मेरी बहुत ही अच्छी सहेली थी कुमुद। हम दोनो नवीं कक्षा में साथ ही पढा करती थी। वो एक पास के गाँव से पढने के लिएआया करती थी। हँसती, खेलती एक जिन्दादिल लडकी थी कुमुद।डर और झिझक तो उसमे थी ही नही। खाली कालांश में अपने गाँव के मनोरंजक किस्से सुनाया करती थी।कुल मिलाकर एक बिन्दास लडकी थी कुमुद।कुछ ही समय में वो सबकी चहेती हो गयी थी ।हर दिन एक नये किस्से के साथ आया करती थी। एक साधारण सी बात को भी इस तरह से बताती थी की सबकी हँ स हँस के हालत खराब हो जाती थी ।लेकिन पता नहीं कुछ दिनो से मुझे कुछ वो उदास सी नजर आ रही थी।उनके गाँव में माता जी का मन्दिर था। नवरात्रों में हमारा पूरा परिवार दर्शन के लिए गया था। लोटते समय कुमुद मिल गयी। हम सबको विनती करके अपने घर ले गयी ।बडे प्यार से खाना खिलाया उसके पूरे परिवार का व्यवहार बहुत ही अच्छा रहा। दो बहन और एक भाई में सबसे बडी वही थी ।अपना घर दिखाया ।मुझे अपने हरे-भरे बाडे मे ले जाकर झूला झूलाया। मौका देखकर मैंने पूँछने की कोशिश की उसकी उदासी का कारण क्या हैं ,लेकिन सब के आ जाने से वो चाहकर भी मुझे बता नहीं पायी।उसकी आँखो की नमी मुझे साफ नजर आ रही थी।उसके पापा को उससे काफी उम्मीदें थी ।वो उसे दसवी पास करने के बाद पुलिस की तैयारी करवाना चाहते थे। उस दिन के बाद वो स्कूल नहीं आई। अर्द्धवार्षिक परीक्षा नजदीक थी और वो विध्यालय नही आ रही थी। मुझे चिन्ता हुई। मैडम ने भी कई बार सूचना दी पर वो नही आ रही थी। पूरी कक्षा जानना चाहती थी की वो स्कूल क्यों नही आ रही हैं । मैने उस गाँव की दूसरी लडकी से जानकारी ली तो उसने कहा की उसी से पूछ लेना ।मैं कहंगी तो सब कहेंगी की बिना कारण बदनाम करती हूँ। उसका जवाब मुझे कुछ अटपटा सा लगा लेकिन मुझे सच जानना था इसलिए उससे सच बताने के लिए कहा ।उसने बताया की उसका तो कोई लडके-वडके का चक्कर हैं।मुझे विश्वास ही नही हुआ। धीरे-धीरे उसकी कई तरह की अफवाहें उडने लगी।हम सब इसके विरोध में थे, लेकिन लोगो का मुँह हम कैसे पकड सकते हैं ।कई बार सोचा उससे मिल आऊ बार ,लेकिन कभी हिम्मत ही नहीं कर पायी। उस दिन मेरा जन्म दिन था और वो अचानक मेरे घर अपने मम्मी - पापा के साथ आ गयी। बताया बजार कुछ काम से आयी थी। सोचा तुझसे भी मिल लू। मैंने उन्हे चाय पानी पिलाया ।कुमुद क्या बात हैं,तबियत कुछ ठीक नही लग रहीं ।मैंने अकेली देखकर पूंछने की कोशिश की। इतना सुनते ही उसकी आँखो मे से पानी बहने लगा। वो तेरे गाँव की लडकियाँ तेरे लिए पता नही क्या -क्या बोलती हैं, तु सच बता आखिर बात क्या हैं।वो निर्बाध रूप से रोये जा रही थी। मैं नही जानती मैं सही हूँ या गलत पर मैंने तो सिर्फ प्या र किया था। एक विश्वास किया था। अपने आप से ज्यादा किसी और को चाहा था। लेकिन उसने मुझे सिर्फ इस्तमाल किया। उसके लिए मैं सिर्फ एक टाइम पास थी। मुझे बहलाकर एक हसीन ख्वाब में ले गया और यूज करके जमीन में फेंक दिया। वो तो अब भी अपनी जिन्दगी एक शरीफ आदमी की तरह जी रहा हैं पर मेरे दामन को मैला कर गया। मुझसे उम्र में काफी बडा था वो। मेरे साथ ही बस मैं बैठकर यहाँ आया करता था।यहीं अस्पताल में सरकारी नोकर हैं।पापा ने बडे विश्वास से उसको जिम्मेदारी दी थी की इसका ध्यान रखना ।अगर रास्ते में या स्कूल में कोई परेशानी हो तो संभाल लेना। लेकिन वो रक्षक नही भक्षक निकला ।लेकिन ये सच्चाई मैं आज समझी हूँ जब अपना सब कुछ लुटा बैठी हूँ और आज बहुत देर हो चुकी हैं ।मेरी हालत को देखकर पापा उसके पैरो में पड गये ।शादी के लिए खूब कोशिश की लेकिन उसने कही और शादी कर ली। मेरे बेचारे मम्मी- पापा जीनके सारे अरमान , सारे सपने मैने तोड दियें। सही कहते हैं लोग की अक लडकी के साथ जो भी होता हैं उसकी जिम्मेदार वो खुद होती हैं। मैं भी अपनी बर्बादी की खुद जिम्मेदार हूँ।सब मेरा ही दोष हैं क्यों की समाज में मैं दोषी हमेशा रहुंगी ।मुझे ही किसी पर विश्वास नही करना चाहिए था। पर अब मैं क्या करू। अब तो बात बहुत आगे बढ चुकी हैं। मैं बुरी तरह बर्बाद हो चुकी हूँ। मेरे पास कहने को कोई शब्द नहींथे। उसके अविरल बह रहे आँसू ओ को पोंछने की नाकाम कोशिश करने लगी। सच्चाई मैं जानना चाहती थी पर ऐसी सच्चाई की उम्मीद नही थी। उस दिन के बाद मेरी उससे कोई बात नहीं हुयी और ना ही मैने किसी से भी इन बातों का जिक्र नहीं किया। कम से कम मैं तो उसके विश्वास को बनायें रख सकती हूँ। अाठ- दस दिन बाद खबर मिली की कुमुद ने मिट्टी तेल छिडक कर आग लगा ली। उसे जयपुर रैफर कर दिया गया। हमारी पूरी कक्षा और अध्यापक हर दिन उसके बचने की प्राथना कर रहा था। हम सबकी हमदर्दी उसके साथ थी।दस दिन जिन्दगी और मौत से लडते हुये आखिर हार जाती हैं।उसकी मौत की खबर सुन के हम सब खूब रोये थे। एक होनहार लडकी की कहानी इस तरह अधूरी रह जायेंगी। एक ना समझी की उसे इतनी भारी किमत चुकानी पडेगी। उसका सवाल बार बार मेरे कानो में गूंज रहा था।इस समाज में हमेशा एक लडकी को ही दोषी क्यों ठहराया जाता हैं। इस देश में बडे-बडे गुनहगार जहाँ बडे-बडे जुर्म करके भी आराम से जीवन व्यापन करते हैं और दूसरी और किसी के प्यार और विश्वास की सजा ऐसी दर्दनाक मौत मिलती हैं । क्या ये न्याय सही था।