जीवन में घोर निराशा हो
काले बादल जब मँडरायें
थक हार के जब हम बैठ गयें
कोई मन्जिल ना मिल पाये
तब आती धीरे से चलती
छोटी -छोटी , हल्की-हल्की
रात्री का विकट अंधेरा हो
कुछ भी नजर ना हमको आये
अनजाने सायो के डर से
मन व्याकुल होकर घबराये
तब ही आती किरण भोर की
धीरे-धीरे , बढती-बढती
मैं आशा हुँ ,तेरे कल की।।
कटी पतंग सा हो जीवन
कोई दिशा न मिल पाये
डोर से भी हाथ छूट गया
कोई साथी भी न रह जाये
तब ही मिलती हमे डोर पवन की
मन्द-मन्द, महकी -महकी
मैं आशा हुँ, तेरे कल की ।।
जीवन से इतनी घृणा रहे
जिन्दा रहूँ या मर जाँऊ
मुश्किलों को झेलू कैसे
कैसे खुशियों को पाऊ
सहसा मिटती उलझन मन की
होले-होले, झलकी-झलकी
मैं आशा हुँ , तेरे कल की।।