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आत्म -निरिक्षण

24 अगस्त 2022

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आत्मरति अर्थात हस्त-.....

हम इसे अच्छा विषय नहीं मानते और इससे गुरेज करते है. एक ऐसा विषय जो पूर्ण रूप से वर्जित है जिस पर बात तक नहीं होती.

लेकिन इसी एक समस्या से कितने ही नौजवानों की जिंदगी चली जाती है जिंदगी झंड हो जाती है ऐसी समस्या है ये.

हमारी सबसे बड़ी कमी है कि हम अपनी प्रमुख समस्या से मुख मोड़कर शांत रहते है और वो समस्या फिर हमारे जीवन की ऐसी गलती बन जाती है जो सुधारी भी नहीं जा सकती.

मै इस नॉवेल के माध्यम से हमारी उन आदतों की ओर भी ध्यान दिलाऊँगी जिनकी वजह से हिंदुस्तान गुलाम हो गया था और हमने कभी उस गलती पर गौर करने की जहमत तक नहीं उठाई.

क्यों है हम हिन्दू इतने लापरवाह कि किसी भी समस्या को हल्के में लेकर नज़रअंदाज करते है क्या समस्या पर ध्यान नहीं देना ही हमारा नेचर है?

हाँ!इन्हीं बातों पर मै विस्तार से चर्चा कर रही हूँ.

क्योंकि ये हमारी आदत बन चुका है कि हम आत्मरति में डूबे रहते है झूठा महिमा मंडन करते है और हद से ज्यादा अपनी पीठ थपथपाते है सुनना अच्छा नहीं लगता तो उस इंसान को उड़ा देते है जो गलती बताता है या उसे अनदेखा करते है इतना कि कोई उसे पूछे ही नहीं.

मैंने पहले ही लिखा है कि उटपटांग कथा कहकर आपका दिल बहलाना मात्र मेरा उद्देश्य नहीं है वरना चिंतन की आदत डालना है और पाठकों को सत्य से अवगत कराना है. ताकि हम जान सके कि गलती कंहा हो रही है और असत्य में न डूबे रहें.

आत्मरति यानि अपने आप से ही मनोरंजन कर लेना, अपने को ही समझा लेना, अपने सुख के लिए किसी का आश्रय नहीं लेकर खुद को ही इस्तेमाल कर लेना.

आजकल सोलोगेमी भी प्रचलित है एक लड़की ने खुद से ही शादी कर ली विधिवत उत्सव मनाकर. दो लड़कियां भी शादी कर रही थी लेकिन वो आत्म रति नहीं है सोलोगेमी आत्म रति है कि आप अपने को खुद ही संतुष्ट करने का प्रयास करते है.

और ये स्थिति साधारण नहीं असाधारण भी है जीवन कठिन होता है उनका जिन्हें साथ नहीं मिलता और जो आत्म रति या हस्त -मैथुन को विवश होते है.

क्योंकि सेक्स का स्ट्रोक प्रत्येक में आता है उसे संभालना मुश्किल होता है इसी दौर में कुछ बलात्कारी हो जाते है गलत कुकर्म करते है और जो अंतरमुखी है जो पाप नहीं करते किसी को हानि नहीं पहुंचाते वो आत्म रति में डूब जाते है.

ये महज शरारीक क्रिया नहीं होती ये लम्बी मानसिक दशा भी हो सकती है.

एक सीधा -सादा लड़का जो किसी से कुछ बोल नहीं पाता मिलता -जुलता नहीं लेकिन उसकी शरारिक जरूरत जो है उसके लिए वो किसी को पटाता नहीं, गलत राह पर जाने की प्रवरति नहीं तब वो अपने आप को किसी तरह से शांत करता है ये सेक्स नहीं है ये एक प्रक्रिया है जिससे उसे गुजरना पड़ता है. कोई नहीं जिससे वो अपने दिल का हाल कहे, शादी -ब्याह एकाएक नहीं होते इनके लिए आपके पास जान -पहचान जरूरी होती है.

चलिए ज्यादा भूमिका नहीं बांध कर हम अपने कथा -नायक पारस से मिलते है.

14-15साल का पारस जिंदगी के कई सवाल उसके मन में है जिसका जवाब वो खुद से निकालता है लेकिन सच क्या है? उसे पता नहीं?

पारस एक सुदर्शन किशोर है लेकिन जिंदगी में झंझवात ज्यादा है. उसे कुछ भी नहीं समझ आता कि ऐसा क्यों है?

ज़ब वो छोटा सा था तभी से देखता आया था कि उसके मम्मी नीति और पिता सोम बहुत लड़ते थे दोनों में नहीं बनती थी. उसके पिता मम्मी को मारते भी थे जिससे उसकी माँ भीतर से हिल चुकी थी. वो बहुत कुछ करना चाहती और अपने लेखन में व्यस्त रहती किन्तु क्या पारस को साथ मिल पाया था.

