर-रोये, आ तुरत उठाया गिर-उठ,चलना-बढ़ना सीखा तुमसे साँसें-सपने पाये रिश्ते-नाते अपने पाये हमसे कब-क्या खता हो गयी? गये दूर, अब तलक न आये श्वास-श्वास में बसे हुए हो पल भर कहो बिसारूँ कैसे? *** (संस्कारी जातीय, मुक्तक छन्द)
28 जून 2016
अच्छा लिखा हैं आपने कबीर दास जी ने भी लिखा था तिनका कबहूँ न निंदिये जो पावन तर होए | कभू उडी अँखियाँ परे तो पीर घनेरी होए ||
24 जून 2016
तिनका समझ के फूक से मैने उडा दिया , आखों मे आ चुभा तो तबियत बिगड गयी ,
23 जून 2016