सोचो एक दिन सोये और नींद खुले अपने कॉलेज के हॉस्टल में होते शोर से
खोलें जब दरवाज़ा,जाते हुए कोई हाय!बोले जोर से
मुश्कुराते चेहरें, और बेफिक्री चाल से जाता वो लड़कियों का झुंड़ चल पड़ा हो मेस की ऒर।
कोई गाता हुआ कोई गाना तो कोई हँसता हुआ जोर से,अल्हड़ सी उस उम्र का अंदाज़ अपना है।
मेस के दरवाज़े से निकलती अतरंगी खुशबू और जाके बैठ जाए उसी मेज़ और बेंच पे।
शूरु हो जाये मेज़ को बजाने का वो अपना रिवाज़,झाँक के देखें दूसरें की प्लेट में की क्या खास है आज।
नाक भौ सिकोड़ते कुछ चेहरें ओह शीट!!फिर वही नाश्ता बकवास।
कोई बोलता है भैया कुछ और भी बनाया करो कोई कहता यार चुप चाप भी कभी खाया करो।
खाते बोलते बीत जाये वो पल ख़ास, अब सब चल दिए वाटर कूलर के पास,भरते वाटर फिल्टर शूरु हो जाये फिजिक्स,भूगोल की बात,लेक्चर,प्रोफेसर और क्लास में क्या है खास।
इस बीच निकल पड़े कुछ दोस्त लेने क्लास,
क्लास का अपना ही मंज़र है,कभी लैब तो कभी कैंटीन के पास यारो का झुण्ड और अपनी बात।
होते ही शाम चल पड़े यूनिवर्सिटी हॉस्टल को,दोस्त बोलते है चल फिर मिलते है कल लाइब्रेरी के पास।
ऐसे सारा दिन उल्लास में गुज़र जाये,सोचो अगर किसी दिन नींद खुले और आप खुद को अपने हॉस्टल में पाये।