वो तब भोपाल में पढ़ रहा था नहीं पता मम्मी को क्या फ़्रस्ट्रेशन था वो कहती -बेटे!लड़कियों से बच कर रहना.

ये उसकी माँ की गलत सोच थी एक अस्वभाविक और unnatural जिंदगी वो खुद भी जी रही थी और बेटे को भी वो गलत तरिके से कह रही थी कि लड़कियों से दोस्ती मत रखना.

नहीं पता नीति ने कब कहा होगा लेकिन उसे उसके बेटे पारस ने यंही कहा कि तुमने स्कूल में मुझे लड़कियों से दूर रखा दोस्ती नहीं करने दी.

बेचारी नीति सबके द्वारा कटघरे में खड़ी कर दी गईं थी. कोई भी उसे कहता ये नहीं की कोई कहता वो नहीं की एक तरह से सबकी बातें उसे छलनी करती थी.

बेटे के जिंदगी के लिए उसने प्रयास नहीं किये ये उस पर सब इल्जाम लगाते सब उसपर दोष थोपते थे उसपर पूरी दुनिया जैसे टूट पड़ी थी कि तूने अपने बेटे की जिंदगी बिगाड़ दी...

बेटा भी ज़ब कहने लगा कि उसे लड़कियों से दोस्ती नहीं करने देती थी तो उसे लगा उससे बहुत बड़ी गलती हुईं है और वो सुधारना चाहती. जिंदगी से एक अवसर मांगती कि कैसे भी बेटे के लिए कुछ अच्छा करें. लेकिन अच्छा करने के चक्कर में गलत ही हो जाता था.

नीति अपनी गलती मानती और सुधारने में लगी रहती क्योंकि ये वो सवाल थे जो उसके बेटे की जिंदगी से जुड़े थे.

पारस बहुत मेधावी था और हमेशा घर पर खुद ही मेहनत करके रात दो बजे तक पढ़कर मैथ्स, फिजिक्स और केमिस्ट्री में उसने 76%लाये थे 12th में जो नीति के हिसाब से अच्छा था. पीसीएम में शायद पारस के परसेंट ज्यादा थे और सब चाहते थे कि उसे इंजीनियरिंग में डाला जाये लेकिन उसे नीति ने aptech के बीएससी में डाल दी जँहा पारस ने फर्स्ट year में 84%लाये लेकिन वो पढ़ना नहीं बल्कि ट्यूशन पढ़ाना चाहता था यंहा फिर से गलती की थी नीति ने यदि पारस मैथ्स की ट्यूशन पढ़ाना चाहता था तो उसे करने देना था क्योंकि साइकोलॉजी के हिसाब से पारस का आउटपुट नहीं था और इनपुट बढ़ते जा रहा था जो उसके इमबैलेंस होने का कारण बन रहा था.

नीति नित नई मुश्किल में घिर रही थी जिसका कारण उसका एक बहुत ही गलत और नामाकुल शख्स के हाथों खुद का शोषण कराना था. हालांकि वो उस गलत आदमी के चंगुल में फंसी थी उसका नाम था धीरज ये व्यक्ति खुद को जमींदार और जाने क्या -क्या बताता था और नीति जैसी सीधे स्वभाव की औरतों को फान्स कर उनका शोषण करके निकल जाता था चालक इतना कि पकड़ में नहीं आता था क्योंकि अपनी सज्जनता के बल पर पहले लेटर में कई तरह की बातें लिखवा लेता था जिससे उसके जाल में फंसी औरतें बेबस और असहाय होकर लूट ली जाती थी.

एक गलत आदमी की कुसंगति में फंसने का दुष्परिणाम क्या होता है ये कोई नीति से पूछे? वो अहमक और अहंकारी हो गईं थी गलत आदमी की बातों का गलत असर उसपर होने से वो एक सामान्य माँ की तरह अपने बेटे के सुखद भविष्य के लिए सपने नहीं सजा पा रही थी या उसे नहीं समझ में आया कि वो जो सोच रही है वो पूरी तरह से गलत है एक ऐसा आदमी जो उसे एक फूटी कौड़ी की मदद किये बगैर यदि उससे गलत बातें करता है तो ये उस नीच आदमी की कारस्तानी थी और चरित्रवान होकर भी नीति लूज़ समझी गईं उस पर तोहमत तो लगनी ही थी वो हँसी का पात्र बन कर रह गईं उसकी निर्णय क्षमता पर असर पड़ा और उसके सारे फैसले गलत साबित हुए वो पूरी तरह से डिस्टर्ब हो गईं थी और इसी ने उसके जीनियस बेटे को आत्म रति का आदी बना दिया.

