रामदर्शन ********
यह सतना चित्रकूट मार्ग पर आरोग्यधाम के आगे रास्ते मे है ।यह एक संग्रहालय है यहां राम जी व रामायण काल से सम्बंधित वस्तुये है ।एक चित्रगैलरी मे बिजलीचालित रामायण कथा दिखाई जाती है । यहां चाइनीज व इंडोनेशिया रामायण भी रखी हुई है इस संग्रहालय का प्रवेश शुल्क ₹10 है ।
यहां का बगीचा बहुत ही भव्य है जिसमें नीलकमल जैसे दुर्लभ प्रजाति के पुष्प हैं नवग्रह वाटिका भी है व आयुर्वेदिक पौधशाला है । बगीचे में हनुमान जी की विशाल प्रतिमा है ।
पम्पापुर*******
चित्रकूट से मात्र 5 किमी दूरी पर देवांगना घाटी मे पम्पापुर स्थान है ।यहां पर भगवान राम के वनवास काल से सम्बंधित बहुत सी असमतल प्राचीन प्राकृतिक गुफाएं हैं ।यह ऐतिहासिक व प्राकृतिक प्रेमी सैलानियों के लिए बहुत अच्छी जगह है ।
बाल्मीकि आश्रम ******
कर्बी इलाहाबाद मार्ग में लगभग 32 किलोमीटर पूर्व में स्थित यहां श्री बाल्मीकि जी का आश्रम है । पहाड़ पर अनेकों कलाकृति उकेरे ब्राह्मी लिपि लिखे हुए प्रस्तरखंड मिलते हैं । कहा जाता है कि यहीं आदि कवि ने आदि काव्य रामायण की रचना की थी ।
वनवास काल में श्री रामचंद्र जी उनके आश्रम में दर्शन कर अपने लिए निवास के लिए स्थान उन्हीं से पूछा था तब श्री महर्षि ने चित्रकूट में रहने को बताया था मानस में कवि ने कहा है
चित्रकूट गिरि करहु निवासू ।
जहं तुम्हार सब भांति सुपासू ।।
यहां एक छोटी सी पहाड़ी है इस गाँव को लालापुर के नाम से जाना जाता है ।कहते हैं यहां आशांबरा माता देवी जी की मूर्ति है। सीता रसोई भी यहीं है ।सीता जी निर्वासन के समय बाल्मीकि आश्रम मे ही रहीं थीं वह गर्भवती थीं।
यहीं लव कुश भी पैदा हुए थे उनकी शिक्षा-दीक्षा मुनि के मार्गदर्शन मे ही हुयी थी । पूरा महर्षि रचित रामायण कंठस्थ कर अयोध्या दरबार मे जाकर सुनाई थी ।चर के पास के गांव झुकेही से निकली तमसा नदी इस आश्रम के पास बहती है सिरसर के पास यह यमुना में मिलती है यहां चंदेल कालीन निर्मित कराया मंदिर है ।
गणेश बाग कर्बी*********
यह कर्बी से 3 किलोमीटर दूर दक्षिण की तरफ है ।इस स्थान का निर्माण बाजीराव पेशवा द्वारा कराया बताया जाता है । यह स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है यहां खजुराहो शैली जैसे कामसूत्र के अनेकों भित्ति चित्र चित्रांकित हैं ।
पंच मंजिला बने मंदिर के शिखर में बने हुए हैं । यहां योग भक्ति व काम तीनों का अद्भुत समन्वय देखा जा सकता है ।मंदिर के सामने एक तालाब है थोड़ी दूर पर एक पांच खंड की बावली है ।
इस बावली के चारखंड भूमिगत हैं । केवल ग्रीष्म ऋतु में जब पानी नहीं होता तभी यह दिखाई पड़ते हैं । पेशवा कालीन राज महल वर्तमान कोतवाली से गणेश बाग तक गुप्त रास्ता बना था जो पारिवारिक सदस्यों के आने-जाने में प्रयोग किया जाता था ।
जय श्रीराम ***