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औरत का दर्द

23 नवम्बर 2021

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अक्सर मैंने जोरदार ज़नानी आवाज़ों के पीछे का
दर्द देखा हैं।
लोग कहतें है कि आज कल की औरतें तलाक को लेके बड़ी सामान्य है।
मैंने कुछ पुराने सालों पहले की औरतों का दरवाज़े के पीछे का दर्द देखा हैं।
मिलती है जो हँस के अक्सर मोहल्ले में सबसे,
मैंने उसकी आँखों में अकेलेपन का दर्द देखा है।
कहते है जिसे सबसे तेज़ औरत इलाके की
मैंने उसे अकेले में बेहद कमजोर देखा है।
तुमने देखा या सुना होगा बहरूपिया,मैंने औरत से बड़ा बहुरूपिया न देखा।
भरे आंख में आँसू, कपड़ो से ढके जख़्मी जिस्म को छुपाते,भरी महफ़िल में मेहमानों के सामने मुस्कुराते।
मैंने ऐसी अबला को देखा है,मैंने ऐसी अबला को देखा है।
सौ बात सौ जुल्म सहे है अपनी औलाद के लिए,
मैंने अक्सर कमरे में बंद सिसकती माँ को देखा है।
खुद को उलझा कर जमाने की जिम्मेदारी में वो खुद को भुला देती है कँही, 
ज़नाब ये औरत है चंद प्यार भरे बोल के लिए खुद को लूटा देती है कँही।
काव्या सोनी

काव्या सोनी

Bilkul shi kaha aapne bahut hi acche se likha shandar rachana 👌👌👌👌

24 नवम्बर 2021

Shailesh singh

Shailesh singh

बहुत ही मार्मिक लेखन

23 नवम्बर 2021

Dinesh Dubey

Dinesh Dubey

बहुत सही कहा है

23 नवम्बर 2021

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रचनाएँ
अनीता की कविता डायरी
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ये क़िताब मेरी कविताओं का संकलन है। झांकी है स्त्री मन की,समसामयिक घटनाओं पे मेरे विचार है जो उकेरे गए है कविता के रूप में ।आशा है कि आपको ये पसंद आएगी🙏
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सोचों एक दिन नींद खुले।

11 सितम्बर 2021
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23 नवम्बर 2021
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नमन है तुम्हे हिन्द के वीर

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मंथरा का आना

7 जनवरी 2022
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जीवन में मंथराओ का आना,आप में भरत-सा स्नेह लाता है।जीवन में मंथराओ का आना,आप में लक्ष्मण सा साथ लाता है।जीवन में मंथराओं का आना,आप में सीता सा विश्वास लाता है।जीवन में मंथराओ का आना,आप को कुछ पल का शो

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गणतंत्र दिवस

25 जनवरी 2022
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स्वतंत्र देश को एक सूत्र में पिरोया ,जब आंबेडकर ने संविधान संजोया।जाति,धर्म, वेशभूष को छोड़,भारत गणतंत्र बन पाया,जब 26 जनवरी 1950 को,गणतंत्र संज्ञान में आया।गणतंत्र की महिमा गाता हर इंसान है,हर्ष से ब

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