अपनी माँ को जिसे वो बहुत चाहता है जो उसके जीवन का एक मात्र केंद्र है जिससे हर सुख -दुख की बात कह सकता था वंही एक गलत आदमी के चक्कर में पड़ गईं जिसे वो अच्छा नहीं समझता क्योंकि वो आदमी धीरज वाकई गंदा है और उसकी करनी अच्छी नहीं है. पारस ऐसी गंदी सोहबत को लाइक नहीं करता विरोध नहीं जता पाता इसलिए वो गुस्से में मास्टर बेसन का शिकार हो जाता है और इससे उसमें बहुत ज्यादा कमजोरी आने लगती है वो चुप रहता है. पिता तब अलग रहते थे माँ ने पिता के प्रति जहर भर दिया था तो पिता से बात नहीं हो पाती थी. नहीं कह पाता था दिल की बात ज़ब उसकी माँ एक गैर -आदमी से बात करती या चिट्ठी लिखती तो वो बेचारा मन में लज्जित होता और अपने दिल की बात किसी से नहीं कहता था. वो इतना जहिन था इतना अच्छा था कि किसी से कुछ नहीं चाहता या मांगता था पर धीरे -धीरे मानसिक रूप से कमजोर होते गया था.

उसके लिए ये समझना मुश्किल था कि जो कुछ घट रहा है वो ठीक नहीं है वो अपनी माँ की गलत संगति से ऐसे मकड़ जाल में फंस गया था कि जिसमें से निकल जाता यदि उसकी माँ समझ लेती कि उसका बेटा ही उसका सबकुछ है वो गैर -आदमी तो एक नीच दुष्ट जलसाज है जिसका धंधा ही भले घर की औरतों को फान्स कर अपनी वासना -पूर्ति कर भाग जाना है तब ऐसे आदमी की छाया से भी दूर रहना चाहिए ये लोग न केवल घातक होते है किसी भी सीमा तक जा सकते है.

उस आदमी की कुसंगति से वो किसी सेक्स रैकेट में भी फंस सकती थी उसके बेटे से कोई गलत काम भी हो सकता था क्योंकि वो आदमी जो अपने आप को iti इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्री का एक हिंदी अधिकारी कहता था दरअसल वो अपने अधिकारी रसिक के साथ एक रैकेट चला रहा था जंहा दुनिया भर की औरतों के बारे में धीरज शर्मा और उसके दोस्तों में गंदा वार्तालाप होता था ये लोग बड़े तबके के नीच लोग थे जो नौकरी तो सरकारी कर रहें थे लेकिन इनके काम इतने नित्कृष्ट थे कि नीच आदमी भी लज्जित हो जाये. धीरज शर्मा एक नंबर का कुकर्मी था और अप्राकृतिक कुकर्म करता था जिसमें वो सममोहन से लेकर डराने धमकाने और ब्लैक मेल करने की तकनीक अपनाता था उसने शायद अपनी पत्नी के साथ भी यंही गंदगी की थी जिससे वो विवाह के मात्र 6साल में चल बसी थी लेकिन इससे धीरज को कोई फर्क नहीं पड़ा था उसके कुकर्म बदस्तूर जारी थे.

पारस को इसलिए इस आदमी की शक्ल अच्छी नहीं लगती थी उसका नन्हा सा मन गवाही देता था कि वो नीच दुष्ट पाटकी है इसलिए ज़ब भी उसे ख्याल आता कि इस आदमी ने उसकी माँ का शोषण किया है और वो कुछ नहीं कर पाया तो वो आत्म -रति यानि हस्त -मैथुन का शिकार होते चले गया जिससे उसकी हालत गिरने लगी थी. पर नीति को नहीं समझ आ रहा था कि हो क्या रहा है. लगातार हस्त -मैथुन की वजह से अब पारस को बुखार रहने लगा था और उसे जाड़ा भी लगता था सिर दर्द भी भीतरी गुस्से और असहायता की वजह से होता था. कोई भी ऐसा नहीं था जिसे वो दिल का हाल कहता.

यंही कारण है उसने जो दुख किसी से नहीं कहा उसे इस तरह से अपने साथ ज्यादाती करने लगा.

शायद सभी अकेले पन का शिकार होने वाले इस स्थिति से गुजरते है साइकोलॉजी में इसे सामान्य प्रक्रिया मानी जाती है लेकिन पारस और मन दोनों से एकाकी हो गया था उसके माँ का जीवन भी एकाकी ही था वो मन में उस गलत शख्स को मानती भर थी प्रत्यक्ष उनका कोई संबंध नहीं था. बरसों पहले पारस के बचपन में घटी एक घटना ने उसके वजूद को जैसे दांव कर लगा दिया था.

