मेरे एक मित्र ने टिप्पणी की शायद किरण बेदी ये सोचती हैं की केजरीवाल से बहस सिवाय तमाशे के कुछ नहीं होगी शायद इससे लोकतंत्र को अधिक मजबूती मिलती !अरविंद केजरीवाल ईमानदार नागरिक हैं इसमें कोई शक नहीं , पर अगर आप उनके इतिहास पर निगाह डालें तो उनकी ईमानदारी समय के साथ नकली होती चली गयी सी लगती हैं , उनके अराजक होने वाली स्वीकारोक्ति ने उनको सभ्य समाज में अराजक भीड़ का चेहरा बना दिया है !
उनके द्वारा की गयी सभी बहसें ( सभी यूट्यूब पर उपलब्ध है ) शुरुआत के बाद अराजक हो जाती हैं और अपना अर्थ खो देती हैं , बिलकुल उनके व्यक्तित्व की तरह , किरण बेदी ने श्री अन्ना हजारे की टीम का सदस्स्य होते हुए बहुत समय केजरीवाल के साथ बिताया है और संभवतः वो उनकी अराजकता पहचानती है ! मुझे लगता है किरण प्रशासनिक हैं , वो इस लालबुझक्कड़ गिरी से ज्यादा काम करने में मन लगाएगी और मुझे लगता है की इस देश समाज के नागरिकों को हम पर मंडरा रहे खतरों जैसे आतंकवाद जो की सीरिया इराक होता हुआ पाकिस्तान तक दस्तक दे रहा है को पहचानना होगा ! नकली ढांचे पर ध्यान देने की बजाये ( जो की पिछले 25 सालों में बना है ) असली ढांचे को मजबूत करना होगा ! केजरीवाल देश की खतरनाक समस्सयाओं को अपने ईमानदारी वाले मसखरेपन में अनदेखा कर रहे हैं ! इनको ध्यान रखना चाहिए की मिस्र और सीरिया में इस खूनखराबे की शुरुआत एक बहुत छोटे मजाक से हुई थी ! केजरीवाल को अपने मजाक से छिड़ सकने वाले विध्वंस का अंदाज़ा भी नहीं है ! उन्होंने अपने एक बयान में माना भी है की मुख्यमंत्री पद छोड़ते समय उन्हें पता भी नहीं था की उनकी गलती इतनी बड़ी है ! जनता को अंदाज़ा होना चाहिए की उनकी गलती की वजह से दिल्ली की जनता का पैसा फिर चुनाव की भट्ठी में स्वाहा होने जा रहा है अगर किरण बेदी से उनकी बहस विधान सभा में होती तो क्या उसका वही अर्थ नहीं होता , लोकतंत्र उतना ही मजबूत होता जित्नीअपेक्षा हम कर रहे थे ! चीनी विद्द्वान कन्फूशियस की एक उक्ति है " दिशाभ्रमित और जिद्दी व्यक्ति से तर्क की जगह एक चुप सौ सुख देता है " शायद किरण बेदी ने कन्फ्यूशियस को पढ़ा है !!!!!!!!!!!