मेरे बचपन का दौर अलग था उनका रहन -सहन अलग था उनके जीवन का उद्देश्य सहकार जीवन था सब मिलकर जीते थे दुख -सुख को भोगते थे... उन्हीं की यादों में.
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बहुत छोटी सी उम्र में बुआ के घर चली गईं विस्थापित हो गईं थी क्योंकि मेरे हालात ही कुछ ऐसे हो गए थे और मेरा माँ के यंहा से बुआ के घर जाना हो गया था पर मेरा आना -जाना आज भी नहीं रुका है मै आज भी पहले की
बुआ जी के यंहा ही बचपन बीता और वंहा की यादें बड़ी प्यारी है अच्छी लगती है और मै सोचती हूँ सभी लोग वंहा कितने अच्छे थे कितना प्यार था वंहा... बुआ ने जो संसार बसाई थी उसमें बड़ा प्यार था बड़ी व्यवस्था थ
यूँ तो बुआ जी हिर्री आते -जाते रहती और मुझसे मिलकर अपने मन को समझा लेती थी लेकिन जो सुख उन्हें मेरे उनके घर हट्टा में रहने से मिली थी वो चली गईं. दीर्घ सांस भरकर उन्होंने इस दुख से निकलना चाहा पर हट्ट
बुआ जी मुझे छोड़ कर चली गईं बहुत दूर और फिर लौटकर नहीं आई मै उनके लिए रो भी नहीं सकी. इतनी परवश थी मै कि जा भी नहीं सकी अंतिम यात्रा में. पन्ना के यंहा जाने की सलाह देने वाली आज तक मै पछताती हूँ कि