वो भीतर ही भीतर घुट रहा था और क्रोध की आग में जल रहा था क्योंकि ज़ब बचपन में उस क्रूर और शातिर गंदे शख्स ने उसकी माँ की बेइज्जती की थी तो उसे लगा था वो उस गंदे नीच आदमी को वंही मार दे लेकिन वो तब कितना छोटा था और वो क्रूर घटिया आदमी कितना बड़ा ताकतवर था पारस कुछ नहीं कर सका था और तभी से उसने चुप्पी की चादर ओढ़ लिया था. उसने हर तरह से अपने को समेट लिया था.

पारस का मन अध्ययन में लगता था लेकिन उसके साथ ही उसे यंही एक हैबिट लग गईं थी जिससे निकलना जरूरी था और उसने कहा था कि अभी वो पढ़ने के बदले सिर्फ ट्यूशन पढ़ाएगा. लेकिन उसकी बात को किसी ने माना ही नहीं.

यदि पारस ट्यूशन पढ़ाना चाहता था तो इसमें छोटी बात क्या थी? पर नीति की बहन ने कही कि उसे आगे पढ़ाओ तो पारस का एडमिशन aptech कंपनी के बीएससी it में कर दिया. वंहा भी पारस ने पहले से भी अच्छा परफॉरमेंस दिया लेकिन उसकी हस्त -मैथुन की समस्या बनी हुईं थी जिससे उसे कमजोरी आ रही थी. यदि उस वक़्त किसी मनोचिकित्सक को दिखाते तो समस्या का निदान होता.

अख़बार में एक कंसल्टेंसी वाले के पास गए तो वंहा एक युवती मिली जिसने इधर -उधर की बात करके नीति से कहा कि वो प्रेयर कर देती है वो आगे उनके यीशु में शामिल हो. वो दरअसल एक कन्वरशन करने वाली लड़की थी. नीति ने उसे 100/दिए और वो निकल गईं वंहा से. अपने धर्म छोड़ने का तो सवाल ही नहीं था.

फिर पारस को लेकर नीति चली गईं मुंबई जंहा उसे फ़िल्म डायरेक्शन सीखना था और उसी इंस्टिट्यूट में पारस का फिजिकल फाइटर के कोर्स में दाखिला करा दिया. अभी बीएससी पूरा नहीं हुआ था 2सेमिस्टर ही हुए थे. नीति ने सोचा कि aptech कंपनी का पता कर मुंबई में ही बाकि सेमिस्टर कम्पलीट करा लेंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. फिर भी फाइटिंग के कोर्स से सबके साथ रहते हुए पारस में बहुत चमत्कारिक परिवर्तन और सुधार हुए. पारस अब अपने फाइटर मास्टर का प्रिय शिष्य बन गया था यंहा भी उसने अच्छा स्थान बनाया और अव्वल रहा. साथ ही वो लोखंडवाला के जॉगर्स पार्क में घूमने जाने लगा. शुज पहनकर वो दौड़ लगाने जाता था. जिससे उसे अच्छा लगा वंही जोगर्स पार्क में उसकी मुलाक़ात हुईं मोहिंदर अमरनाथ से जिन्होंने उससे बात की और कहा कि वो फिल्मों में try क्यों नहीं करते किन्तु वो मुस्करा भर दिया. पारस से मोहिंदर अमरनाथ इतनी ही बात करते थे hii हेलो!पारस ने उनसे ज्यादा निकटता की कोई कोशिश नहीं की.

बाद में उसे बास्केट बॉल खेलने की इच्छा हुईं तो उसने स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स जाना चाहा लेकिन वंहा तब एक दिन की फीस 100/थी जो पारस की मम्मी को ज्यादा लगी और बिना पहचान के उतने बड़े शहर में अकेले भेजने का मन नहीं हुआ तब पारस को अपने गृह जिले की याद आई उसने गृह जिले लौटने को कहा. अपना करियर का स्ट्रगल छोड़ कर तब नीति लौट गईं मुंबई से 1000किलोमीटर दूर अपने शहर में लेकिन कोई अपना नहीं था. बस अपने माता -पिता के पास नीति तब पारस को लेकर चले जाती तो पारस को अच्छा लगता था. माँ ने हमेशा नीति को समझाई कि वो पारस पर ही ध्यान दे.

नीति लेकिन अपने लिखने के काम में लगी रहती थी और इस तरह से पारस ने डॉक विभाग की परीक्षा दी और कॉम्पीटिशन की तैयारी की उसने संविदा शिक्षक का भी एग्जाम देना चाहा जिसे उसके पिता ने मना कर दिया.

