ईश्वर सत्य है, सत्य ही शिव है, शिव ही सुंदर है... सत्यम् शिवम् सुन्दरम्... की अनुगूंजित स्वर लहरी प्रातः की आत्ममुग्ध अनुभूति, तो भोर भये पनघट पे मोहे नटखट श्याम सताये से भोर का लुभावना अहसास व मन की मादकता का निरूपण, तो कहीं मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे में शालीनता से प्रेम का सरोकार, वही दूसरी ओर बड़ा नटखट है रे कृष्ण कन्हैया से माँ का बाल मनुहार की विवशता, तो शायद मेरी शादी का ख्याल दिल में आया है, इसीलिए मम्मी ने मेरी तुम्हें चाय पे बुलाया है का खिलंदड़ शैली का स्वरूप, तो वही क्या करूँ राम, मुझे बुड्ढा मिल गया में प्रेम में शरारत व उलाहना, ये दिल और उनकी निगाहों के साये में विरह का पर्वतों में गुंजायमान दिलकशी, तो सावन के झूले पड़े हैं, तुम चले आओ से प्रेयसी की पुकार, इक मीरा, इक राधा, दोनों ने श्याम को चाहा से प्रीत की दुविधा के प्रश्नचिन्ह, तो वही माई री! मैं कासे कहूँ, अपने जिया की, माई री द्वारा विरहिणी की बेबसी, दूसरी तरफ कांटा लगा, बाहों में चले आओ, हमसे सनम क्या पर्दा में अलहड़ता व प्रेम की बेबाकी, जबकि मार दिया जाए या छोड़ दिया जाए में हुस्न के गुरूर का तीखापन, तो तू कितनी अच्छी है, तू कितनी प्यारी है, ओ माँ व तुमसे मिलकर न जाने क्यों की मासूमियत, मैं तुलसी तेरे आंगन की व मैं तेरी छोटी बहना हूं, समझ न, मुझको सौतन की कारूणिक अभिव्यक्ति, तो तेरे मेरे बीच में, कैसा है ये बन्धन अंजाना व दिल दिवाना बिन सजना के माने ना से प्यार की प्रथम अनुभूति, थाड़े रहियो, ओ बांके यार..., सलाम-ए-इश्क मेरी जान, इन्हीं लोगों ने, ले लीन्हा दुप्पटा मेरा व शराफंत छोड़ दी मैंने द्वारा मुजरे की शैली व प्रेम की शालीनता, तो कहीं दिल हूम हूम करें... नीला आस्मां सो गया..., जाने वाले ओ जाने वाले... रंग महल के दस दरवाजे, न जाने कौन सी खिड़की खुली थी...ऐ दिल-ए-नादान, ऐ दिल-ए-नादान, आरज़ू क्या है, जुस्तजू क्या है...,रस्में उलफत को निभाएं, तो निभाएं कैसे... का बेकस विरह, तो तू जहाँ जहाँ चलेगा, मेरा साया साथ होगा.. का अपनत्व से लबरेज मेरी आवाज ही पहचान है... ही मां सरस्वती की स्वरूपा स्वर सम्राज्ञी आदरणीया ल से लय और ता से ताल का साक्षात्कार लता मंगेशकर...
*विपिन कुमार सोनी,
28.09.2021