जानकीकुंड ********
रामघाट से 2 किलोमीटर मंदाकिनी नदी के किनारे (जनक सुता होने के कारण सीता जी को जानकी भी कहा गया है) मान्यता है सीता जी यहां स्नान करती थी ।जानकी कुंड में रामभद्राचार्य जी जो तुलसी पीठ के मठाधीश हैं का निर्मित कराया कांच का मंदिर है जिसमे राम सीता लक्ष्मण व हनुमान जी की प्रतिमा है । नीचे जानकी कुंड है ।
यहाँ काँच के मन्दिर के पीछे नीचे की ओर मंदाकिनी की धार बहुत ही साफ शान्त है इस स्थान को मानो प्रकृति ने फुर्सत मे रुचि-रुचि कर अपने हाथ से गढ़ा है ।रामघाट मे मंदाकिनी गहरी होने के कारण व नीचे मटियारी होने से मैं अपने छोटे बच्चो के साथ यहीं स्नान को आती हूं । बड़ों के कमर तक जल रहता है गरमी मे जलस्तर और नीचे हो जाता है ।नीचे कंकर पत्थर होने के कारण बिल्कुल पारदर्शी दिखता है बच्चे बहुत खुश होते हैं ।
यहां पर पर्यटन विभाग की तरफ से पानी रोककर 2 कृत्रिम 3 फुट ऊंचाई के लगभग जलप्रपात जैसा आकार दिया गया है श्रद्धालु इन्ही के ऊपर या नीचे बैठकर स्नान करते हैं ।सामने रणछोड़ दास जी महाराज जानकीकुंड नेत्र चिकित्सालय है जहां पर हजारों नेत्र आप्रेशन निःशुल्क किये जाते हैं ।ये मुम्बई के मफतलाल गुजराती ग्रुप का है । जहां हरेक प्रान्त से लोग शल्य चिकित्सा हेतु आते हैं ।
आगे चलकर पंजाबी भगवान का हनुमान जी का मंदिर है । रघुवीर मंदिर रणछोड़ दास जी के द्वारा स्थापित श्री राम मां जानकी लक्ष्मण जी की मूर्ति हैं इन्होंने संस्कृत विद्यालय की स्थापना के साथ रघुवीर मंदिर ट्रस्ट की स्थापना की थी ।
आगे फलाहारी भगवान का आश्रम है ऐसी मान्यता है कि पहले यहां पर रहने वाले संत केवल फलाहार खा कर के ही निर्वाह करते थे इसी से यहां का नाम फलाहारी आश्रम पड़ा हुआ है। इसी के आगे चलते हुए आरोग्यधाम टाटा मेमोरियल वालों का आयुर्वेदिक चिकित्सालय व दंत चिकित्सालय बनाया गया है । नानाजी देशमुख द्वारा स्थापित दीनदयाल शोध संस्थान आयुर्वेदिक केन्द्र है ।
स्फटिक शिला ********
यह जानकीकुंड से डेढ़ 2 किलोमीटर की दूरी पर है मानस में इसका जिक्र है फटिक सिला बैठे दोउ भाई
यहां बैठकर राम सीता जी चित्रकूट की सुंदरता का अवलोकन करते थे उनके चरणों के चिन्ह आज भी अंकित हैं इसी शिला पर बैठी माता सीता को इंद्र पुत्र जयंत ने काक रूप धारण कर उन्हें चोंच मारी थी ।
एक बार चुनि कुसुम सुहाये निजकर भूषन राम बनाए ।(अरण्यकांड )
सीता चरण चोंच हतिभागा मूढ़ मन्दमति कारन कागा । (अरण्यकाण्ड )
मां सीता के पैर से रक्त की धार बहने लगी तब भगवान राम ने एक तिनका मे वाण अनुसंधान कर मारा जयंत सब जगह बचने के लिए भागने लगा पर कोई ने शरण न दी तब नारद जी ने श्रीराम जी के पास माफी मांगने की सलाह दी ।
नारद देखा विकल जयंता ,
लागि दया कोमल चित संता ।(अरण्य)
तब भगवान ने माफ कर सजा के रूप में उसकी एक आंख फोड दी ।तभी से ऐसा माना जाता है कि कौआ एक आंख के (काने ) होते हैं ।