इसके साथ ही पारस कॉम्पीटिशन और telly की कोचिंग भी करता रहा. उसने इंग्लिश की कोचिंग भी लिया लेकिन उसने बैंक एग्जाम की जो तैयारी किया था वो सारे नोट्स एक बार फिर मूर्खता वश उसकी मम्मी ने रद्दी में बेच दिए. अपने एक गलत आदमी की कुसंगति में फंसी नीति इतनी मुर्ख हो गईं थी कि उसे नोट्स का महत्व नहीं समझ आया. इससे पारस जैसा होशियार लड़का एकदम से अपना base जो वो तैयार कर रहा था खो देता था उसकी बार -बार की कोशिश पर उसकी मम्मी ने ही पानी फेर देती रही. इन सभी वजह से पारस जैसा जहिन लड़का एक दम से डिप्रेशन में चले गया अपने माँ की गलतियों का खामियाजाना भुगत रहा था. अब तक पारस हिल चुका था उसका कॉन्फिडेंस गड़बड़ा गया और उसके मन में यंही उभरता यदि उसकी माँ ने एक काईनया गलत आदमी से दोस्ती नहीं की होती तो शायद वो इतना नहीं पिछड़ता इसलिए उसका गुस्सा एकदिन अपने साथ हुईं ज्यादाती पर फूट पड़ा.

उसे जाने कितने लोगों से नफ़रत हो गईं. तब नीति को समझ आया कि उससे बड़ी भारी गलती हुईं है ऐसी गलती जिसने उसे सामाजिक रूप से भी खत्म कर दिया.एकतरह से नीति को भी गलत संबंधो की सजा मिली.

पारस की तबियत बहुत बिगड़ चुकी थी उसे अपना भी होश नहीं रहता था इतनी परेशानी में भी उसने कोई गलत राह नहीं चुना किसी गलत रास्ते पर नहीं गया. नीति और उसके पति ने बेटे के लिए जो कर सकते थे जंहा जा सकतेे  थे गए और इस तरह 12बरस तक सब जगह मंदिर, मज़ार और चर्च जाकर प्रेयर और प्रार्थना की पूजा किये. कितने डॉक्टर्स को दिखाए. कितनी थेरेपी कराये और बहुत कोशिश करके एक सुन्दर सी लड़की देख पारस की शादी भी कर दिए.

यंहा पर नीति ने अपनी बहु कला को हर बात और अपनी गलती बता कर कही कि अब तुम्हें ही पारस को संभालना है. मै तुम्हें घर सौंप कर मुंबई चली जाउंगी और अपना संघर्ष करूंगी.

लेकिन वो गांव की लड़की होने से नहीं समझ सकी और उल्टी -उल्टी बातें कर उसने उन लोगों से पैसा उगाही शुरू कर दी. बेटे की हालत ठीक नहीं होने से 34000/रू तक नीति ने बहु के भाई को दी लेकिन उसने 2लाख रूपये की मांग कर दी तब तो नीति भी कुछ नहीं कर सकी और कला उनपर झूठा मारपीट और दहेज का केस लगा कर चली गईं. उसे पारस से कोई मोह नहीं था उसने सारे गहने मंगलसूत्र आदि बेच दी.

इस तरह मात्र 7महीने में पारस की शादी टूट गईं. नीति ने बहु को मनाने लाने की बहुत कोशिश की लेकिन उसके भाई ने बहुत गाली दिया वेश्या है ये तो...

ऐसा उसकी बहु ने नीति के भाई से बोलकर बेइज्जती की और विदरूप हँसी हँसने लगी.

आखिर झूठे दहेज केस उठाने के लिए 7लाख रूपये की मांग बहु और उसके भाई ने की किन्तु नीति ने वो केस लड़ा और उसकी बहु के केस को ख़ारिज कर दिया गया क्योंकि उसने झूठा केस डाली थी.

खैर इस झंझट में दो -तीन साल लग गए सभी ने नीति के बेटे पारस से खूब खेल किये पर नीति मजबूती से बेटे को ठीक कराने भागदौड़ करते रही और उसे सफलता भी मिली पर समस्या तो वंही की वंही रही. पारस फिर से अकेले हो गया.

उसे अपने को संभालना तो था लेकिन उम्र का तकाजा और किसी भी रिश्ते के आभाव में वो  फिर से मास्टर बेसन करने लगा तो उसे कमजोरी आने लगी.

नीति को समझ नहीं आता था कि बेटे को इस लत से कैसे निकाले पर समस्या थी.

सब फिर से शादी को कहते लेकिन कोई मदद नहीं थी कोई रिश्ते वाले रिश्ता कराने तैयार नहीं किससे कहती.

खैर!अब नीति घबराती नहीं उसे पूरा विश्वास है कि जो भी होगा अच्छा होगा और पारस के जिंदगी में फिर अच्छी लड़की जरूर आएगी. इसी विश्वास के साथ कई अच्छे कामों में नीति ने खुद को लगा ली जो मान -प्रतिष्ठा गईं थी उसे पुनः हासिल करना था जिंदगी थी इसे अच्छे से निकालना था.

नीति ने पारस को ज्यादा प्रेरित नहीं किया क्योंकि लोगो के उपदेश से वो अब चिढ़ रहा था हर कोई कोई न कोई सलाह देता रहता.वो कहता -मै एकदम अकेले रहता हूँ तब ध्यान में ही तो रहता हूँ तब मुझे सब मैडिटेशन की सलाह क्यों देते है?

कोई उसे दौड़ लगाने कहता कोई कुछ करने जबकि उसकी समस्या एक सच्चे साथी की खोज की समस्या है.

ज़ब भी मिलना होंगी वो साथी उसे मिल जाएगी ये नीति जानती थी.

नीति ने भगवान पर अपना भरोसा नहीं छोड़ा था उसे उसके किये कि सजा मिल गईं थी अब वो चाहती थी कि बेटे और उसके जीवन में चैन आये.

हालांकि उम्र का ये दौर था ज़ब पारस को सच में साथी की ही जरूरत थी उस साथ के लिए इंतज़ार करते पारस को मास्टर बेसन का सहारा लेना पड़ रहा था. ये ऐसी समस्या थी जिससे तभी निकला जा सकता था ज़ब उसे कोई साथी मिले और समाज से अलग -थलग होने से छोटे शहर में ये सम्भव नहीं था. पारस वेश्यावृति या कॉल गर्ल की सहायता नहीं लेता था. तब मास्टर बेसन पर ही वो निर्भर था. ये शरीफ लड़कों की वो समस्या है जिससे वो लोग कई बार मुश्किल में में पड़ जाते है उन्हें नहीं सूझता कंहा जाये ये समस्या किससे

कहे क्योंकि लोग खिल्ली उड़ाते है सीधे लड़कों को ये दुनिया कोई जीने का हक़ नहीं देती. उनसे हर तरह का अधिकार छीन लेते है यंही इस दुनिया की रीत है.

हमेशा तो किसी एक ही बात पर नहीं सोचा जा सकता कितने साधु, ऋषि -मुनि हुए है गलती सभी से होती है नीति अब यंही चाहती है सब सकारात्मक हो. किसी पर दोष मड़कर कोई समस्या नहीं हल होंगी. दिल छोटा करने से कुछ नहीं होगा. इसलिए दिल बड़ा करकरे जीना है पिछली बातों को याद करना बंद करना होगा यंही संकल्प नीति ने लिया और जो गलती हुईं है उसपर सोच -सोच कर दुखी नहीं होना चाहती क्योंकि हर बात का वक़्त होता है.

आज की समस्या ये है कि पारस के दिल पर जो बात उसे दुख दे रही थी उन सभी विचारों से मुक्त कराया जाये.

क्योंकि किसी बात का दिल में जजड़ जमा लेना और दिल का पत्थर जैसे होना अब कोई मायने नहीं रखता निकलना होगा सभी चीजों से.

मन की नकारात्मक शक्ति दूर हो मन हर हर रहें ख़ुश हो तो हर बात को सुधारा जा सकता है. जो हो गया सो हो गया अब गलती नहीं करना है यंही सोचकर नीति मेहनत करके भगवान शिव की आराधना करती है बाबा गोरखनाथ को याद करती है कि वे चाहेंगे तो बेटे के जीवन पर छाई दुख की बदली अब छटनी चाहिए.

पारस को लेकर नीति डॉ के पास भी गईं लेकिन डॉक्टर ने कहा -ये बहुत नार्मल है हर लड़का या आदमी जीवन में यह सब करता है जीवन में हमेशा किसी के पास साथी नहीं होता. और सभी के जीवन में ये दौर आता है अब आप पर निर्भर करता है कि आप उसे कैसे हैंडल करते हो. क्योंकि शारारिक जरूरत सभी की होती है उनसे निकलने लोग मास्टर बेसन का सहारा लेते है क्योंकि वो किसी की इज्जत नहीं लुटते वो किसी को पा नहीं सकते बुरे कर्म नहीं कर पाते या साधारण मित्रता नहीं भी नहीं मिलती तब वे अपने मन को इसी तरह से शांत करते है.

लज्जालु और शर्मिंले लड़कों का यंही सब होता है उनके पास विकल्प होता नहीं तो मास्टर बेसन ही एक विकल्प बचता है. डॉ कहते है आप अपना ध्यान अन्यत्र लगाए ताकि आपका ध्यान बार -बार शरारीक जरूरत पर नहीं जाये. यदि खेलकूद में रूचि है तो वह कीजिये. ऐसी कई बातें डॉ कहते है फिर भी जिस पर गुजरती है वंही जानते है कि वो कैसे अपनी समस्या से जूझते है ऐसे में कई बार हिस्ट्रीरिया के दौरे भी पड़ते है.

कुछ लोग अपने फर्ज जैसे सेवा कार्य में लगकर तो कुछ लोग अन्यत्र जाकर भी अपना काम चलाते है क्योंकि पारस जैसे लड़के दूसरी जगह जा भी नहीं पाते वो अपने घर की मान -प्रतिष्ठा का ख्याल रखते है उनकी जीवन -शैली भी ऐसी नहीं होती कि बिंदास कंही भी निकल जाये और अपनी वासना -पूर्ति करके आ जाये.

पारस का ऐसा है कि वो घर -गृहस्ती में रहकर ही शायद संबंध बना पाता उसे अपनी पत्नी के साथ ही सबकुछ सहज लगता लेकिन ज़ब ऐसा नहीं हो पाया पत्नी अपने मायके के मोह में पारस को ठुकरा कर चली गईं तब वो क्या करता वो तो इतना बीमार हो गया था कि बेचारी नीति उसे लेकर नागपुर गईं कंहा कंहा नहीं गईं पर भगवान ज़ब सुनेंगे तभी उसकी समस्या हल होंगी.

तब तक पारस ने कहा कि वो मुक्के बाजी करेगा और साइकिल चलाएगा. नीति ने कई बार कोशिश की कि वो शादी साइट्स पर जाये वो यंही सब सोचती रहती है क्योंकि ज़ब आईडिया नहीं मिलता विकल्प हाथ में नहीं होते तब धैर्य से काम लेना होगा.

यंहा मेरा उद्देश्य उस समस्या से रूबरू कराना है जो एक सीधे -सामान्य लड़के की समस्या है क्योंकि ये जान भी ले सकती है कहने को सभी डॉक्टर्स कह देते है कि सामन्य है लेकिन जो सहज नहीं है वो शक्ति का क्षय करती है किन्तु बार -बार उधर ध्यान नहीं जाये इसलिए पारस जैसे एकाकी लड़के मास्टर बेसन का सहारा लेते है.

यंहा पारस जिस मनः स्थिति से गुजरा उसकी भी अहमियत है जिसने पारस को फ़्रस्टेड किया और उसे लगा कि यदि उसकी माँ एक नीच, घटिया शख्स के जाल में फंसी है तो ये उसकी नाकामी है.वो चाहता था कि माँ उस गंदे आदमी की बात भी नहीं करें. उसके नन्हें मासूम मन पर इसका इतना बुरा प्रभाव पड़ा था और वो अपना दुख पी रहा था और उस लज्जा और विषाद को पीकर जी रहा था तब उसे जीने में कोई रस नहीं था कोई उत्साह नहीं था वो हर तरह से हारा और पराजित था वो किसी से बदला नहीं ले सकता था किसी को भला -बुरा नहीं कह सकता था वो पूरी तरह से एक खोल या आवरण में बंद हो गया था.

उसके लिए जिंदगी का कोई मतलब ही नहीं था यदि माँ एक गैर -आदमी जो कतई अच्छा नहीं था ओछी बातें और हरकतें करता था तब वो मासूम बच्चा खुद से जैसे लज्जित था कि माँ क्यों नहीं समझती वो माँ को इस आदमी से कैसे बचाये जो झूठा और मक्कार तथा कामुक है.

तब उसने खुद को ही नुकसान पहुंचाया उसे मास्टर बेसन की लत लग गईं और वो इससे खुद को इतना कमजोर पा रहा था कि उसका ध्यान पढ़ाई से हट गया. हालांकि ज़ब भी उसने एग्जाम दिया वो हायर फर्स्ट क्लास रैंक से ही पास हुआ लेकिन वो आगे पढ़ना नहीं चाहता था. और ज़ब फिर से पढ़ाई में जुटा तो उसने iijt में एकाउंटिंग में 93%तक लाये और जल्दी नौकरी करना चाहता था. ज़ब जॉब लगी तो बड़ा मन लगा कर काम किया. किन्तु कम वेतन के नाम पर ज़ब नीति ने उसे जॉब पर जाने से मना कर दिया तब वो बहुत रोया और बीमार रहने लगा. यंहा उसे बहुत ज्यादा बुखार रहा और इसी हालत में उसके दिमाग़ पर गलत असर पड़ते चला गया.

मुझे ये सब लिखने में ठीक नहीं महसूस हो रहा इसलिए अबमैं विषयन्तर करती हूँ.

ऐसा ही एक मामला उप्र के लखनऊ में घटित हुआ जंहा माँ साधना के किसी गैर -मर्द से संबंध थे और 16साल के बेटे ने इससे परेशान होकर माँ को गोली मार दी.

क्योंकि वो 16साल का था और इस वक़्त बच्चों में तीव्र हार्मोन बदलाव होते रहते है. कोई भी ऐसी घटना का ट्रिगर काम करता है इसलिए बच्चों को इस दौरान नकारात्मक बातों से बचाना चाहिए उनको फालतू मामलो में नहीं घसीटना चाहिए.

नीति को लगा कि एक गैर -आदमी की प्रसंशा करके वो पारस का समर्थन पा जायेगी और गैर -पुरुष से अपने एकतरफा प्रेम को जायज ठहराएगी. लेकिन वो पूरी तरह गलत थी. उसका ही बेटा किसी भी पुरुष को माँ से नजदीकी संबंध की इजाजत कैसे दे सकता था और ज़ब विरोध नहीं कर सका तो उसने आक्रोश को निकालने का यंही आसान तरीका निकाला बाद में यंही लत बन गईं.

आत्म रति पर अगले अध्याय में मै दीगर बातें लिखूँगी अभी मेरा ध्यान ये है कि पारस की उस मनः स्थिति का विश्लेषण करू और ऐसे अन्य बच्चों या युवाओं की ओर जन -मानस का ध्यान खींचू कि सीधे -साधे युवाओं को क्यों साधरण ख़ुशी से वँचित करता है ये समाज.

बहूधा उसे लोग लड़की नहीं देते कहते है सीधा है किन्तु सीधा होना इतना बड़ा दोष कैसे?

पारस के सीधे होने के अलावा बहुत ज्यादा सच्चा होना भी उसकी जिंदगी की कमी बन गया. फिर लोगों ने ये प्रचार कर दिया कि वो कोई काम नहीं करता. जबकि वो एक मेधावी व जिम्मेदार युवा है लेकिन लोगों ने गलत बातें फैलाई. उसके पक्ष में बातें नहीं करके उसके खिलाफ बात की अपनों ने ही उसकी शादी में मुश्किल पैदा की शादी हो गईं तो लोगों ने सीखा -पढ़ा कर बेचारे पारस का विवाह ही खत्म कर दिया.

पारस का कोई दोष नहीं है उसने तो अपने को नार्मल रखने की कोशिश की पर बिना उसकी मानसिक हालात को समझे वो पारस को क्या -क्या कहकर बदनाम करते थे.

मानस यदि अपने में मस्त रहता तो सब कुछ अच्छा होता किन्तु उसके मन में एक पंडित से नफ़रत हुईं तो उसने सारे धर्म से नफ़रत करना शुरू कर दिया

यंही नहीं वो कभी मज़ार जाता तो कभी चर्च प्रेयर से उसे सुकून मिलता.

बेशक कथा बोरिंग हो सकती है किन्तु मुझे जो बात रखनी थी इस कथा के माध्यम से रख रही हूँ और यंही कहना चाहती हूँ कि कई बार हम मूल समस्या पर गौर नहीं करते कुछ लोग तो इस बात को मानना ही नहीं चाहते थे कि पारस की असली समस्या है कि उसे 35-36की उम्र में साथी नहीं मिल रही. और इसी बात को नज़रअंदाज करके ये करो वो करो की सलाह दी जाती है. कई बार तो डॉक्टर तक मूल समस्या पर ध्यान नहीं देते किन्तु पारस को साइकोट्रिक की दवा से फायदा तो हुआ लेकिन ये भी सच है कि डॉक्टर बहुत ज्यादा मेडिसिन लेने कहते है जिससे कि भारी पन महसूस होता है और शरीर में झंझनाहत होती है. नींद आती है और शरीर टूटता है.

ये उन दवाओं के साइड इफ़ेक्ट होते है शरीर की जरूरत पूरी नहीं होने से मन किसी काम में नहीं लगता और गलत दिशा में भागता है.

पारस आजकल हफ्ते में एक या दो बार मास्टर बेसन करता है ऐसा करने से उसकी ऑंखें पीली और निस्तेज होती है कमजोरी लगती है ये अलग बात है कि डॉक्टर इसे जरूरी क्रिया मानते है.

पारस जैसे जाने कितने युवा है जो कि अपने जिंदगी में इस तरह की समस्या से जूझ रहें है कुछ लड़कों की घर की समस्या होती है कुछ बेरोजगार होते है तो कुछ मन की समस्या से बीमार हो जाते है. बेहतर हो कि उन पर मानवीय तरिके से सोचे और लड़कियां भी ऐसे लड़कों को कम नहीं आके ये लड़के बहुत परवाह करने वाले होते है भावुक होते है और कभी किसी को धोखा नहीं देते इनकी शादी शुदा जिंदगी खुशनुमा होती है. लड़कियों को ऐसे संवेदनशील लड़कों को कम नहीं आँकना चाहिए.

पारस भी देर से ही सही अपनी मंजिल पा लेगा और उसे जीवन की हर वो खुशियाँ मिलेगी जिसका वो हक़दार है उसे एक सच्ची जीवन संगिनी 
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अपने आप को परखे :जोगेश्वरी सधीर
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हम अपने उलझें रहते है और खुद को ही खुद की खबर नहीं होती. अपने -आप में डूबे रहना और खुद से ही खुद को समझा लेना बड़ी कला होती है

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